सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। इस एमबीए किसान की खेती को देखने के लिए प्रदेश के कई हिस्सों से किसान आते हैं। यह किसान शुद्ध आर्गेनिक विधि से फलों कि खेती करता है। कम लागत में अच्छी उपज के साथ-साथ ऑर्गेनिक फलों की बाजार में कीमत भी अच्छी मिल रही है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जनपद से 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एलिया निवासी 38 वर्षीय युवा किसान रोहित सिंह ने साल 2007 में यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर से बीटेक किया था इसके बाद कुछ दिन तक अस्सिटेंट लेक्चरर सीआईईटी मद्रास में शिक्षण कार्य किया उसके बाद 2009 में यूनिवर्सिटी ऑफ मैसूर से एमबीए किया। फिर कई मल्टीनेशनल कंपनियों में अच्छे अच्छे पदों पर काम भी किया।
लेकिन एक दिन उनका दिमाग नौकरी से एक दम परे हो गया इसके बाद साल 2012 में पहली बार मेंथा की खेती शुरू की।
राहुल बताते हैं, “मेंथा की खेती में लागत ज़्यादा आती थी। उसके बाद अच्छे दाम मिलने के लिए महीनों इंतजार करना पड़ता था। इस वजह से मेंथा की खेती को छोड़ कर के पपीता और की खेती दस एकड़ भूमि पर शुरू किया हैं। फलों की खेती में काफ़ी कम लागत में अच्छी कमाई होती है और पैसा भी रोज़ाना मिलता है।”
राहुल बताते है कि खेत में उपज बढ़ाने के लिए हम रासायनिक खादों का प्रयोग न करके के जीवामृत घनामृत संजीवनी अमृत का प्रयोग कर किट प्रबंधन करते है। जीवामृत डालने से खेत जो भी फसल होती है उसका स्वाद ही अलग होता है।
ऐसे तैयार करते हैं जीवामृत
100 किलोग्राम देशी गाय का गोबर,5 लीटर देशी गौमूत्र,2 किलोग्राम गुड़,2 किलोग्राम दाल का आटा, एक किलोग्राम सजीव मिट्टी को अच्छी तरह मिला कर के छाव में रख देते हैं उसके बाद इस गीले जीवामृत को सुखाकर फिर इसका छिड़काव करें।
मल्चिंग व विधि से करे खेती खरपतवार न के बराबर
राहुल बताते हैं, “पहले जब हमने खेती करना शुरू की थी तो बहुत खरपतवार होते थे, उसके बाद जब से हमने अपने खेत मे मल्चिंग डाली उससे काफ़ी हद तक फ़ायदा मिला खेत मे बराबर मात्रा नमी बनी रहती है। और खरपतवार भी नहीं होते हैं।”
राहुल बताते हैं कि पपीता औषधीय गुणों से युक्त है गर्मियों में ज़्यादातर डेंगू बुखार जैसी जानलेवा बीमारियों का खतरा बना रहता है इसके बचाव के लिए इसके पत्तों का रस पीने से प्लेटलेट्स बढ़ती है और पपीता पाचन क्रिया में बहुत ही फायदेमंद है।
पपीता के साथ साथ तरबूज़ व खरबूजा की खेती में भी कमा रहे अच्छा मुनाफ़ा
राहुल बताते है की पपीते की खेती के साथ साथ तरबूज़ व खरबूजा की खेती भी कर रहे है, पपीता के साथ साथ अगेती तरबूज और खरबूजा की खेती में कम लागत में अच्छी कमाई हो जाती है, इसके साथ साथ व्यापारी खेत से ही आकर के फलों को अच्छे दामों में ख़रीद ले जाते हैं, इसका एक फायदा यह भी है कि ट्रांसपोर्ट की लागत में अजर ज़्यादा कमी आ जाती है।
एक एकड़ पपीते की खेती में आती है 30000 हजार रुपए की लागत, एक लाख तक की कमाई
राहुल बताते हैं, “पपीते की रोपाई नवम्बर माह में की जाती है। इसके लिए ढाई फिट की दूरी पर एक पौधारोपण किया जाता है,एक पौधे की लागत करीब 15 रुपये के आसपास आती है। प्रति पौधे के हिसाब से 100 ग्राम जीवामृत और 50 ग्राम जैविक खाद डाल कर रोपाई कर दे,पपीते की खेती में सब से ज़्यादा सिचाई का ध्यान देना पड़ता हैं। वही करीब प्रति पेड़ से डेढ़ कुंतल तक उपज होती है। औसतन एक एकड़ में करीब एक लाख तक कि पैदावार हो जाती है।