पन्ना की खदानों में हीरा खोजने के जुनून ने कई लोगों के जीवन और आजीविका को खाक कर दिया है। इन्हीं में से एक हैं जनकपुर गांव के 70 वर्षीय खेलैया साहू।
“मैं 20 साल का था जब मैंने हीरे के लिए खदानों की खोज शुरू की। मैंने अगले 50 वर्षों तक हीरे की खोज जारी रखी। मैंने इसके लिए लिए चार एकड़ (1.6 हेक्टेयर) खेतिहर जमीन भी बेच दी।” साहू गांव कनेक्शन को बताते हैं।
“मैंने अपना पूरा जीवन हीरे की तलाश में खपा दिया और मुझे जो कुछ मिला वह औद्योगिक ग्रेड के हीरे जो 100 से 1,300 रुपए के बीच बेचे गए थे। पन्ना में हीरा खनन से मैंने बस इतना ही कमाया है, “वे आगे कहते हैं।
राज्य की राजधानी भोपाल से लगभग 384 किलोमीटर की दूरी पर स्थित मध्यप्रदेश का पन्ना जिला अपनी हीरे की खदानों के लिए विश्व प्रसिद्ध है। इसकी समृद्ध भूमि पर देश के सबसे गरीब लोग रहते हैं। जिले के बड़े हिस्से पर अवैध रूप से हीरा खनन होता है, जिससे राज्य के खजाने के साथ-साथ स्थानीय लोगों और पर्यावरण को भी बड़ा नुकसान होता है।
पन्ना के पर्यावरण कार्यकर्ता इंद्रभान सिंह बुंदेला ने गांव कनेक्शन को बताया, “इन दिनों पन्ना में पाए जाने वाले अधिकांश हीरे अवैध खदानों (लगभग एक हजार) से हैं, जो सरकार की बिना आज्ञा के चल रहे हैं।” इंद्रभान के अनुसार क्षेत्र की अधिकांश राजस्व भूमि का पहले ही हीरे की खोज के लिए दोहन किया जा चुका है।
“पन्ना में एक बड़ा वन क्षेत्र है जहां लोग चोरी से प्रवेश कर जाते हैं और हीरे की खोज करते हैं। यह सब स्थानीय पारिस्थितिकी के लिए एक बड़ा नुकसान है। खनन माफिया स्थानीय मजदूरों का शोषण कर रहे हैं।’ “अक्सर वन अधिकारी इन खदानों पर छापा मारते हैं और खनन माफियाओं के साथ टकराव होता है। पिछले साल बिश्रामगंज वन प्रभाग के रहुनिया बीट में अधिकारियों पर माफियाओं ने हमला किया था और डिप्टी रेंजर सहित चार अन्य अधिकारी इस घटना में घायल हो गए थे, “वे आगे कहते हैं।
पन्ना में हीरा खनन- वैध और अवैध
ऐतिहासिक रूप से भारत 3,000 से अधिक वर्षों तक दुनिया में हीरे का एकमात्र स्रोत था, जब तक कि ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका में हीरा नहीं मिल रहे थे। पन्ना की खदानों में दुनिया में उपलब्ध हीरे का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा था, राष्ट्रीय खनिज की वेबसाइट के अनुसार।
भारतीय खान ब्यूरो की रिपोर्ट की मानें तो दिनांक 1.4.2015 की स्थिति के अनुसार देश में हीरे के कुल संपदा 31,836,091 कैरेट तक होने का अनुमान है। हीरे के अनुमानित स्रोत केवल तीन राज्यों में केंद्रित हैं। इनमें से मध्य प्रदेश को केवल अवर्गीकृत ग्रेड 28,709,136 कैरेट (90.17 प्रतिशत) का श्रेय दिया जाता है, इसके बाद आंध्र प्रदेश में 1,822,955 कैरेट (5.73 प्रतिशत), 235,165 कैरेट रत्न ग्रेड, 58,423 कैरेट औद्योगिक ग्रेड और 1,529,367 कैरेट अवर्गीकृत ग्रेड है। 1,304,000 कैरेट (4.10 प्रतिशत) के साथ छत्तीसगढ़ में 521,600 कैरेट का रत्न ग्रेड और 782,400 कैरेट का औद्योगिक ग्रेड है।
