बेहर बिठाल, उना (हिमाचल प्रदेश)। पहाड़ छोड़कर लोग शहर की तरफ भाग रहे हैं, लेकिन रीवा सूद ने राजधानी दिल्ली को छोड़कर गाँव में जाकर जैविक खेती की शुरूआत की है।
हिमाचल प्रदेश के ऊना, कांगरा, चंबा जैसे जिलों में जैविक खेती की शुरूआत करने वाली रीवा सूद से अब सैकड़ों किसान जुड़ चुके हैं। वो बताती हैं, “हमने पूरी तरह से जैविक खीरा उगाने की शुरूआत की है, इसमें कोई भी केमिकल नहीं डाला गया है, इसे जीवामृत डालकर तैयार किया है। गाँव से हमने गोमूत्र लिया है, लोगों से हम गोमूत्र लेते हैं, जिसे हम फसल पर स्प्रे करते हैं।”
किचन गार्डनिंग के शौक ने खेती तक पहुंचाया
राजधानी दिल्ली में रहने वाली रीवा सूद को किचन गार्डनिंग का शौक था, बस वहीं से उन्हें खेती का आईडिया आया। वो कहती हैं, “मुझे शुरू से किचन गार्डनिंग का शौक था, वर्मी कम्पोस्ट तैयार करती थी। मुझे हमेशा से यही लगता था कि बड़ी सी कोई जगह होनी चाहिए, जहां पर मैं अपने पूरे एक्सपीरेएंस को एक प्रैक्टिकल मोड में लाऊं और किसानों के आजीविका लिए बेहतर काम कर सकूं।”
किसानों को खेती की तकनीक के साथ बाजार उपलब्ध कराने की है तैयारी
किसानों के खेती से रुझान हटने के पीछे रुझान हटने के पीछे का एक कारण बाजार का न मिलना भी है। रीवा उसकी भी तैयारी में हैं। वो कहती हैं, “अभी मेरा यही मिशन है कि इस साल सौ किसानों को बेहतर तकनीक के साथ उन्हें बाजार भी उपलब्ध कराऊं, इसमें हम औषधीय पौधों को प्रमोट कर चाह रहे हैं, जोकि पूरी तरह से जैविक होगा। सरकार के साथ मिलकर काम करना चाहते हैं, क्योंकि सरकार के पास बहुत बजट होता है, जिसको हम इस्तेमाल कर सकते हैं। किसान और सरकार के बीच गैप है उसे हम कम कर सकें।”
औषधीय फसलों के साथ मसालों की खेती
सब्जियों की खेती के साथ सर्पगंधा, सतावर, अश्वगंधा, खस, लेमनग्रास, सिट्रोनेला जैसी औषधीय फसलों के साथ ही दालचीनी, आंवला, बेहरा, हरड़ और दूसरे कई तरह की मसालों की खेती भी पंजाब और हिमाचल प्रदेश के कई जिलो में शुरू की गई है। वो बताती हैं, “जिन्हें औषधीय फसलों की खेती करनी होती हैं, उन्हें हम पौधे भी उपलब्ध कराते हैं, अभी कुछ दिन पहले ही सर्पगंधा के दो लाख और सतावर के एक लाख 70 हजार पौधे किसानों को बेचे थे, जिनसे नौ लाख की कमाई हुई।
समाधान केंद्र में युवाओं को दिखायी जाएगी राह
वो बताती हैं, “मैं यहां पर किसान समाधान केंद्र बना रही हूं, जिसमें कि महिला और पुरुष किसानों के साथ ही युवा किसान भी हों, यहां से युवा दिल्ली में जाकर ड्राईविंग कर लेंगे, यहां पर उनके खेत खाली पड़े रहेंगे। वो सभी यहां पर आए, एक छत के नीचे बैठे।”
सिंचाई की नई तकनीक का इस्तेमाल
अभी हमने यहां पर टमाटर की मिक्स वैराइटी लगायी है, इसे हमने पॉली हाउस में पहली बार लगाया है, जोकि पूरी तरह से जैविक है। किसानों ने यहां पर पहली माइक्रो इरीगेशन देखा, इसमें बूंद-बूंद सिंचाई होती है। कम से कम पानी में कितनी सिंचाई हो सकती है ये हम देख रहे हैं।
जैविक खेती से भी बढ़ सकती है आय
लोग कहते हैं कि हम यूरिया और डीएपी डालेंगे तो इसकी ग्रोथ ज्यादा होगी, लोगों का जो मिथक है मैं उसी को खत्म करना चाहती हूं। इसीलिए मैंने खुद यहां एक्सपेरीमेंट किया है, देखिए एक-एक डाल में चार-छह टमाटर लगे हुए हैं।