रायसेन(मध्य प्रदेश)। सुबह होने से पहले अंधरे में ही ये लोग हर दिन जंगल पहुंच जाते हैं, ये सिलसिला हर साल इसी समय शुरू होता है, ये समय तेंदू पत्ता तोड़ने का होता है।
मध्य प्रदेश के रायसेन जिले से 20 किलोमीटर पूरब दिशा की तरफ स्थित भूवारा गांव और इससे जुड़े दर्जनों गांव लोगों के जीने का सहारा तेंदू की पत्तियां हैं।
भुवारा गांव की हीराबाई (40 वर्ष) बताती हैं, “सुबह से ही जंगलों में और पठारों पर हम बच्चों सहित चले जाते हैं और दिन भर पत्ते तोड़ते हैं फिर उन्हें 50-50 की गड्डी में बांधते हैं और फिर पास के गांव में एक छोटी सी बाजार लगती है जहां पर बाहर से व्यापारी आते हैं और इन्हें खरीद ले जाते हैं और इन्हीं पत्तों से बीड़ी बनाई जाती है।1
मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, झारखंड और छत्तीसगढ़ के हजारों परिवार साल भर तेंदू पत्ता की तुड़ाई का इंतजार करते हैं, क्योंकि इन्हीं एक दो महीने में उन्हें अच्छा मुनाफा हो जाता है।
वहीं भुवारा की ही सविता कहते हैं की यूं तो पत्ते पूरे साल पौधों में रहते हैं लेकिन जेठ माह में ही इनकी तुड़ाई होती है और इसी माह में ही टूटने वाले पत्तों की बीड़ी बनती है बाकी के दिनों में पत्ते फट जाते हैं या पानी लग जाने से पत्ते बेकार हो जाते हैं।
मई जून महीने में तेंदू की पत्तियों को इकट्ठा किया जाता है, पत्तियों को 50 से 100 पत्तों के बंडल में बांधा जाता है और एक हफ्ते तक धूप में सुखाया जाता है। सूखी गडि्डयों पर पानी डाला जाता है और दो दिन बाद फिर धूप में सुखाया जाता है। तेंदूपत्ता की तुड़ाई, उपचार और भण्डारण में बहुत सावधानी बरतने की जरूरत होती है। थोड़ी सी भी गलती या लापरवाही के कारण इसकी गुणवत्ता खराब हो सकती है और यह बीड़ी बनाने के लिये अनुपयुक्त हो सकता है।
वहीं 45 वर्षीय प्रेमावरी कहती हैं, “हमारी तरफ की सभी महिलाएं सुबह से ही पठारों पर निकल जाती हैं, हम सब मिलकर पत्ते तोड़ते हैं और फिर उन्हें बाजार लाते हैं इसी में हमारा दिन बीत जाता है और कमाई के नाम पर दो 400 रुपए ही मिल पाते हैं जिससे जीवन यापन हो रहा है
भोपाल स्टेशन पर हमें मिली आशा देवी जो महिलाओं से पत्ते खरीद कर अपने घर ले जा रही थी बताती हैं कि हम बाजार से इन पत्तों को खरीद कर लाए हैं और इनसे हम बीड़ी बनाएंगे फिर इन्हें हम बाजार तक पहुंचाएंगे।