पन्ना जिले में लगभग 70 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र विश्व प्रसिद्ध हीरे की खदानों का आधिकारिक साइट है। दो स्थान – मझगवां किम्बरलाइट पाइप और हिनौता किम्बरलाइट पाइप – जिले में हीरे के प्राथमिक और कानूनी खाने हैं।
किम्बरलाइट पाइप तब बनते हैं जब ज्वालामुखी विस्फोट से पृथ्वी की सतह पर एक नलिका बन जाती है। हीरे की खोज के लिए ऐसी जगहों की मांग सबसे ज्यादा होती है। लाखों साल पहले विस्फोट के वजह से पृथ्वी के दुर्लभ खनिज ऊपर की ओर आ गये जो ऊपर सतह से लगभग 70 किलोमीटर नीचे से शुरू होते हैं।
ये साइट्स पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 20 किलोमीटर की दूरी पर स्थित हैं और हैदराबाद स्थित सार्वजनिक सामाजिक उपक्रम (पीएसयू) द्वारा संचालित हैं जिन्हें राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) कहा जाता है।
राज्य सरकार एक वर्ष के लिए 200 रुपए की लागत वाले चालान के माध्यम से क्षेत्र में खनन करने की अनुमति देती है। इन खानों के प्रबंधन और प्रशासन के लिए जिम्मेदार सरकारी विभाग हीरा कार्यालय पन्ना है।
एनएमडीसी के अनुसार क्षेत्र में हीरा प्रति 100 टन टफ (ज्वालामुखी राख के से बनी एक हल्की झरझरी चट्टान) से लगभग 10 कैरेट (1 कैरेट = 0.2 ग्राम) के आसपास निकलता है।
पन्ना के हीरा अधिकारी रवि पटेल ने गांव कनेक्शन को बताया कि 2020 में हीरा खनन के लिए कुल 633 जमीन के टुकड़े (8 मीटर X 8 मीटर) आवंटित किए गए थे, जबकि 2021 में ऐसे 542 टुकड़े सौंपे गए थे।
“जिस व्यक्ति को जमीन दी गई है, उसे हीरे मिलते हैं, उसे हीरा कार्यालय में जमा करना होता है, जिसके बाद नीलामी होती है और सरकार द्वारा 11.5 प्रतिशत रॉयल्टी और एक प्रतिशत टैक्स लिया जाता है। शेष राशि उस व्यक्ति को दी जाती है जिसके नाम पर पट्टा (भूमि) आवंटित किया गया था, “पटेल समझाते हुए कहते हैं।
लेकिन हीरा खनन की इस कानूनी व्यवस्था से परे क्षेत्र की अधिकांश खदानें अवैध हैं। नवंबर 2015 की एक रिपोर्ट के अनुसार खनन और संरक्षण भारत के पन्ना में आदिवासियों को विस्थापित करता है। पन्ना जिले में 700 अवैध हीरे की खदानें हैं। 2015 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने जिले में अवैध हीरे की खदानों को बंद करने का आदेश दिया था, बावजूद इसके खदाने ऐसी ही चल रही हैं।
क्षेत्र में काम करने वाले कार्यकर्ता नाम न छापने की शर्त पर बताते हैं कि पन्ना में हीरा खनन का एक बड़ा हिस्सा अवैध है। हीरा शिकारी सबसे अच्छी गुणवत्ता वाले रत्न सीधे बिचौलियों को बेचते हैं जो उन्हें सूरत, मुंबई, हैदराबाद आदि के व्यापारियों को भेजते हैं।
हीरे के लिए जुनून – गरीबी के लिए एक खतरनाक
“मैं छह-सात साल से अधिक समय से हीरे की खुदाई कर रहा हूं, लेकिन कुछ भी नहीं मिला। यह व्यवसाय का कम और शौक का काम अधिक है, वास्तव में खदानों में से कुछ भी मूल्यवान नहीं निकलता। मैं अब यह काम नहीं करता, ” खुदाई करने वाले बब्बू गोंड ने गांव कनेक्शन को बताया।
