छत्तीसगढ़ में पहाड़ बचाने के लिए एक साथ आए हज़ारों आदिवासी

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मंगल कुंजाम/तामेश्वर सिंहा

दंतेवाड़ा (छत्तीसगढ़)। दुनिया भर में लोगों ने पर्यावरण दिवस के दिन पेड़ लगाकर सोशल मीडिया पर फोटो भी शेयर की, लेकिन ये हजारों लोग वो हैं जिन्हें पर्यावरण और प्रकृति के संरक्षण के लिए किसी खास दिन की जरूरत नहीं पड़ती, तभी तो ये हजारों लोग एक पहाड़ को बचाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं।

छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले के बैलाडीला पर्वत श्रृंखला के नंदराज पहाड़ी पर विराजे अपने देवता को बचाने के लिए ये आदिवासी अडानी ग्रुप और सरकार से भिड़ने को तैयार हैं। पांच हजार से भी ज्यादा संख्या में बीजापुर, दन्तेवाड़ा, सुकमा जिले से दो दिनों में पचास किमी. का पैदल सफर करके एनएमडीसी किरंदुल परियोजना के सामने प्रदर्शन कर रहे हैं।


इस संबंध में चर्चा करते हुए आदिवासी समाज और जनपद सदस्य राजू भास्कर ने बताया, “संयुक्त पंचायत जन संघर्ष समिति के बैनर तले आज एनएमडीसी, अडानी ग्रुप, और एनसीएल की गलत नीतियों के खिलाफ जिले के हज़ारों ग्रामीण आदिवासी एनएमडीसी किरंदुल का घेराव करने पहुंचे हैं।


दंतेवाड़ा के भोगाम गाँव से आये बल्लू भोगामी बताते हैं, “एनएमडीसी के द्वारा 13 नंबर खदान जो कि अडानी समूह को उत्खनन कार्य के लिए दिया गया है, उस पहाड़ी में हमारे कई देवी देवता विराजमान हैं, साथ ही हम आज इस आंदोलन के माध्यम से एनएमडीसी के द्वारा आयोजित फर्जी ग्राम सभा का भी विरोध करते हैं चाहे वो 11 नंबर खदान, या 13 नंबर खदान का मामला हो, एनएमडीसी ने हमेशा संविधान का उल्लंघन कर फर्जी ग्राम सभा आयोजित की है।

बल्लू ने आगे बताया कि बीजापुर, सुकमा, दंतेवाड़ा ,जिलों की कई नदियां इस पहाड़ से निकलने वाले लोह चूर्ण के कारण लाल हो गई है, जिस कारण भूमि बंजर होने के साथ-साथ सेहत पर भी बुरा प्रभाव पड़ रहा है।”

संयुक्त पंचायत संघर्ष समिति के बैनर तले कई गांवों के ग्रामीण किरंदुल परियोजना के प्रशासनिक भवन के सामने अनिश्चित कालीन घेराव एवं धरना प्रदर्शन के लिए बैठे हैं। ऐतिहात के तौर पर जिला पुलिस बल और

सीआईएसएफ जवान मुस्तेद है। इस दौरान किरंदुल परियोजना का उत्पादन पूरी तरह बंद है। 

दक्षिण बस्तर में उद्योगपति गौतम अडानी को बैलाडीला की खदान नंबर 13 देने के विरोध में चल रहे आदिवासियों के आंदोलन को सूबे के उद्योग मंत्री कवासी लखमा ने भी समर्थन दे दिया है। एक वेबसाइट से बातचीत में उन्होंने कहा कि हम भी शुरू से विरोध कर रहे हैं। आदिवासियों और बस्तर के हक में नहीं है अडानी को माइन्स देना।

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