सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। अभी तक कहा जाता था कि किन्नू की खेती सिर्फ पंजाब, हिमाचल प्रदेश जैसे प्रदेश में हो सकती है, लेकिन सीतापुर जिले के इस किसान ने न केवल किन्नू की खेती शुरू की बल्कि बढ़िया मुनाफा भी कमा रहे हैं।
सीतापुर जिले के औरंगाबाद के प्रगतिशील किसान उमेश मिश्रा (50 वर्ष) बताते हैं, “जब मैं पहली बार पंजाब के बाघा बार्डर पर घूमने गया तो वहां किन्नू की खेती के बारे जानकारी मिली, फिर हमने किन्नू की खेती 20 एकड़ भूमि पर शुरू किया। आज किन्नू से अच्छी कमाई हो रही है।”
वो आगे कहते हैं, “हम पहले परम्परागत खेती करते थे, जिसमे काफी मोटा पैसा लगाना पड़ता था, जब पंजाब में पहली बार किन्नू की खेती देखी,वहां से इसके बारे में जानकारी लिया, फिर हमने 2014 पहली बार 250 पौधों की रोपाई कराई। इसके बाद जब अच्छी पैदावार हुई। हमारे उत्तर प्रदेश की जलवायु के लिए किन्नू की खेती के लिए सही है। इन्होंने इस बार साढ़े तीन हेक्टेयर में 1500 पौधे लगाए हैं।”
एक एकड़ में लागत दस हजार, तीन लाख की कमाई
उमेश मिश्रा बताते हैं, “एक एकड़ में करीब 214 पेड़ लगते हैं वही एक पेड़ की कीमत 50 रुपए आती है, एक पेड़ से करीब पहले वर्ष में 50 किलो फल मिलते हैं। वही बढ़ते-बढ़ते 5 वर्ष में प्रति पेड़ 2 कुंतल तक फल देता है। अगर मार्जिन की बात करें तो संतरा के सीजन निकलने के बाद बाज़ार में इसकी काफी डिमांड बढ़ जाती है तो वहीं 45 से 50 रुपये थोक के भाव से खेत से ही निकल जाता है।
पौध रोपण और नर्सरी कब
किन्नू के बीजू पौधा तैयार करने के लिए सितम्बर से अक्तूबर में इसकी बीजाई की जाती है| इसकी बुवाई ऊंची उठी क्यारी में की जाती है। जो कि 2से 3 मीटर लम्बी, दो फुट चोड़ी व 15 से 20 सैंटीमीटर जमीन से ऊंची होती है| बीजों को 15 सेमी. के फासले पर कतारों में बोये। बुवाई के 3 से 4 सप्ताह के बाद अंकुरण हो जाता है। छोटे पौधों को पाले व शीत लहर से बचाने के लिए सूखी घास का छप्पर बनाकर रात को ढक दे तथा दिन में हटा ले। समय-समय पर सिंचाई व गुड़ाई करते रहना चाहिए। उसके बाद किन्नू की खेती के लिए पौधारोपण फरवरी से मार्च तथा अगस्त से अक्तूबर में लगाए जाते हैं। पौधों को बिल्कुल सीधा लगाना चाहिए ताकि उनकी जड़े स्वाभाविक अवस्था में रहे और तेज हवा से बचाव के लिए प्रबंध करें।