कोरोना वायरस से पूरे देश में लॉकडाउन चल रहा है, महाराष्ट्र कोरोना से सबसे अधिक प्रभावित राज्य है, यहां पर अब तक 200 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई है और 4500 से ज्यादा लोग संक्रमित हो चुके हैं। यहां पर लॉकडाउन से सबसे ज्यादा किसान प्रभावित हैं। किसानों को उनकी उपज का दाम नहीं मिल रहा हैं, यहां तक कि वो बाजार तक ही नहीं पहुंच पा रहे हैं।
लॉकडाउन से किसानों को क्या मुश्किलें आ रहीं हैं, इसके लिए गाँव कनेक्शन ने महाराष्ट्र के अमरावती, वर्धा, यवतमाल, नासिक, जलगाँव, अकोला और नंदूरबाग जिले के किसानों से बात की।
अमरावती जिले के किसान नानाजी पवार के खेत में इस समय तरबूज और कांदा (प्याज) की फसल लगी है। फ़ोन पर बात करते समय भावुक हो जाते हैं। वो बताते हैं, “बारिश ने पहले ही फ़सल को बर्बाद कर दिया था जो उम्मीद बची थी वो कोरोना वायरस से लॉकडाउन में खत्म हो गई। तरबूज तैयार हो गया लेकिन लॉकडाउन से बाजार नहीं जा पा रहा है। अब हालत यह हो गयी है कि वो खेत में सड़ने में लगा है। सरकार के तरफ़ से दो हजार रुपए मिले हैं, लेकिन मात्र दो हजार से कैसे फसलों की कीमत चुकाई जा सकती है?”
वो आगे कहते हैं, “लॉकडाउन से पहले खेतों से कापुस (कपास) तोड़कर लाए थे, बेचने की तैयारी चल रही थी, लेकिन उससे पहले लॉकडाउन हो गया अब सब घर में भरा है। कोई कपास लेने को तैयार नहीं है। कुछ व्यापारी लेने को तैयार भी हो रहे हैं तो सही दाम नहीं दे रहे हैं। 50 से 60 रुपए किलो बिकने वाले कपास को 40 और 45 रुपए किलो में मांग रहे हैं। हमने संतरे की खेती भी की थी लेकिन बारिश में ख़राब हो गया था उसमें भी बहुत फ़ायदा नहीं मिल पाया।”
अमरावती के बहुत से किसानों ने कर्ज लेकर खतों की बुआई की थी यदि फ़सल नहीं बिकी तो किसानों के सामने बड़ा संकट आ जाएगा, सरकार ने थोड़ी राहत यह कहकर दी है कि अब लोन का जो क़िस्त मार्च-अप्रैल में देना था उसे अब मई तक देने कि छूट दे दी है।
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वर्धा जिले की महिला किसान शुभांगी वाड़े अपने खेत से फुल के पौधे उखाड़कर फेक रही हैं। शुभांगी के पास चार एकड़ की खेती है उसमें सब्जी (प्याज, कद्दू, मिर्च) और फूल की खेती की गयी है। वो फूल की खेती को लेकर बहुत परेशान हैं। वो कहती हैं, “लॉक डाउन से पहले खेतों से 35 हजार के फूल बेचे गये थे लेकिन दूसरी फ़सल जैसे आई वैसे लॉकडाउन हो गया। अब हालत यह हो गई कि पौधों से फूल को तोड़कर फेंकना पड़ा क्योंकि फूल बिक नहीं रहा है और उसे न तोड़ने पर फुल के पौधे ख़राब हो रहे हैं। फूल को तोड़ने के लिए मजदूर लग रहे हैं उन मजदूरों को भी पैसा घर से देना पड़ रहा है इससे बेहतर तो यह है कि पौधे ही उखाड़कर कोई दूसरी खेती की जाए।
अप्रैल के महीने में बहुत से पर्व और महोत्सव जैसे अम्बेडकर जयंती, महावीर जयंती पड़ते हैं, जिसमें पूरा फूल बिक जाता था लेकिन लॉकडाउन में कुछ नहीं मनाया गया। अप्रैल में ही शादी विवाह भी पड़ते थे लेकिन लॉकडाउन में सब टल गया और फूल नहीं बिक पाया। कुछ महीने पहले गाँव कनेक्शन ने शुभांगी के फूलों की स्टोरी की थी। उस समय वो उनका कहना था कि फूल खेती में लगभग लाखों रुपए की कमाई हो जाती है, लेकिन लॉकडाउन ने सपनों पर पानी फेर दिया। शुभांगी के खेत में मिर्च तैयार है लेकिन सब लाल हो रही है लॉकडाउन में मंडी बंद है और सब्जी नहीं जा पा रही है सब कुछ खेतों में ही बर्बाद हो रहा है।
वर्धा के ही किसान किशोर इंगोले बताते हैं, “वर्धा में अभी तक एक भी कोरोना के मरीज नहीं पाए गये हैं, लेकिन उसके बाद भी यहां पर लॉकडाउन चल रहा है। सब कुछ ठप हो गया है पहले लगा था कि 21 दिन में सब सामान्य हो जायेगा लेकिन फिर से लॉकडाउन बढ़ने से परेशानी बढ़ गयी है।”
