बिहार का ये शख्स मुफ्त में करता है पशुओं का इलाज, जड़ी-बूटियों की दवाओं के लिए बनाई पहचान

जानवरों में अढ़ैया रोग के सफल उपचार के लिए 2012 में मिला राष्ट्रपति पुरस्कार, अपने शोध से जुड़े कई दवाओं को पेटेंट कराने के लिए भेजा है अहमदाबाद की लैब में
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विनय कुमार पांडेय

नवादा (बिहार)। बिहार का नवादा जिला अपने कई ख्यातियों के लिए मशहूर है। इस जिले के पकरीबरावां प्रखंड स्थित डुमरावां गांव में एक ऐसे शख्स रहते हैं जो जड़ी-बूटी से इलाज कर अपनी एक अलग पहचान बनाई है। हम बात कर रहे हैं गांव के किसान नवल किशोर सिंह की। इनकी उम्र 58 वर्ष है। यह बीते कई दशकों से जड़ी-बूटी से अनेक बीमारियों का इलाज करते आ रहे हैं। मुख्य रूप से यह दुधारू पशुओं के कई गंभीर बीमारियों के इलाज के लिए जाने जाते हैं। इनकी ख्याति और आयुर्वेद के क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के कारण राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने 2012 में इन्हें सम्मानित किया।

नवल किशोर सिंह को जानवरों में होने वाले अढ़ैया रोग में दवा पेटेंट होने पर सम्मानित किया गया। इस बीमारी का ये आसानी से इलाज करते हैं। यह बीमारी कई जानवरों को असमय मौत की नींद सुला देता है। नवल किशोर सिंह बताते हैं “इस बीमारी के इलाज के लिए नवादा, बिहार समेत पड़ोस के झारखंड के कई हिस्सों में जाकर पशुओं का इलाज करते हैं।” वह अढ़ैया को संक्रामक रोग बताते हैं। जिसमें जानवर को कई तरह की तकलीफ होती है। ये गांव के जानवरों का तो इलाज करते ही हैं। मनुष्यों की कई तकलीफों को भी अपनी जड़ी-बूटी के रहस्य से ठीक करते हैं। इनमें से प्रमुख रूप से मोटापा, पेचिस, पेशाब में खून आना, तेज ज्वर, पीलिया जैसी कई बीमारियों को इन्होंने अपनी जड़ी-बुटी से ठीक किया है।

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नवल किशोर सिंह एक साधारण परिवार से किसानी का काम करते हैं। इसी बीच में जड़ी-बूटी से इलाज भी करते हैं। नवादा के नवल किशोर सिंह गुजरात के अहमदाबाद की आयुर्वेदिक संस्था नेशनल इनोवेशन फाउंडेशन- इंडिया से साल 2006 से जुड़े हुए हैं। इस संस्था की ओर से भी इन्हें 2018 में सम्मानित किया गया है। नवल किशोर सिंह ने बीते साल पटना के श्रीकृष्ण साइंस सेंटर में आयोजित इनोवेशन उत्सव के दौरान जड़ी बूटी से पेचिस सहित कई अन्य रोगों का इलाज आसपास की वनस्पति एवं जड़ी बूटी से किए जाने की जानकारी दी थी। परियोजना संयोजक ने उन्हें प्रमाण पत्र देकर सम्मानित किया। ये अनवरत जड़ी बूटी से जुड़े शोध कार्यों में लगे रहते हैं। वनस्पति पौधे एवं जड़ी बूटी से कई बीमारियों का इलाज कर रहे हैं। वह बताते हैं कि गांव के आसपास ही ऐसी हर तरह की जड़ी बूटियां है जिसे इलाज किया जा सकता है।

उनकी अनेक दबाव को पेटेंट कराने के लिए अहमदाबाद के लैब में भेजा गया है। वह बताते हैं कि जानवरों में जब किसी तरह की तकलीफ होती है तो उन्हें भी तकलीफ होती है। सभी जानवर स्वस्थ रहें, इसके लिए वे रात-दिन अथक प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि अब तक लोगों को रासायनिक दवाओं पर निर्भर करना पड़ रहा है। लेकिन जड़ी बूटी का उपचार ऐसा है कि वह सेहत पर बुरा प्रभाव नहीं डालता और बीमारियों को ठीक कर देता है।

नवल किशोर सिंह वनस्पति से पशु एवं मानव में होने वाले कई रोगों का इलाज करते हैं। उनका कहना है कि उनके पास दूर-दूर से लोग जड़ी बूटी के लिए पहुंचते हैं। कई लोग फोन पर भी उनसे संपर्क करते हैं। जिन्हें जो भी बन पड़ता है वह इलाज के दौरान उनकी मदद करते हैं। नवल सिंह बताते हैं कि वह दुधारू पशुओं के अलावा मनुष्य में होने करीब सौ से डेढ़ सौ बीमारियों का इलाज करते हैं। इनकी खासियत यह है कि यह जो भी इलाज करते हैं उसमें कोई शुल्क नहीं लेते हैं। यदि किसी की खुशी से इच्छा हो भी गई तो वह दान में दी गई राशि को अहमदाबाद के उसी संस्था को डोनेट कर देते हैं।

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गांव में हर्बल गार्डन बढ़ाने की है इच्छा

नवल किशोर सिंह जड़ी-बूटी से इलाज के लिए किसी तरह की फीस नहीं लेते हैं। मुफ्त में पशुपालकों या बीमार लोगों को सलाह दी जाती है। साथ ही उनका इलाज किया जाता है। अगर कोई इलाज के बदले पैसे देता है तो उसका उपयोग वे जन कल्याण के कार्यों में करते हैं। नवल सिंह बताते हैं कि उनकी इच्छा है कि गांव में एक हर्बल गार्डन बनाई जाए। इसके लिए सरकारी मदद की जरूरत बताते हैं। वे कहते हैं कि कई बार जड़ी बूटियों की तलाश में उन्हें इधर-उधर भटकना पड़ता है।

कई सीजन में वो जड़ी-बूटी आसानी से नहीं उपलब्ध हो पाती है। ऐसे में उन्हें जानवरों का और मनुष्यों का इलाज करने में दिक्कत होती है। यदि सरकार कुछ मदद दे तो अपने ही गांव में अपनी ही जमीन पर हर्बल गार्डन बनाने के लिए तैयार हैं। ताकि उनके उपयोग की सभी जड़ी बूटियों की वनस्पति एक जगह पर ही उपलब्ध हो सके।

पशुओं में होने वाले अढ़ैया रोग के प्रमुख लक्षण

पैर से लंगड़ाना

मुंह का अग्रभाग सूख जाना

जानवरों के शरीर में तनाव आना ।

संक्रमण लगने के बाद 3 दिनों तक तेज बुखार रहना

दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन घट जाना

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