बाल मजदूरी के खिलाफ बच्चों की मुहिम

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बहराइच (उत्तर प्रदेश)। “हम लोग पढ़ने जाते थे तो जो बच्चे मजदूरी करते थे उन्हें देखकर लगा कि उन्हें भी पढ़ना चाहिए। उनका भी भविष्य अच्छा होना चाहिए,” ये कहना है बहराइच जिले की भारत-नेपाल सीमा से लगभग एक किलोमीटर दूर बख्शी और आस-पास के गांवों के सूचनामंत्री अरूण कुमार मिश्रा का।

अरूण आठवीं कक्षा के छात्र हैं और गांवों में बच्चों के अधिकारों के प्रति जागरूकता लाने के लिए काम करते हैं। देश की संसद के आधार पर राज्य के बहराइच जिले के कई गांवों में बाल संसद चलती है। ये संसद मुख्यत: बच्चों के अधिकारों के लिए काम करती है। साथ ही गांवों में मानी जाने वालीं कुप्रथाओं को खत्म करने के लिए भी प्रयासरत रहती है।

ये संसद देहात संस्था द्वारा बाल संसद परियोजना के अंतर्गत काम करती है। ऐसे ही कई गांवों में इस परियोजना के तहत बच्चों की मंडली कार्यरत है। बख्शी गांव की बाल संसद के प्रधानमंत्री हैं शिव कुमार आर्या। शिव कहते हैं कि अगर कहीं भी बाल मजदूरी होती है तो हम 1098 और चाइल्ड हेल्पलाइन पर फोन कर, उनकी मदद से बच्चे को बचाने की कोशिश करते हैं।

बाल संसद देश की संसद की तरह चलती है। अलग-अलग विभागों का कार्यभार अलग-अलग बच्चों को मिला हुआ है। सब अपने-अपने क्षेत्र का काम देखते हैं। गांव के साथ-साथ आस-पास के गांवों में जो कुछ होता है सबपर इन नन्हें बच्चों की नज़र रहती है। ये बच्चे अपने अधिकारों और रूढ़िवाद के खिलाफ लड़ रहे हैं।


प्रधानमंत्री और सूचनामंत्री ने बताया कि ये संसद बच्चों के चार अधिकारों के लिए काम करते हैं। कौन से हैं बच्चों के चार अधिकार?

1. जीने का अधिकार

2. विकास का अधिकार

3. भागीदारी का अधिकार

4. सुरक्षा का अधिकार

अरूण बताते हैं कि बाल मजदूरी रोकने के लिए हम पहले माता-पिता से बात करते हैं। उन्हें समझाते हैं कि बच्चों से काम नहीं करवाना चाहिए, ये कानूनन ज़ुर्म है। अभिभावकों को ये भी बताते हैं कि अपने बच्चों को पढ़ाएं। जब माता-पिता नहीं मानते हैं तो फिर चाइल्ड हेल्पलाइन की मदद लेकर बच्चों को इस दलदल से बचाते हैं।

संसद को सुचारू रूप से चलाने के लिए हर महीने की 4 तारीख को सभी पदाधिकारी मीटिंग करते हैं। इस मीटिंग में जो भी समस्या होती है वो रखी जाती है, मुद्दों पर बात कर उनका हल खोजा जाता है।

शिव ने बताया कि जो बच्चे जंगल में लकड़ी बीनने जाते थे उन्हें रोकने के लिए हमने सशस्त्र सीमा बल के अधिकारियों को उनके नामों की लिस्ट दी। अब बॉर्डर इलाकों की हालत ठीक है। स्कूल का फर्श टूटा हुआ था उसे ठीक कराने का काम किया। विद्यालय के सौंदर्यीकरण के लिए भी सरकारी मदद ली। वो ये कहता है कि हमारे गांव में पहले लड़कियों को नहीं पढ़ाया जाता था लेकिन अब सारी लड़कियां स्कूल जाती हैं।

तीन चार महीने तक हमारे गांव में बिजली नहीं थी तो हम लोगों ने 1912 पर फोन कर मदद मांगी। उन्हें बताया कि गांव में लाइट नहीं है जिससे बच्चों को पढ़ाई करने में दिक्कत हो रही है। उन्होंने हमें कहा था कि 15 दिनों में ये समस्या दूर हो जाएगी तो हफ्ते भर में ही गांव में बिजली आ गई। शौचालय बनाने में भी हमने मदद की।

अरूण कहते हैं, “हमारे ही गांव का एक लड़का कृष्णा होटल पर मजदूरी करता था। वो एक बार हमारी दुकान पर आया, यहां उसने मुझे बताया कि वो काम नहीं करना चाहता लेकिन उसके पिता जबरदस्ती उसे होटल पर काम करने भेजते हैं। हमने सरकार की मदद से कृष्णा को बाल मजदूरी से छुड़ाया। इसके बाद गांव के प्राथमिक विद्यालय में उसका दाखिला भी कराया।


बख्शी गांव में प्राथमिक विद्यालय है। बाल प्रधानमंत्री शिव बताते हैं कि पहले हमारे गांव में पहले सारे बच्चे विद्यालय नहीं जाते थे। हमने उन सब बच्चों की लिस्ट बनाई जो स्कूल नहीं जाते थे। इसके बाद घर-घर जाकर उनके परिवार वालों को पढ़ाई के प्रति जागरूक किया। जब हम लोगों से बात करने गए तो ऐसा भी हुआ कि बहुत लोग नहीं माने। उन्होंने हमें कहा कि हमारे बच्चे हैं, हम चाहे जो करें, तुम्हें क्या? कई बार ऐसा हुआ कि हमारी बातों को नहीं सुना गया; तब हमने चाइल्ड लाइन की मदद लेकर बच्चों को बाल मजदूरी की कैद से आज़ाद कराया। जिसके बाद स्कूल में उनका दाखिला कराया।

ये बच्चे दो साल से इस संसद से जुड़े हुए हैं। इस दौरान उन्होंने बेचर सोनकर, गरीब सोनकर, दयाराम चक्रवर्ती, सूरज आर्या और अजय कुमार नाम के बच्चों की मदद की और फिर गांव के प्राथमिक विद्यालय में उनका दाखिला कराया।

बच्चों के परिवार वाले उनके साथ तो हैं पर बच्चों की चिंता भी रहती है। शिव ने बताया कि घरवाले समर्थन करते हैं पर सुरक्षित रहने की हिदायत भी देते हैं कि अच्छे से काम करो लेकिन किसी से लड़ाई-झगड़ा मत करो।

आगे भविष्य में किस तरह से काम करना चाहते हैं, इस सवाल के जवाब में अरूण कहता है, “हम आस-पास के क्षेत्र में और अधिक बच्चों एवं माता-पिता को जागरूक करना चाहते हैं ताकि जिस तरह हम लोग पढ़ते हैं उस तरह सभी बच्चे पढ़ाई करें और आगे बढ़कर नाम कमाएं।”

शिव कुमार मौर्य बड़े होकर डॉक्टर बनना चाहता है, वो कहता है कि अभी तो पढ़ रहे हैं, हाईस्कूल पास होना है फिर डॉक्टर बनना चाहते हैं। वहीं अरूण का सपना वकील बन बच्चों के अधिकारों की लड़ाई लड़ने का है। वो कहता है कि मैं वकील बनना चाहता हूं ताकि बच्चों की हर एक समस्या को हल करने में मदद कर सकूं। उनके मुद्दों के लिए लड़ाई लड़ सकूं।  

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