“मैं किसान परिवार से नहीं हूं लेकिन मैं किसानों की मांगों का समर्थन करती हूं” पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा ने कहा

किसान आंदोलन को डेढ़ महीने से ज्यादा का वक्त हो गया है। कृषि कानूनों के खिलाफ लड़ाई किसान लड़ रहे हैं लेकिन उनका साथ देने वालों में काफी युवा और छात्र भी हैं.. गांव कनेक्शन ने ऐसे कई युवाओं से बात की.
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“मैं किसान परिवार से नहीं हूं। लेकिन मैं किसानों की मांगों का समर्थन करती हूं और ये सबके लिए जरुरी है, क्योंकि किसान नहीं तो हम नहीं। बहुत बेसिक बात है लेकिन लोग समझ नहीं रहे।” पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा शिवानी कहती हैं। वो यूनिवर्सिटी के तमाम दूसरे छात्र-छात्राओं के साथ किसानों को समर्थन देने सिंघु बॉर्डर पहुंची थी।

उनके बगल में खड़ी गरिमा संगर के हाथ में एक तख्ती थी जिस पर पंजाबी (गुरुमुखी) में लिखा था,

“सड्डा हक इत्थे रख” । गरिमा कहती हैं, “यही हमारा हक है कि कानून वापस लो, साड्डा हक इत्थे रख। क्योंकि हमें पता है कि बाजारवाद से क्या होगा? हर चीज का प्राइवेटाइजेशन (निजीकरण) हो रहा है, अगर खेती का भी प्राइवेटाइजन हो गया तो अभी जो साल में 20 हजार से 30 हजार साल के मर रहे हैं वो सब बढ़ेगी, किसानों को फायदा नहीं नुकसान होगा।”

सिंघु बॉर्डर पर किसानों के समर्थन में पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्राएं। फोटो- यश सचदेव

भारत के कृषि संकट के संदर्भ में किसानों की आत्महत्या बड़ा मुद्दा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की साल 2019 की रिपोर्ट में किसानों की आत्महत्या के आंकड़ों में मामूली कमी आई है लेकिन आज भी देश में 28 किसान रोजाना आत्महत्या कर रहे हैं।

पंजाब और हरियाणा में सितंबर के महीने से ही कृषि कानूनों का विरोध हो रहा है। 27 नवंबर से कई राज्यों के किसानों ने दिल्ली के बाहरी इलाकों में किसानों ने डेरा डाल रखा है। पंजाब और हरियाणा के किसानों को उनके राज्यों से भारी समर्थन मिल रहा है। पंजाब के कलाकार, डॉक्टर, इंजीनियर राजनेता, छात्र और मजदूरों का बड़ा वर्ग उनके समर्थन में है। ये लोग अलग-अलग तरीकों से सपोर्ट कर रहे हैं, जिनमें किसानों की बातों को सोशल मीडिया पर रखने से लेकर उनके लंगर में सेवा करने, खाना बनाने कपड़े धोने, सुरक्षा, वालेंटियर बनना आदि शामिल है।

गरिमा और शिवानी की तरह राधिका भी पंजाब यूनिवर्सिटी की छात्रा हैं वो जीरकपुर की रहने वाली हैं। राधिका पंजाबी में लिखे अपने पोस्टर का अर्थ समझाती हैं, “वो कहते हैं ये कानून किसानों के लिए हैं तो हमने लिखा है कि किसानों को ये कानून नहीं चाहिए आपको मुबारक। कहने का मतलब है कि जिनके लिए कानून बनाए गए हैं अगर उन्हें चाहिए नहीं तो आप जबरन लागू नहीं करवा सकते।” 

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किसानों की भीड़ और प्रदर्शन पर उड़ रहे सवालों को लेकर वो कहती हैं, “इतने लोग पैसे लेकर नहीं बुलाए गए हैं। हमारा इतिहास गवाह कि पैसे देकर इतने लोग नहीं बुलाए जा सकते है ये अनपढ़ नहीं है आप ये भी नहीं कह सकते कि जागरुक नहीं है। अगर आप ये कहेंगे कि किसानों को कानून की अच्छाई-बुराई समझ में नहीं रही तो मैं नहीं मानूंगी। वैसे भी आपके कानून होते ही हैं ऐसें, नोटबंदी तो आज तक सीए (चार्टेड अकाउंटेंट) को समझ नहीं आई।”

