अरविंद शुक्ला/दिति बाजपेई
लखनऊ/सीतापुर/ललितपुर। “यहां तड़प-तड़प कर मरने से अच्छा ये गाय बूचड़खाने में चली जाती और एक बार में कट कर मर जाती। कम से कम उनकी यह हालत तो न होती।” लखनऊ में एक गोवंश आश्रय स्थल के सामने गुजर रहे एक बुजुर्ग ने गुस्से में कहा। उन्होंने अपना नाम नहीं बताया लेकिन ये जरुर कहा कि यहां रोजाना कई गाय (गोवंश) मर रही हैं।
बुजुर्ग का ये गुस्सा जायज था क्योंकि उत्तर प्रदेश के विधानभवन से करीब से करीब 40 किलोमीटर दूर मोहनलालगंज तहसील के उतरावां गांव के गोवंश आश्रय स्थल में हालात बद्तर है। जब ये गोशाला बनी थी तो ग्रामीणों के मुताबिक यहां 400 से ज्यादा गोवंश (गाय, बछड़े और सांड़) थे, लेकिन जब गांव कनेक्शन की टीम यहां पहुंची तो सिर्फ 20 पशु थे। जिसमें से तीन मरने की कगार पर थीं और दो बछड़े सामने मरे पड़े थे।
गर्मी और भूख से तड़प कर जमीन पर गिरीं गाय जिंदा थीं लेकिन उनकी आंखे निकालकर कौवे खा रहे थे। गोशाला में एक जगह पानी भरा था वहीं भूसा पड़ा था। लेकिन न तो यहां छांव का इंतजाम था न कोई रखवाला ही था। कटीले तारों की इस घेराबंदी के बीच जगह-जगह जेसीबी के गड्डे खुदे थे। बताया गया कि यहां मरने के बाद इन पशुओं को दफना दिया जाता है।
पशुपालन विभाग द्वारा किए गए सर्वे के मुताबिक 31 जनवरी वर्ष 2019 तक पूरे प्रदेश में निराश्रित पशुओं (छुट्टा पशुओं) की संख्या सात लाख 33 हज़ार 606 है। विभाग की 30 अप्रैल तक रिपोर्ट के अनुसार तीन लाख 21 हजार 546 पशुओं को संरक्षित (अस्थाई गोवंश स्थल में रखा गया।) किया गया। यानि बाकी के करीब करीब 3 लाख अभी भी छुट्टा है।
भारत खासकर उत्तर प्रदेश में छुट्टा गोवंश बड़ी समस्या बने हुए हैं। यूपी में राज्य सरकार द्वारा अवैध बूचड़खानों पर प्रतिबंध और पशु कारोबारियों पर लगातार हमलों के बाद पिछले 3-4 वर्षों में ये समस्या और बढ़ गई। फसल बचाने के लिए किसानों की रातें खेतों में बीत रहीं तो सड़क पर वाहन चालकों के लिए ये पशु समस्या बने। हंगामा बढ़ने पर योगी आदित्यनाथ सरकार ने राज्य में ब्लॉक और न्याय पंचायत स्तर पर गोवंश आश्रय खोलने का निर्णय लिया।
अस्थाई गोवंश आश्रय खोलने की शुरुआत जनवरी 2019 में हुई थी। 10 जनवरी को प्रदेश के सभी जिलों में आश्रय खोलने के निर्देश दिए गए। सरकार ने इसके लिए 200 करोड़ रुपए का बजट आवंटित किया गया था।
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योजना के अनुसार जिले के छुट्टा पशुओं को पकड़कर इन गोशालों में रखा जाएगा। इन पशुओं की गणना के लिए टैगिंग, साड़ों का बधियाकरण किया जाना था, ताकि नस्ल खराब न हो। ग्राम पंचायतों की बेकार, ऊसर और चरागाह की जमीन पर कटीले तारों की फेसिंग, चारा, पानी का इंतजाम और रखरखाव होना था। लेकिन गोशालाएं खुलने के 4 महीने में ये अव्यवस्था का शिकार हो गई हैं। ग्रामीणों के मुताबिक हजारों पशु मर गए और कई जगह उन्हें फिर छोड़ दिया गया।
लखनऊ में उतरावां गांव के गोवंश आश्रय में छांव के नाम पर सिर्फ कुछ पेड़ थे। यहीं पर गांव के कुछ बच्चे अमिया तोड़ रहे थे। आठ साल के एक बच्चे ने गांव कनेक्शन को बताया, रोज 4-5 गाय मर रही हैं, कोई देखने वाला नहीं है। पहले यहां 400-450 गाय थीं। कम से कम 100 तो मर गई होंगीं। बाकी को उन लोगों ने (प्रधान और मजदूरों) ने खुद ही भगा दिया।”
हाथ से इशारे करते हुए उस आठ साल के बच्चे ने ऐसी कई जगह दिखाई जहां गाय के मरने के बाद उनको दफनाया गया था। ” इन गायों की भी कल तक मृत्यु हो जाएगी। वो देखो वहां ऐसी ही दो और पड़ी हैं।” चिलचिलाती धूप में तड़पती एक गाय को देखकर बच्चे ने कहा। गाय की दोनों आंखों से खून निकल रहा था।
