ललितपुर(उत्तर प्रदेश)। “उम्मीद नहीं थी कि सरकारी स्कूल में भी अच्छी पढ़ाई होगी, जब मैने चार पांच दिन आकर देखा तो लगा टीचर अच्छी मेहनत कर रहे हैं वो भी प्राईवेट स्कूल से ज्यादा। मैं भी अपनी बच्ची को यहीं पढ़ा रहा हूं, शिक्षकों की मेहनत से बच्चे होशियार हो रहे हैं समय से कोर्स पूरा होता हैं, “अपने बच्चे को घर से तीन किमी दूर प्राथमिक स्कूल में पढ़ाने वाले परशुराम बताते हैं।
उत्तर प्रदेश के ललितपुर जिला मुख्यालय से 17 किमी दूर बिरधा ब्लॉक के ऐरावनी गाँव के इंग्लिश मीडियम प्राईमरी स्कूल में दूर-दूर से बच्चे पढ़ने आते हैं। इसी विद्यालय में पढ़ने वाली नन्दनी झां की तरह कई बच्चे निजी स्कूलों में पढ़ा करते थे, शैक्षिक स्तर बढ़ने से अधिकतर बच्चों ने नाम वहां से कटाकर यहां एडमीशन करा लिया। अब इस स्कूल में 150 बच्चों का नामांकन हो गया है। ये बच्चे पहले कमजोर थे टीचरों द्धारा अपनायी गई तमाम गतिविधियों से बच्चे इंग्लिश पढ़ना सीख रहे हैं।
ललितपुर के प्राईवेट स्कूल को छोड़कर आयी इंग्लिश मीडियम प्राइमरी स्कूल में चौथी कक्षा में पढ़ने वाली नन्दनी झां (11 वर्ष ) बताती हैं, “पढ़ाई में कमजोर थे, जब से यहां पढ़ना शुरू किया, अब थोड़ा-थोड़ा इंग्लिश पढ़ना सीख गई गणित के सवाल लगाना सीख गई और कविताओं से बहुत कुछ सीख कर हम होशियार हो गए।”
अप्रैल 2018 में इंग्लिश मीडियम के लिए विद्यालय का चयन होने के बाद टीचर के अभाव में बच्चों का कोर्स नहीं पिछड़ता बल्कि विद्यालय में रूचि के अनुसार विषय बार टीचर पढ़ाते हैं, इंग्लिश मीडियम के पांच टीचर सहित दो शिक्षामित्र हैं। बच्चों के बीच में बच्चों जैसी हरकत करके पढ़ाने से बच्चों की शैक्षिक गतिविधि बढ़ी, जिसके प्रभाव से पास के घुटारी व निवारी गाँव के बच्चों ने एडमिशन लिया, निजी स्कूल छोड़कर बच्चे आए।
एसएमसी समिति और टीचरों के सहयोग से आस-पास के गाँवों पम्पलेट बटवाए, उसमें विद्यालय की तमाम विशेषताएं लिखी, जिसके फायदे गिनाते हुए सहायक अध्यापक रामबाबू विश्वकर्मा ने बताया, “लोगों को लगा कि पढ़ाई होगी, लोग आये भी उन्होंने स्टाफ की दिनचर्या देखी उन्हें लगा कि पढ़ाई निरन्तर हो रही है। यह देख गाँव और आसपास के गाँवों के अभिभावकों ने निजी स्कूलों से नाम कटाकर एडमीशन लिया। अब पढ़ाई से वो संतुष्ट हैं।”
प्रार्थना के समय व्यायाम खेलकूद कराया जाता हैं, साथ ही जनरल नॉलेज के लिए सुबह एक घंटा अलग से दिया जाता है। जनरल नॉलेज के लिए बच्चों को रटने के तरीके से नहीं बल्कि बच्चों के अंदर उस कायरेक्टर को बनाने की बात करते हुए विश्वकर्मा कहते हैं, “जिस तरीके से बाल संसद होती हैं, उसी तरीके से बच्चों को पद दिए नाम भी वहीं ऑरिजनल दिया, जिससे बच्चों को सामान्य ज्ञान के प्रश्नों में जो समस्या होती थी इस प्रकिया से बच्चे अपने आप उनको सीखने लगें एक दूसरे को पुकारने लगे।
गाँवों के बच्चों में सबसे बड़ी समस्या अंग्रेजी की है, हिंदी नहीं पढ़ पा रहें उन्हे अंग्रेजी कैसे सिखाएं पूरे स्टाफ ने आपस में विषय चुनकर बच्चों के पढ़ाने के कार्य में समस्याया आने की बात करते हुए सहायक अध्यापक उमेश कहते हैं, “हम लोगों ने कविताओं को एक्सन करके सिखाया, गाकर खेलकर सिखाया। बॉडी पार्ट भी पोएम के द्धारा सिखाया। प्रार्थना के समय जनरल नॉलेज से जुड़ी बाते बताते हैं।”
इसी साल स्मार्ट क्लास शुरू करने का जिक्र करते हुए उमेश कहते हैं, “बेसिक शिक्षा के जो चैनल यूट्यूब पर हैं उनको स्मार्ट क्लास के माध्यम से बच्चों को दिखाकर उसस जुड़ी नयी-2 चीजें सीख रहे हैं, प्रैक्टिकली बच्चे ज्यादा चीजें सीख रहे हैं। बच्चों में नवोदय शिक्षण कार्य के संस्कार डाल रहे हैं, जिससे वो बहतर से बेहतर सीखें। नवोदय की तैयारी के लिए अलग से क्लास चलाई जाती है।”
इंग्लिश मीडियम बनने से पहले बाउण्ड्री, फर्श, सहित व्यस्थाएं नहीं थी, चौदहवें वित्त से मिले फंड से पंचायत ने भौतिक परिवेश पर बल देने की बात करते हुए सहायक अध्यापक रामबाबू विश्वकर्मा बताते हैं, “बाउण्ड्री बाल, फर्श, शौचालय कक्षा-कक्ष की मरम्मत के साथ स्कूल की संपत्ति सुरक्षित रहने लगी।”