सिर्फ सिंघु बॉर्डर ही नहीं टिकरी, गाजीपुरपुर बॉर्डर, शाहजहांपुर बॉर्डर, चीका, पलवल आदि में जहां किसानों के धरने चल रहे हैं युवा और छात्र उनके समर्थन में पहुंच रहे हैं। गांव कनेक्शन ने इस संबंध में कई बार खबरें की हैं।

आंदोलनकारी किसान संगठन सरकार के साथ 8वें दौर की वार्ता बेनतीजा रहने के बाद 26 जनवरी को दिल्ली में ट्रैक्टर परेड की तैयार कर रहे हैं। इस आंदोलन में शामिल होने के लिए किसानों के साथ देशभर के युवाओं को बुलाया जा रहा है तो प्रस्तावित परेड में कोई अराजकता न हो, शांति बने रहे इसलिए वालेंटियर भी रखे जा रहे हैं। पढ़े लिखे युवा इसके लिए आगे आ रहे हैं। सरकार के साथ किसानों की अगली वार्ता 15 जनवरी को है। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग पर अड़े हैं। जबकि सरकार संसोधन की बात कर रही है। 

टिकरी बॉर्डर पर अपने साथ एक बड़ा बैग और कंबल लेकर पहुंची जसलीन कौर पेशे से चार्टेड अकाउंटेट हैं वो अगोहर पंजाब की रहने वाली हैं। जसलीन कहती हैं, मेरे पिता सरकारी नौकरी में हैं और प्राइवेट मैं जॉब में करती हैं, मैं इतना कहूंगी कि ये नए कानून सिर्फ खेती के नुकसानदायक नहीं बल्कि भारत की अर्थव्यवस्था के लिए भी ठीक नहीं हैं। जब लॉकडाउन के बाद हर सेक्टर का ग्राफ नीचे जा रहा था, अकेले एग्रीकल्चर (कृषि क्षेत्र) ऊपर जा रहा था। खेती हमारी रीढ़ की हड्डी है, हमें इसको बचाना होगा।”

जसलीन उन लोगों से भी सवाल करती हैं जो इस आंदोलन को पंजाब हरियाणा के किसानों का विरोध बताते हैं, “मैं सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव (सक्रिय) हूं मैं देखती हूं बहुत सारे लोग कह रहे हैं इन कानूनों से सिर्फ पंजाब हरियाणा के किसानों को नुकसान है क्या? ग्रीन रेव्यूलेशन को लेकर कहा जाता है कि इसका फायदा सिर्फ इन दो राज्यों उठाया लेकिन लोग ये नहीं देख रहे कि हरित क्रांति का कितना बड़ा खामियाजा भी यहां के लोग उठा रहे हैं। पंजाब हरियाणा के लोगों ने इतने वर्षों तक अनाज पैदा करके देश को खिलाया है, आप समर्थन न करें तो कम से कम विरोध भी न करें।”

टिकरी बॉर्डर पर पांच दिन से रह रही मानसा जिले के गांव बिकी की रहने वाली गुरुप्रीत (19वर्ष) पांच के मुताबिक उनके पिता कामरेड गुरुनाम सिंह पंजाब में एक किसान यूनियन के सूबा प्रधान हैं वो जब से प्रदर्शन शुरु हुए इसमें शामिल हैं। वो कहती हैं, “रही बात मेरे यहां आने की तो, किसानों के बच्चे होने के नाते मेरा हक बनता है कि हम आएं और बुजुर्गों का साथ दें। हम अगली पीढी को बताएंगे कि हम भी ऐसे आंदोलन में शामिल हुए थे, यहां (टिकरी या कोई अन्य आंदोलन की जगह) खुले में सोना रहना बहुत टफ (मुश्किल) काम है लेकिन किसान जुटे हैं।”

सिंघु बॉर्डर पर मिले पूरब गिल गांव कहते हैं, “हम कॉरपोरेट के विरोधी नहीं है। हम उनकी बहुत सारी जीचों का इस्तेमाल करते हैं लेकिन सबसे जरुरी है क्या है? सबसे जरुरी चीज है खाना। हम जब खाते हैं फिर दूसरे काम कर पाते हैं और ये खाना किसान उगाता है। सरकार को चाहिए कि किसान जिस एमएसपी कानून की बात कर रहे हैं वो उन्हें दे दिया जाए बस।”

