50 रुपए के लिए मौत के मुंह में छलांग लगा देते हैं भेड़ाघाट के ये बच्चे

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जबलपुर (मध्य प्रदेश)। “सुबह आ जाते हैं, शाम तक यहीं रहते हैं। हर जंप के 50 रुपए मिलते हैं। पहले जब तैरने नहीं आता था तब डर लगता था, अब तो रोज की आदत पड़ गई है।” 13 साल के अभिषेक भेड़ाघाट की चट्टानों पर से रोज छलांग लगाते हैं। 300 मीटर से ज्यादा गहरे पानी में लगभग 100 फीट की ऊंचाई से कूदने की हिम्मत कोई आम आदमी शायद ही कर पाये।

मध्य प्रदेश के जबलपुर में नर्मदा के तट पर स्थित भेड़ाघाट अपनी सुंदरता के लिए दुनियाभर में मशहूर है। लेकिन इन्हीं घाटों पर आपको ऐसे बच्चे भी मिल जाएंगे जो कुछ पैसे कमाने के लिए हर पल अपनी जान जोखिम में डालते हैं।

ये बच्चे ऐसा क्यों करते हैं, इस बारे में अभिषेक कहते हैं “स्कूल जाना नहीं होता। इसलिए दिनभर यहीं रहता हूं। यहां ज्यादा पैसे मिल जाते हैं। पहले मैं धूंआधार वाटर फॉल में सिक्के ढूंढता था, लेकिन अब सिक्के बाजारों में कोई लेता नहीं, इसलिए अब मैं यहां जंप लगाता हूं।”

भेड़ाघाट में संगमरमर की लंबी-लंबी चट्टानों के बीच बहती नर्मदा के स्वच्छ पानी में नौकायन करना यात्रियों को खूब पसंद है। इन्हीं लंबी चट्टानों की चोटी पर बैठे 13-14 साल के बच्चे सैलानियों की एक आवाज में ऊपर से जंप लगा देते हैं, वो भी मात्र 50 रुपए के लिए।

ये बच्चे कौन हैं, क्यों इनके माता-पिता इनको इस खतरनाक खेल के लिए नहीं रोकते नहीं। इस बारे में भेड़ाघाट के ही नाविक शंकर लखेरा कहते हैं, “ये हमारे बच्चे ही हैं। ज्यादातर नाविकों के बच्चे यही काम करते हैं। और ये एक तरह से ठीक भी है। इन्हें भी बड़े होकर नाव ही चलाना है, ऐसे में अच्छा ही है कि अभी से तैरना सीख रहे हैं।”


ऊपर चोटी पर चार-पांच बच्चे हमेशा खड़े रहते हैं। ये वहीं से आवाज लगाते हैं, 50 रुपीस फॉर वन जंप। नाव में सवार पर्यटक इशारा करते हैं और ऊपर से ये छलांग लगा देते हैं।

अभिषेक बताते हैं कि मैं दिनभर में 800 से 900 रुपए कमा लेता हूं। ऊपर से ही पैसों की बात कर लेता हूं। कई बार कोई कूदने के लिए बोल तो देता है लेकिन फिर पैसे नहीं देता। जंप के बाद तैरते हुए नाव के पास जाता हूं और पैसे लेकर वापस जाता हूं। फिर अगली जंप के लिए आवाज लगाना शुरू कर देता हूं। 50 रुपीस फॉर वन जंप।

“मैंने पंचवटी घाट से तैरना सीखा। लेकिन वहां सिक्कों से ज्यादा कमाई नहीं हो पाती थी। दिनभर में मुश्किल से 50 रुपए मिलते थे।” अभिषेक बताते हैं।


अभिषेक के साथ एक अपनी टीम रहती है। सभी एक ही उम्र के हैं। सब बारी-बारी से छलांग लगाते हैं। 13 साल के सचिन कहते हैं, “पहले मुझसे तैरते नहीं बनता था। तब मैं बहुत छोटा था। फिर एक दिन अपने से बड़ों बच्चों के पीछे-पीछे गया। मैं भी उन्हें देखकर नदी में कूद गया। डूबने लगा, फिर मेरे एक दोस्त ने मेरी जान बचाई नहीं तो मैं डूब ही जाता। बड़ी मुश्किल से उन्होंने तैरना सीखाया।”

आगे अपने जीवन में क्या करेंगे, इस पर अभिषेक कहते हैं कि यह काम करूंगा। नाव चलाऊंगा। इतनी ऊपर से इतने गहरे पानी में छलांग लगाने से डर नहीं लगता, इस सवाल के जवाब में अभिषेक कहते हैं, “डर के आगे जीत है।”

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