इस मुस्लिम परिवार में तीन पीढ़ियों से हो रहा रावण का पुतला बनाने का काम

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मेरठ (उत्तर प्रदेश)। साल भर लोग दशहरा का बेसब्री से इंतजार करते हैं, इस दिन सबसे खास होता है रावण दहन। ऐसे में रावण का पुतला बनाने वाले मुस्लिम परिवार की मांग भी बढ़ जाती है, जिनके तीन पीढ़ियों से रावण का पुतला बनाने का काम हो रहा है।

मेरठ के वैशाली मैदान की रामलीला प्रमुख मानी जाती है और इस रामलीला को खास बनाते हैं असलम। इनके यहां तीन पीढ़ियों से रावण बनाने का काम हो रहा है। वो बताते हैं, “मेरी तीसरी पीढ़ी पुतले तैयार कर रही है इससे पहले भी मेरे दादा और पिता रावण कुंभकर्ण और मेघनाथ के पुतले तैयार करते थे। इस बार रावण के पुतले की लंबाई 80 फीट रखी गई है। तो छावनी की रामलीला में इस बार रावण की आंखें घूमती हुई दिखाई देंगी साथ में रावण की ढाल घूमेगी और इस बार रावण को चार घोड़ों के रथ पर सवार दिखेगा।”

वो आगे बताते हैं, “हम सामाजिक एकता का प्रतीक दे रहे हैं और यही हमारी रोजी रोटी जिसके कारण हमारा परिवार का पालन पोषण चल रहा हैं।”

असलम बताते हैं, “यह काम मैं साल 1989 से लेकर अब तक करता आ रहा हूं, इससे पहले मेरे वालिद साहब करते थे उसके बाद अब मैं करने लगा और मेरे चार बेटे है वह भी इस काम में मेरा हाथ बंटाते हैं।” वो आगे बताते हैं कि सावन महीने में हम कावड़ बनाते हैं और हम खुद भी हरिद्वार से चलकर मेरठ पदयात्रा करके शिवलिंग पर जल चढ़ाते हैं और कावड़ लाते हैं। यह मुस्लिम परिवार मेरठ मैं एक अलग पहचान है जो भाईचारे की मिसाल है लोगों को सीखना चाहिए। साल 1979 में 1400 रुपए में काम शुरू किया था आज इतने साल बाद उसी काम में एक लाख रुपए तक लग जाते हैं।

वैशाली मैदान में रावण का दहन रामलीला का मंचन अंग्रेजों के जमाने से चला आ रहा है असलम बताते हैं, “मेरठ में 1980 में कर्फ्यू का दौर था और चारों तरफ आर्मी के जवान पुलिस तैनात थी उस दौरान भी मैंने रावण का पुतला तैयार किया था।” वो आगे कहते हैं कि आर्मी की फौज के बीच रावण का दहन हुआ था उस समय केवल 12 घंटे के लिए कर्फ्यू खोला गया था। असलम के वालिद साहब अंग्रेजो के जमाने से रावण का पुतला बनाते आए हैं।

असलम बताते हैं कि मेरे दादा साहब अंग्रेजों के समय में भी रावण के पुतले बनाया करते थे और यह हमारा खानदानी काम है उनसे ही हमने यह प्रेरणा और कलाकारी सीखी थी, जिसके कारण आज हमारी रोजी-रोटी और परिवार पल रहा है। हम मंदिर मस्जिद गुरुद्वारा में भी सजाने का काम करते हैं ।

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