सुरेश कबाड़े: गन्ने से 50-60 लाख की कमाई करने वाला किसान, जिसे 7 लाख किसान करते हैं सोशल मीडिया पर फॉलो

#SURESH KABADE
  • अपने खेतों में 1000-1100 कुंतल प्रति एकड़ गन्ना उगाते हैं सुरेश कबाडे
  • महाराष्ट्र का ये किसान उगा चुका है 19 से 21 फीट तक का गन्ना
  • सांगली के सुरेश कबाडे ने विकसित की है गन्ना उत्पादन की अपनी तकनीक
  • देश के कई राज्यों के हजारों किसान उनसे खेती सीख कर कमा रहे हैं मुनाफा

कारनबाड़ी (महाराष्ट्र)। महाराष्ट्र में सांगली जिले के सुरेश कबाड़े अपने खेतों में प्रति एकड़ 100 टन से ज्यादा उत्पादन लेते हैं। भारत के दूसरे राज्यों के किसान तीन एकड़ में जितना गन्ना उगाते हैं उससे ज्यादा वो एक एकड़ में पैदा करते हैं। गन्ने के उत्पादन में रिकाॅर्ड बनाने वाला ये किसान गन्ने से ही साल में 50-60 लाख रुपए की कमाई करता है। सोशल मीडिया पर 7 लाख से ज्यादा किसान उन्हें फॉलों करते हैं, तो हजारों किसान भारत के अलग-अलग कोनों से गन्ने की खेती सीखने उनके घर आते हैं।

पिछले दिनों महाराष्ट्र सरकार ने कृषि क्षेत्र का बड़ा पुरस्कार देने का ऐलान किया। इस दौरान गांव कनेक्शन की टीम मुंबई से करीब 400 किलोमीटर आगे सांगली जिले में उनके गांव कारनबाड़ी पहुंची। पुणे-बैंग्लुरू हाईवे पर बसे इस गांव में सुरेश कबाड़े की दिखाई राह पर चलते हुए 70 फीसदी से ज्यादा किसान प्रति एकड़ 100 टन गन्ना लेते हैं।

अपने खेत में उगे 19 फीट के गन्ने को दिखाते सुरेश कबाडेपिछले साल अपने खेत में उगे 20 फीट के गन्ने को दिखाते सुरेश कबाडे। फोटो- अरविंद शुक्ला

गन्ने की इतनी अच्छी पैदावार कैसे लेते हैं? इस सवाल के जवाब में सुरेश कबाडे खेत में उतरकर एक गन्ने को पकड़कर कहते हैं, “आप इसकी मोटाई देख रहे हैं, अभी सिर्फ इनता मोटा है जबकि ये सिर्फ 8 महीने का है। पहले हमारे यहां भी एक एकड़ में 300 से 400 कुंतल गन्ना पैदा होता था, लेकिन अब 1000 से 1100 कुंतल प्रति एकड़ होता है। इसके लिए हमने गन्ने का बीज चुनने से लेकर बुआई और उर्वरक-कीटनाशक देने में कई नए तरीके अपनाएं हैं।”

सुरेश कबाडे ने बेहतर गन्ना उत्पादन के लिए अच्छी किस्म (प्रजाति- 86032) भी विकसित की है, टिशू कल्चर से विकसित इन किस्म में लागत कम और उत्पादन बेहतर होता है। जबकि इसमें बाकी गन्नों की अपेक्षा रोग भी कम लगते हैं। सुरेश सिर्फ 9वीं पास हैं लेकिन खेती के वैज्ञानिक और इंजीनियरिंग के लोग भी उनसे खेती के गुर सीखने आते हैं। सुरेश की माने तो उनका ज्यादातर समय खेत में जाता है और वो भी ये सोचते हुई कि कम लागत में ज्यादा उत्पादन कैसे लिया जाए।

उस दिन रात में तेज बारिश हुई थी, महाराष्ट्र के इस इलाके की काली गीली मिट्टी पैरों में चुंबक की तरह चिपक रही थी, खेतों में चलना मुश्किल थी, बावजूद वो गांव कनेक्शन टीम और आसपास के गन्ना किसानों को लेकर खेत पर गए। उन्होंने गन्ने के बेहतर उत्पादन के वो दूसरे किसानों के 4 बातें ध्यान रखने की बात करते हैं..

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मिट्टी- खेत में न जलाएं अवशेष, अपनाएं फसल चक्र

पैर में चिपकी मिट्टी छुड़ाते हुए वो कहते हैं, “हमारे यहां ज्यादा उत्पादन के पीछे इस मिट्टी का बहुत बड़ा हाथ है। पहले हम भी गन्ने की पराली (अपशिष्ट) जला देते थे, केले के तने फेंक देते थे लेकिन अब सब खेत में मिलाते हैं। जिस खेत में एक बार गन्ना बोते हैं उसमें अगले साल चना या केला लगाते हैं। फसल चक्र का ध्यान रखते हैं और उर्वरक की संतुलित मात्रा प्रयोग करते हैं।”

ध्यान देने वाली बातें..