गोवंश आश्रय स्थल में अव्यवस्था और पशुओं के मरने का सिलसिला सिर्फ उतरावां में नहीं है, यूपी के तमाम जिलों से ऐसी शिकायतें आ रही हैं। लखनऊ से करीब 450 किलोमीटर दूर यूपी के ललितपुर जिले मडावरा तहसील के गिरार डगडगी में 26.50 एकड़ में तीन हजार पशुओं की क्षमता वाली गोशाला है। ग्रामीणों के मुताबिक ये आश्रय स्थल नहीं कब्रगाह बनता जा रहा है।
यहीं मडावरा इलाके के इमलिया गांव के भान सिंह (32 वर्ष) बताते हैं, “15-20 दिन पहले यहां 10-20 गायें जानवर एक साथ मर रहे थे। ये लोग पशुओं को ट्रैक्टर में भरकर धसान नदी और नाले में फेक रहे थे। बदबू के चलते ग्रामीणों ने इलाके में महुआ बीनना बंद कर दिया था। नदी का पाना दूषित हो गया था।”
“गोशालों में बहुत सारी समस्याएं है। अप्रैल में ही तापमान 45 डिग्री तक पहुंच चुका है। ज्यादातर गोशालाएं खुले में हैं। न ठीक से चारे का इंतजाम है न पानी का। इन पशुओं को हाइरपेथेरमिया (जैसे मनुष्यों को लू लगती है) और डिहाइडेशन (पानी की कमी) होगा। इसलिए पशुओं के मरने की ख़बरें आ रही हैं।” पशुपालन विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया।
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उत्तर प्रदेश में छुट्टा पशुओं के रखरखाव और खानपान के लिए बाकायदा जनता पर सेस लगाया गया था। योजना के तहत सरकार एक पशु को रखरखाव के लिए 30 रुपए देती है। गायों को लेकर शुरु की गई योगी आदित्यनाथ सरकार की अति महत्वाकांक्षी योजना में यहीं से घुन लगना शुरु हो गया। पशुपालन विभाग के अधिकारी, कर्मचारी से लेकर गोशाला का प्रबंधन करने वाला प्रधान तक कह रहे हैं कि ये बजट काफी कम है।
“अस्थाई गोशाला खोलने की योजना डीपीआर (डिटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट) में ही खोंट है। अब इस महंगाई में एक पशु 30 रुपए में कैसे जिंदा रह सकता है। गोशाला में जानवर आ गए, उनकी सेवा कौन करेगा, बीमार गायों का इलाज कौन करेग। बजट में रखरखाव के लिए मजदूरों की बेहतर व्यवस्था और दवाओं का इंतजाम न होने से ये पशु मर रहे हैं।” एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर आगे बताया।
योगी सरकार ने अपने तीसरे बजट में गोवंश के संवर्धन, संरक्षण, ग्रामीण क्षेत्रों में अस्थाई गोशालाएं, शहरी इलाकों में कान्हा गोशाला और बेसहारा पशुओं के रखरखाव के लिए अलग-अलग मदों में 612.60 करोड़ रुपए का इंतजाम किया था। इनमें से 248 करोड़ रुपए ग्रामीण इलाकों के लिए थे। जमीन पर हालात वैसे नहीं दिखे जैसे होने चाहिए थे।
पशुपालन विभाग के विकास एवं प्रशासन निदेशक डॉ. चरण सिंह चौधरी ने बताया , “प्रदेश के 68 जिलों को एक-एक करोड़ रुपया जबकि बुंदेलखंड के 7 जिलों को डेढ़ करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं। 30 अप्रैल तक इन जिलों को 33 करोड़ 41 लाख रुपए भेजे जा चुके थे। ये पैसा मंडी परिषद से लिया गया है।” गायों के लिए प्रदेश सरकार ने मंडी, शराब और टोल आदि पर सेस लगाया था।
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2 जनवरी 2019 को जारी शासनादेश के मुताबिक ग्रामीण इलाकों में 248 करोड़ रुपए थे। अस्थाई गोशालाओं में हो रहे कामकाज की देखरेख के लिए कई टीमों का गठन भी किया गया है। जिन जगहों पर पशुपालन विभाग, स्थानीय निकाय, ग्राम प्रधान सक्रिय हैं वहां पर बेहतर कामकाज हो रहा है। ललितपुर जिले के कल्यानपुर गोशाला और बस्ती जिले की एक गोशाला मॉडल गोशालाएं हैं। कई दूसरे जिलों में भी सार्थक काम हो रहा है। लेकिन ज्यादातर जगहों से समस्याएं की ख़बरें आती रही है। कई लोगों ने गांव कनेक्शन को फेसबुक/ट्वीटर समेत दूसरे माध्यमों से अपने इलाके की गोशालओं की समस्याएं भेजीं।
