सुबह से लेकर शाम तक खेतों में काम करनी वाली महिलाओं के श्रम को कम करने के लिए कृषि संस्थानों ने पहल की है। इन संस्थानों ने कई महिलाओं पर सर्वे करके पहले यह आंका कि किस क्षेत्र में महिलाओं का श्रम ज्यादा लगता है उसी के अनुसार कृषि यंत्रों को तैयार किया गया है।
सीतापुर जिले के कटिया कृषि विज्ञान केन्द्र की गृह वैज्ञानिक डॉ. सौरभ बताती हैं, “ग्रामीण क्षेत्रों में महिलाएं घर के कामकाज संभालने के अलावा कृषि में भी पूरा योगदान देती हैं। दिन मे कम से कम छह से सात घंटे महिलाएं खेतों में काम करती हैं। लेकिन उनके जो कृषि यंत्र है वो अभी भी पांरपरिक हैं जैसे खुरपी, फावड़ा, दरांती, कुदाल। उन्हीं को लेकर कई घंटों तक बैठकर झुककर काम करती है, जिससे रीढ़ की हड्डी में दर्द जैसी कई बीमारियों से भी ग्रस्त है।”
देश में कुल कृषि श्रमिकों की आबादी में करीब 37 प्रतिशत महिलाएं हैं, लेकिन, खेतीबाड़ी में उपयोग होने वाले ज्यादातर औजार, उपकरण और मशीनें पुरुषों के लिए ही बनाए जाते हैं। अधिकतर उपकरण महिलाओं की कार्यक्षमता के अनुकूल नहीं होते हैं। ऐसे में वैज्ञानिकों द्वारा महिलाओं के अनुकूल उपकरण और औजार बनाए जाने की पहल से यह स्थिति बदल सकती है।
कृषि संबंधित, फसल कटाई/तुड़ाई के बाद प्रबंधन और पशुपालन में महिला किसानों का ही मुख्य योगदान होता है। खेती में महिलाएं सबसे ज्यादा बीज बोने, पौधरोपण, निराई-गुड़ाई, सब्जियों की तुड़ाई, फसलों की कटाई/छिलाई, डंठल काटना, अनाज की उसाई-सफाई ग्रेडिंग व भंडारण का कार्य करती हैं।
वो आगे बताती हैं, “महिलाओं की इन समस्याओं को दूर करने के लिए भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान और कृषि विज्ञान केंद्रों के सहयोग से महिलाओं के श्रम को कम करने के लिए कई यंत्र तैयार किए है। जिले की महिलाओं को ऐसे कई यंत्र दिए हैं, जिनसे उनके काम आसान हो रहे हैं।”
विकास दर और बदलते सामाजिक-आर्थिक परिवेश जैसे कारकों को ध्यान में रखकर शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वर्ष 2020 तक कृषि में महिला श्रमिकों की भागीदारी बढ़कर 45 प्रतिशत हो सकती है, क्योंकि ज्यादातर पुरुष खेती के कामों को छोड़कर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं। ऐसे में भविष्य में महिलाएं ही कृषि में प्रमुख भूमिका निभाएंगी।