अक्सर हीरा खोजने का जुनून भारी कर्ज में दबने के साथ खत्म हो जाता है जैसा कि जनकपुर गांव के साहू के साथ हुआ था। साहू के महंगे शौक की वजह से उन पर 1,000,000 रुपए का कर्ज हो गया जिसे उन्होंने अपनी पुश्तैनी जमीन को 1,600,000 रुपए में बेचकर चुकाया। यह सौदा बहुत घाटे का था, उनके अनुसार जमीन की वास्तविक कीमत एक करोड़ रुपए थी।
“कर्ज चुकाने के बाद जो कुछ बचा था, मैंने उस पैसे को वापस हीरे के खनन में लगा दिया। इससे मदद तो नहीं मिली लेकिन लेकिन मैंने कीमती टुकड़ों की तलाश जारी रखी। यह मेरे लिए जुए जैसी लत थी, ” साहू ने अपनी कमजोर आवाज में गांव कनेक्शन को बताया।
पूर्व में हीरा खोदने वाले एक व्यक्ति ने बताया कि कुछ नहीं रह गया अब। हम बुद्ध भी हो गए अब तो … अब कुछ नहीं करते हैं हम,”। (अब मेरे पास पैसे नहीं बचे हैं। मैं बूढ़ा भी हो गया हूं, मैं अब काम नहीं करता)
साहू के चार बेटे और चार बेटियां हैं। एक बेटे (22 वर्षीय) को छोड़कर सभी की शादी हो चुकी है। “वे मेरा बिल्कुल समर्थन नहीं करते। मैं और मेरी पत्नी वृद्धावस्था पेंशन पर जीवित हैं। मेरे पास गांव के इस छोटे से घर के अलावा और कोई संपत्ति नहीं है।
पन्ना की जमीन भले ही बहुत समृद्ध है लेकिन इसकी भूमि पर रहने वाले लोग देश के सबसे गरीब लोगों में से एक हैं जो उच्च कुपोषण और सिलिकोसिस जैसी बीमारी के बोझ से पीड़ित है। हीरे की खदानों के अलावा पन्ना में बड़ी संख्या में पत्थर की खदानें भी हैं जहाँ स्थानीय आदिवासी काम करते हैं और दिन-रात पत्थर की धूल के कारण सिलिकोसिस बीमारी से पीड़ित हो जाते हैं।
अवैध हीरे की खदानों में काम करने वाले अधिकांश मजदूरों को माफिया कम पैसे देते हैं और उनका शोषण करते हैं, लेकिन जब गांव कनेक्शन ने खदान में काम करने वालों से बात करने का प्रयास किया तो उन्होंने बात करने से इनकार कर दिया क्योंकि इससे उनकी आजीविका कमाने का एक मात्र जरिया खतरे में पड़ सकता है।
कार्यकर्ता बुंदेला ने गांव कनेक्शन को बताया कि इनमें से अधिकांश श्रमिक, जिनमें से अधिकांश आदिवासी समुदायों से हैं, हीरे की खदानों में खतरनाक परिस्थितियों में काम करते हैं क्योंकि क्षेत्र में रोजगार का कोई अन्य अवसर नहीं है।
कम स्टाफ वाला हीरा विभाग
खानों से निकलने वाले अधिकांश हीरे आसानी से अवैध रूप से बेचे जाते हैं। स्टाफ कम होना भी इसकी एक बड़ी वजह है। हीरा कार्यालय के एक अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर गांव कनेक्शन को बताया कि विभाग में कर्मचारियों की भारी कमी है।
“पहले, अधिकारियों की संख्या 32-34 हुआ करती थी। अब उनमें से तीन ही बचे हैं। उनमें से एक अगले महीने सेवानिवृत्त होने वाला है। इतना कम स्टाफ वाला कार्यालय यहां हीरा खनन के काम पर निगरानी कैसे रख सकता है?” अधिकारी ने कहा।