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उत्तर प्रदेश में गायों के संरक्षण और गोशालाओं पर नजर रखने के लिए बनाए गए गोसेवा आयोग के सचिव डॉ. आनंद सोलंकी ने बताया, “हाल ही में कुछ टीमें बनाई गई हैं। जिसमें पशुपालन विभाग के 18 अधिकारी हैं। जो 18 मंडलों में जाकर इन आश्रय स्थलों का मुआयना कर रहे हैं। अभी मैं कुछ दिनों पहले मुरादाबाद की एक गोशाला गया था, जहां गायों को सिर्फ भूसा खिलाया जा रहा था।”
गोशाला चलाने में दिक्कत कहा आ रही है, ये पूछने पर मऊ जिले में प्रधान संघ के अध्यक्ष विवेकानंद यादव कहते हैं, ” गोशाला में सिर्फ गड्डे खुदवाने से काम नहीं चलेगा। वहां छत होनी चाहिए। पानी के लिए बोरिंग हो। हैंडपंप तक तो है नहीं। एक पशु के लिए 30 रुपए काफी कम हैं। दूसरा पैसा समय पर आ नहीं रहा। ऐसे में कुछ दिनों तक प्रधानों ने अपने पैसे से काम चलाया फिर पशुओं को छोड़ना शुरु कर दिया।”
फोन पर कुछ देर चुप रहने के बाद वो कहते हैं, “ये पशुओं से साथ अन्याय है। इतनी धूप में पशुओं को रखने से अच्छा है उन्हें छोड़ ही दिया जाए। वर्ना मर ही जाएंगी।”
गोसंरक्षण और संवर्धन में पशुपालन विभाग का अहम रोल है। लेकिन विभाग के अधिकारी और चिकित्सक खुद समस्याओं से जूझ रहे हैं। पशु चिकित्सक पशुओं के इलाज के बजाए चुनाव ड्यूटी और दूसरे कामों में लगाए गए हैं।
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उत्तर प्रदेश पशु चिकित्सा संघ के अध्यक्ष राकेश कुमार ने गांव कनेक्शन से कहा, “गायों की सेवा करना है। तो पशु चिकित्सकों को चुनाव और गैर विभागीय ड्यूटी (स्कूल निरीक्षण,मनरेगा, सफाई) से हटाकर गायों की देखरेख में लगाया जाए। गोशालों में दवाइयों के लिए बजट का इंतजाम किया जाए। वो भी मनरेगा के मद में नहीं बाकायदा अलग फंड बनाकर इसके साथ ही पशु चिकित्सकों की निजी प्रैक्टिस बंद करवाकर उन्हें तीन शिफ्टों में काम पर लगाया जाए।”
देश के सबसे ज्यादा पशु उत्तर प्रदेश में हैं। लेकिन यहां पर पशुओं के अनुपात में पशु चिकित्सकों की संख्या काफी कम है। राकेश कुमार बताते हैं, “औसतन 5000 पशुओं पर एक पशु चिकित्सक होना चाहिए लेकिन यूपी में ये संख्या 30000 से ज्यादा है। जबकि पशुओं के मामले में काफी कम संख्या वाले कर्नाटक में करीब 7000 पशुओं पर एक डॉक्टर है। ये अलग बात है कि प्रदेश में 6000 से ज्यादा पशु चिकित्सा स्नातक बेरोजगार घूम रहे हैं।”
गोशालाओं में समस्याएं के चलते एक बार फिर ज्यादातर पशु छुट्टा घूम रहे हैं। करोड़ों के बजट के बावजूद न किसानों की समस्या का हल और आवारा जानवरों की स्थिति और बदतर हो गई। बाराबंकी के लालापुर गाँव में रहने वाले जनार्दन वर्मा बताते हैं, ” सर्दियों में जाग जागकर खेतों की रखवाली करते हैं, गोशाला बनी है लेकिन पशु सारे बाहर हैं। अभी भी पूरी की पूरी फसल बर्बाद कर देते हैं।”
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के महोली में बनी कान्हा आश्रय स्थल में गायों की दशा इतनी गम्भीर बनी हुई है कि कोई देखने वाला नही है, जब गांव कनेक्शन के प्रतिनिधि ने हक़ीक़त जानने के लिए गौशाला में प्रवेश करना चाहा तो वहाँ पर तैनात चौकीदार ने रोक दिया और नियम कानून बताने लगा कहने लगा की जिलाधिकारी का आदेश है कि कोई अंदर नही जा सकता है। काफी कड़ी मशक्कत करने के बाद जब अंदर प्रवेश किया तो देखा गायों को सिर्फ भूसा खिलाया जा रहा था न उनके लिए खाने पीने की कोई उचित व्यवस्था थी और न उनके रहने की।
सहयोगी: ललितपुर से अरविंद परमार
बाराबंकी से वीरेंद्र सिंह
सीतापुर से मोहित शुक्ला