किसान आंदोलन के दौरान के दौरान किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ तो मोर्चा खोल ही रखा है साथ ही अडाणी अंबानी समेत कई कॉरपोरेट का बहिष्कार भी चल रहा है। जियो सिम पोर्ट किया जा रहा है। पंजाब में कई बड़े स्टोर पर कई महीनों से ताले लगे है।

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7 जनवरी को किसानों ने अपनी मांगों के समर्थन में दिल्ली के बाहरी इलाकों में ट्रैक्टर मार्च निकाला जिसमें भारी संख्या में युवा शामिल हुए। फोटो- अमित पांडे।

गांव कनेक्शन ने कई युवाओं से सवाल किया, कॉरपोरेट, इंड्रस्टी और बाजार से अवसर भी पैदा होते हैं, बहुत सारे युवाओं को रोजगार भी मिलता है। तो कॉरपोरेट को लेकर उनकी क्या राय है।

जवाब में कई युवाओं ने कहा कि उन्हें लगता है कॉरपोरेट को हाथ खेती में नहीं आने देना चाहिए।

गरिमा संगर कहती हैं, “एयरपोर्ट, पोर्ट, एयरइंडिया बीएसएनल सब प्राइवेट हाथों में दिए जा रहे हैं, खेती में भी ये आ गए तो किसान कहां जाएंगे?”

लुधियाना से एलएलएम की पढाई कर रही हरमान मथारू कहती हैं, “ये किसान आने वाली पीढ़ी के भविष्य के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। 80 साल के बुज़ुर्ग ठण्ड में बैठे हैं। ऐसे में हमारा फ़र्ज़ है हम उनके साथ आकर इस लड़ाई को आगे लेकर जाएं।”

टिकरी व सिंघु बॉर्डर पहुंचे कई छात्र पोस्टक प्रदर्शन और अस्थाई पुस्तकालय चलाते हैं। मनधीर सिंह (40) से शहीद भगत सिंह के नगर, नवाशहर से आये हैं और सिंघु बॉर्डर पर लाइब्रेरी चलाते हैं। वो कहते हैं, “यहां पंजाबी, हिंदी और अंग्रेजी में किताबें मौजूद हैं। इन किताबों में पंजाब का इतिहास लिखा है व कई किताबों में किसान संघर्ष की कहानियां हैं। रोज़ाना हज़ार किताबें यहाँ डोनेशन में आती हैं। जो लोग किताबें ले जाना चाहते हैं वो अपना नाम और फोन नंबर लिखवा जाते हैं।”

किसान आंदोलन के लिए कई युवाओं ने अपनी नौकरियों से छुट्टियां ली हैं। विदेशों में रहने वाले पंजाबी समुदाय के लोग अपने साथियों के साथ भारत भी लौटे हैं। तो कई युवाओं ने नौकरियां तक छोड़ दी हैं। ऐसे ही एक युवा प्रीतपात सिंह से मुलाकात टिकरी बॉर्डर पर हुई।

किसानों के आंदोलन में शामिल होने के लिए हरियाणा के प्रीतपाल सिंह ने अपनी नौकरी छोड़ दी है वो टिकरी बॉडर पर किसानों का मुफ्त इलाज करते हैं। फोटो -शिवांगी सक्सेना

प्रीतपाल सिंह (29 ) हरियाणा के सिरसा जिले के सिविल अस्पताल में काम किया करते थे। आंदोलन में हिस्सा लेने के लिए वो अपनी तीस हज़ार प्रति माह की नौकरी छोड़कर आये हैं। प्रीतपाल कहते हैं कि आंदोलन में भाग लेना ज़्यादा ज़रूरी है, “युवाओं में जोश है, बुज़ुर्गों में होश है। जब दोनों एक हो जाते हैं तब ताकतवर से ताकतवर सियासत को घुटने टेकने पड़ते हैं। सरकार ये काले क़ानून वापस नहीं लेकर युवाओं का भरोसा तोड़ रही है।” 

इनपुट- यश सचदेव, शिवांगी सक्सेना

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