एक तवायफ़ की प्रेम कहानी: तोहफ़े में मिलीं दो बेटियां

"हमको भी प्यार हुआ था। हम साहेबगंज गए थे प्रोग्राम करने। वहीं से वो आये और मुज़रा-वुज़रा सुने। बात-चीत करते-करते दिल मिल गया।"
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चतुर्भुज स्थान (मुजफ्फरपुर)। “कौन ले जायेगा (हमें)…अपने घर का बहू कौन बनाएगा? कलंक तो रहबे करेगा कि ‘बाई जी’ ही हैं। कितना भी शरीफ़ का काम कीजिये लोग यही कहते हैं कि ‘चतुर्भुज स्थान’ से आयल है। (हम पर) मोहर लग गया है चतुर्भुज स्थान का,” कहते-कहते पिंकी (बदला हुआ नाम) का गला भारी हो गया और चेहरे पर गुस्सा साफ़ दिखाई दे रहा था।

पिंकी (फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा)

चतुर्भुज स्थान वैश्यावृत्ति और मुज़रा नर्तकियों के लिए जाना जाता है। मुजफ्फरपुर के उस मोहल्ले में जहाँ से कोई भी अच्छे घर का व्यक्ति गुज़रना तक नहीं पसंद करता, लखनऊ से पत्रकार आये थे। पहले तो मोहल्ले भर के सभी लोगों ने यह कह कर बात तक करने को मना कर दिया कि उनके धंधे का वक़्त हो चला है अब बात नहीं कर पायेगा कोई लेकिन तमाम गुजारिशों के बाद पिंकी ने अपने घर आकर बात करने की सहमती दी।

पिंकी महज़ 12 साल की थी जब माँ और मौसी की बढ़ती उम्र के वजह से उसे खुद भी पुश्तैनी काम में कदम रखना पड़ा। बारह साल की पिंकी ने अभी ख्वाब देखने शुरू ही किये थे कि वो उस दलदल में फ़स गयी जहाँ से निकलना फ़िर उसके लिए नामुमकिन हो गया। पहले एक ग्राहक से प्यार हुआ उसे, फ़िर शादी के सपने देखे पर एक दिन सब ख़तम हो गया जब उस प्यार के बदले तोहफ़े में सिर्फ़ दो बेटियां मिलीं।

ह्यूमन राइट्स वॉच की रिपोर्ट के मुताबिक़ भारत में 20 मिलियन से अधिक वेश्याएँ हैं- और उनमें से 35% 18 वर्ष से कम उम्र में प्रवेश करती हैं।

(फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा )

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पिंकी फ़िर बताती है, “यहाँ पर खाली कलाकारी से घर नहीं चल पाता है। यदि देह-व्यापर करें तो निकल जाता है दाल-रोटी का खर्चा। लेकिन हम लोग सबके साथ नहीं जाते हैं, है ना ! जिसके साथ दिल मिल गया उसके साथ गए। दिल लगने के बाद पैसे का मोल भी नहीं होता है। जो हाथ उठा के दे दिए, ले लेते हैं।”

“हमको भी प्यार हुआ था। हम साहेबगंज गए थे प्रोग्राम करने। वहीं से वो आये और मुज़रा-वुज़रा सुने। बात-चीत करते करते दिल मिल गया। अब दिल मिलने के बाद तो सब हो जाता है। उस समय आदमी थोड़े सोचता है कुछ भी। लेकिन फ़िर उसका शादी हो गया। चार बच्चे का बाप भी है। खाली बेटा है, बेटी के तमन्ना में बेटा हो गया,” पिंकी खींझी हुई आवाज़ में बोलकर ऊपर ताकने लगती है।

“अब नहीं मिलते हैं… अब हम भी चाह नहीं करते। बाल-बच्चा के प्रति हम खुश हैं। हम अब देह व्यापर नहीं करते। जिस से दिल मिल गया उसी के साथ चले गए, उसी के हो के रह गए।”

मुज़रा के लिए इस्तेमाल में लाये जाने वाले वाद्य यंत्र  (फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा )

“हर साल कोई न कोई आता है मैडम, फिल्म बनाकर ले जाते हैं। विदेशी भी आते हैं लेकिन केवल यही जानने कि हम क्या और कैसे करते हैं, कितने पैसे कमाते हैं। ये किसी को नहीं पड़ी होती कि हम ये करना भी चाहते हैं या नहीं। क्या-क्या दिक्क्तें हैं हमें,” 31 साल की पिंकी बताती है।

आज तीस साल की पिंकी अपनी बड़ी बेटी की शादी कर चुकी है और छोटी बेटी को इस चाह के साथ स्कूल भेजती है कि उनकी बेटी टीचर बने।

“हमारे यहाँ तो शुरू से यही होता आया है। जब से होश संभाला है, यही देखा। मेरी परनानी, नानी, माँ, मौसी सब मुज़रा करती आयी हैं,” पिंकी बताती है। पिंकी का घर भी बाहर से मोहल्ले के बाकी सब घरों जैसा ही दिखता है। अंदर आकर आधे से ज़्यादा कमरे में एक बड़ा दीवान दिखाई पड़ता है जिसके तीनो ओर मसनद सजे हैं और पीछे वाली दीवार पर, ठीक बीचो-बीच, एक बड़ा शीशा।

रिंकी का घर  (फ़ोटो: जिज्ञासा मिश्रा )

“समाज में इज़्ज़त या बराबरी का ख्वाब तो हम देखते ही नहीं क्यों कि अब हम खुश हैं अपने जीवन में। लेकिन बाहरवाले जाने क्या चाहते हैं हमसे। अब इलेक्शन की बात कर लीजिये, उस समय तो हर दूसरे दिन हमारे घर के चक्कर लगाने आते हैं, वोट मांगते हैं पर उसके बाद क्या? उसके बाद तो फ़िर दुकानों पर हमें शर्मिंदगी ही झेलनी पड़ती है न,” कहते हुए पिंकी के आँखों में गुस्सा साफ़ दिख रहा था।

पिंकी के घर में उसकी माँ, मौसी और 2 छोटी बहनें और छोटी बेटी रहती है जिसका बड़ी मशक्क़तों से उसने स्कूल में दाखिला करवाया है और बड़ी बेटी अब ससुराल में रहती है। “अब तुम तो हमारी बेटी जैसी हो तुमसे क्या-क्या बोलें… हमारा दिल 19 साल पहले उनसे लग गया था तो वो आया करते थे। फिर हमारी बड़ी बेटी हुई। उसके कुछ सालों बाद फिर छोटी बेटी।” पुराने दिन याद करते हुए पिंकी बताती है, “सब लोग सपने देखते हैं, चाहत होती है लेकिन सब के मन की बात पूरी थोड़े हो जाती है।” 

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