सुरेश बताते हैं, मेरे खेत में 100 टन गन्ना हो ये मेरे पिता का अपासे कबाडे का सपना था। पहले मेरे यहां भी 300-400 कुंतल की पैदावार होती थी फिर मैंने अपनी खेती, बीज और उर्वरक आदि डालने की पूरी कमियां समझी और पैटर्न बदला। अब भरपूर खाद (सनई, ढैंचा आदि) बोता हूं। गोबर डालता हूं। साथ ही रायजोबियम कल्चर, एजेक्टोबैक्टर और पीएसपी (पूरक जीवाणु) खाद का इस्तेमाल करता हूं। गन्ने खेत से पहले ट्रे में उगाता हूं, ताकि समय और खर्च दोनों बचें

लाइन से बुवाई के फायदे- ट्रैक्टर से जुताई और खाद डालने में आसानी

सुरेश कबाड़े गन्ने से गन्ने की बीच की दूरी 5 से 6 फीट की रखती हैं। कतार बिल्कुल वैसी होती है, जैसे किसी कंप्यूटर से डिजाइन बनाया गया हो। और इसमें खाद भी ऐसे डाली जाती है कि एक एक दाना पौधे को मिले।

गन्ने के साथ करते हैं सहफसली खेतीसुरेश गन्ने और केली की सहफसली भी करती है। फोटो में मजदूर पौधे के बगल में नाली बनाकर खाद डाल रहा है, जिसके बाद उसे ऊपर से ढक दिया जाता है।

गन्ने की कतार (पौधे) के पास एक मजदूर कुदाल से नाली बनाता है, दूसरा विभिन्न प्रकारों के उर्वरकों को उसमे डालता है जबकि तीसरा मजदूर उस को फावड़े से ढक देता है ताकि धूप से उर्वरक भाप बनकर न उड़े और जड़ों के पास पहुंचकर पौधे को पूरा पोषण दे। इसके साथ ही लाइन से लाइन का फायदा ये होता है कि ट्रैक्टर से समय-समय पर जुताई और उर्वरकों-कीटनाशकों का छिड़काव आसानी से हो जाता है। इसके साथ ही एक पौधे से पौधे के बीच में ज्यादा अंतर होने से धूप भी जड़ों तक पहुंचती है।

बीज का चुनाव- जिस गन्ने में कम हो चीनी, उसकी करे बुवाई

जून में बोए गए गन्ना, जो करीब 2 फीट का हो गया था, उसे दिखाते हुए सुरेश कहते हैं, “सांगली जिले में ज्यादातर किसान अड़साली (जून से अगस्त) तक गन्ने की बुवाई करते हैं। मैं जून-जुलाई में ज्यादातर काम निपटा देता हूँ। गन्ना उत्पादन के लिए सबसे जरूरी अच्छे बीज का चुनाव। मैंने अपने लिए टिशू कल्चर से खुद की किस्म (प्रजाति- 86032) विकसित की है। मैं खुद और दूसरे किसानों को जो सीड देता हूं वो 10 महीने का होता है। ताकि उसमें सुगर की मात्रा कम होती है। इससे गन्ने में रोग कम लगते हैं।”

कैसे बनाते हैं टिशू कल्चर

पूरे खेत से चुने हुए 100 गन्नों में से एक से बनता है टिशु कल्चर टिशु कल्चर यानि एक किसी पौधे के ऊतक अथवा कोशिशाएं प्रयोगशाला की विशेष परिस्थितियों में रखी जाती हैं, जिनमें खुद रोग रहित बढ़ने और अपने समान दूसरे पौधे पैदा करने की क्षमता होती है। सुरेश अपने पूरे खेत से 100 अच्छे (मोटे, लंबे और रोगरहित) गन्ने चुनते हैं, उनमें 10 वो स्थानीय लैब ले जाते हैं, जहां वैज्ञानिक एक गन्ना चुनते हैं और उससे एक साल में टिशु बनाकर देते हैं। सुरेश बताते हैं, इसके लिए करीब 8 हजार रुपये मैं लेब को देता हूं, वो जो पौधे बनाकर देते हैं, जिसे एफ- 1 कहा जाता है से पहले साल में कम उत्पादन होता है लेकिन दूसरे साल के एफ-2 पीरियड और तीसरे एफ-3 में बहुत अच्छा उत्पादन होता है। इसके बाद मैं उस गन्ने को दोबारा बीज नहीं बनाता।

गन्ने को हरी पत्तियों से बांधे नहीं

सुरेश कबाड़े कहते हैं कई राज्यों में किसान गन्ने को सीधा खड़ा रखने के लिए बंधाई कर देते हैं। लेकिन ये तरीका मुझे सही नहीं लगता क्योंकि गन्ने का भोजन उसकी पत्तियों में होता है और जब हरी पत्तियों से गन्ने को बांध दिया जाता है तो पत्तियों में जमा भोजन गन्ने को नहीं मिल पाता। पत्तियां सूख कर वही नीचे गिरती हैं, जिनके पोषक तत्व गन्ने में आ चुके होते हैं। सुरेश कबाड़े से भी कहते हैं, हमारे महाराष्ट्र में कहावत है, जिसका गन्ना गिरा वो किसान खड़ा हो जाता है।

प्रति एकड़ कमाई- 2 लाख से ज्यादा की कमाई

सुरेश कबाडे बताते हैं, “हमारे खेतों में औसतन 100 टन (1000 कुंतल) प्रति एकड़ गन्ना पैदा होता है। महाराष्ट्र में गन्ने का रेट 3000 रुपए प्रति टन है। यानि एक एकड़ में 3 लाख रुपए मिलते हैं। इसमें 70-80 हजार खर्च होता है। वो हर साल 15-20 एकड़ गन्ना, 5-6 एकड़ केला और इतनी ही हल्दी बोते हैं, बीच में चने की पैदावार भी लेते हैं।”

सुरेश कबाडे की कमाई का बड़ा जरिया गन्ने का सीड भी है। वो 5-6 एकड़ गन्ना बीज के लिए बोते हैं, जो सिर्फ 10 महीने में तैयार होता है। इस खेत का गन्ना वो 9 हजार रुपए प्रति कुंतल बेचते हैं जिससे करीब साढ़े तीन लाख रुपए प्रति एकड़ की आमदनी होती है। उनके खेतों का गन्ना, महाराष्ट्र, कर्नाटक, गुजरात और मध्य प्रदेश तक के किसान ले जाते हैं।

फेसबुक, व्हाट्सएप और YouTube पर लाखों फालोवर

सुरेश खुद भले ज्यादा नहीं पढ़ पाए। लेकिन उन्होंने खेती को प्रयोगशाला बना दिया है। अब दूसरे लोग उनसे सीखने आते हैं। फेसबुक पर वो सुगरकेन ग्रोवर ग्रुप sugar cane growers of india के एडमिन हैं जिसके 47 लाख फालोवर हैं। उनके YouTube चैनल जिसे वो अपने सहयोगी अमोल पाटिल के साथ मिलकर चलाते हैं, इसके साथ ही उनके कई वह्टसअप ग्रुप हैं, जिनके जरिए वो हर साल लाखों लोगों तक गन्ने से जुड़ी जानकारी पहुंचाते हैं। अमोल पाटिल करते हैं, हमारे बनाए वीडियो एक महीने में सभी प्लेटफार्म मिलाकर करीब 7 लाख लोगों तक पहुंचते हैं।

आप सुरेश कबाड़े से इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं- 9403725999

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महाराष्ट्र का बड़ा कृषि पुरस्कार मिलने की घोषणा के बाद सुरेश कबाडे के घर पहुंचकर सम्मानित करते एनसीपी के प्रदेश अध्यक्ष जयंत पाटिल के बेटे।

क्या कहते हैं किसान

सुरेश जी कबाडे प्रगतिशील शेतकरी हैं। उनकी देखा-देखी उनसे सीखकर बाकी किसान भी वो भी गन्ने की उन्नत खेती कर रहे। इस कारनवाड़ी गांव की खासियत ये है कि यहां 100 फीसदी किसान गन्ना उगाते हैं और उनमें से 70 फीसदी किसान 100 टन प्रति एकड़ का उत्पादन लेते हैं। मैं खुद 7 साल से खेती करता हूं और 20-25 एकड़ गन्ना उगाता हूं। काफी कुछ कबाडे अन्ना से सीखा है। सुरेश अन्ना को राष्ट्रीय स्तर पर रोल माडल बनाना चाहिए- अमोल पाटिल, गन्ना, किसान सांगली टन गन्ना

अपने गांव के पड़ेसी किसान अमोल पाटिल के साथ सुरेश कबाडे

2007 में हम अन्ना (सुरेश भाई) के यहां पहली बार आए थे, तब से उनकी पद्दति का इस्तेमाल करते हैं। पहले हम लोग एक एकड़ में औसतन 40-45 टन गन्ना होता था, लेकिन अब 100 से 125 टन तक उत्पादन होने लगा है।- विवोद राजाराम साखवाले, पड़ोसी गांव के गन्ना किसान


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