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किशोर के खेत में संतरे लगे हुए हैं शुरुआत में कुछ संतरे बिक गये थे लेकिन लॉकडाउन के बाद सब बर्बाद हो गए हैं। थोड़ी बहुत सब्जी की खेती से उम्मीद थी लेकिन लॉकडाउन में उसे भी रोक दी गई है। मंडी नहीं खुल रही है और सब्जी खेत में बर्बाद हो रही है। अब गाँव में कितना सब्जी बेचा जा सकता है। किशोर आगे कहते हैं, “जहां कोरोना का केस नहीं है वहां किसानों को थोड़ी बहुत ढील देनी चाहिए ताकि वो अपनी कच्ची फ़सल जैसे सब्जी और संतरे बेच सकें।”
यवतमाल के सुनील धोडे दूध का व्यापार करते हैं, उनके पास 20 पशु हैं। वो बताते हैं, “लॉकडाउन से पहले जिस दूध को 40 रुपए लीटर बेचते थे वो अब 20 रुपए लीटर भी नहीं बिक रहा है। शहर जाकर दुध बेचते थे अब गाँव में ही थोडा बहुत बिक जाता है नहीं तो दूध का कुछ दूसरा बनाना पड़ता है। चारे की मंहगाई इतनी है कि दो दिन के दूध को बेचकर एक दिन तक का चारा आ पा रहा है। जानवरों को पालना मुश्किल हो गया है।”
सुनील के पास खेती भी है जिसमें चना और गेहूं की खेती की थी, लॉकडाउन में काटने के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं चने की फ़सल थोड़ी बहुत घर आ पाई है, लेकिन बारिश की वजह से भीग गई, अब उसमे कीड़े लगने लगे हैं| गेहूं की फ़सल थोड़ी बहुत ठीक हुई है लेकिन पैदावार जिस दर से होना चाहिए था वो नहीं हुआ है। सुनील अब लॉकडाउन के खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं।
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नासिक जिले के किसान बाबू लाल अर्जुन चौहान के पास दो एकड़ की खेत है, उन्होंने अपने खेत में टमाटर, प्याज और मिर्च की फसल लगाई है। वो बताते हैं, “खेत में टमाटर सड़ने लगा है। लॉकडाउन में न मंडी में जा पा रहे हैं और न ही व्यापारी खेत में आ पा रहे हैं। अब हम लोग टमाटर में खाद, पानी देना बंद कर दिए हैं। खाद और पानी का भी पैसा घर से जा रहा है।”
बाबू लाल के खेतों में भी मिर्ची लाल हो रही है, बाबू लाल को सरकार कि तरफ़ से दो हजार रुपए अनुदान अभी तक नहीं मिल पाया है। बाबू लाल के छोटे भाई बापू चौहान हैं। अपने भाई की स्थिति को लेकर बहुत परेशान हैं। बापू कहते हैं, “बड़े भाई खेती को लेकर बहुत चिंता होती है, वो हमेशा उदास रहते हैं भईया को लेकर बहुत चिंता होने लगी है। सब भगवान भरोसे चल रहा है।”
जलगाँव जिले से किशन पाटिल के पास 2 एकड़ जमीन है, किशन अपने खेत के आधे हिस्से में केले की खेती की है। किशन बताते हैं, ” केले की खेती बर्बाद हो रही है, जलगाँव की मंडी बंद है। व्यापारी खेतों में नहीं आ रहे हैं। केला का पौधा पिछले दिनों बारिश से भी बर्बाद हो गया था। कुदरत का कहर एक तरफ़ है और उसमें बड़ा दर्द कोरोना दे रहा है।”
किशन अपने खेत के कुछ हिस्से में कापुस (कपास) लगाए थे। लॉकडाउन से पहले कपास का आधा हिस्सा बेच दिए थे लेकिन आधा आज भी घर में पड़ा हुआ है। व्यापारी औने-पौने दाम में कपास मांगते हैं। बेचने पर उसका खर्च भी नहीं निकल रहा है। लॉकडाउन किसानों के लिए सबसे खतरनाक समय साबित हो रहा है।
नंदुरबार जिले से नागराज भीमराव पाटिल एक गरीब किसान हैं, इनके पास कुल एक एकड़ की खेती है। घर में पांच सदस्य हैं। भीमराव जी को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। वो कहते हैं, “यहां पर फसलों की कटाई के लिए मजदूर नहीं मिल रहे हैं। पूरी फ़सल खेतों में ही पड़ी है। बादल देखकर डर लगता है, लेकिन क्या किया जाये कोरोना से भी डर लगता है। डर इस बात से भी लगता है कि अनाज नहीं घर आया तो खाएंगे क्या?
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कृष्णा मोहोड अकोला जिले के किसान हैं। दो एकड़ की खेती है। कृष्णा के खेत में बैंगन और टमाटर लगे हैं। कृष्णा बताते हैं, “लॉकडाउन हो जाने से किसान परेशान हो गये हैं। अकोला के सब्जी मंडी में रात को दो बजे सब्जी लेकर जाना पड़ रहा है। मंडी में जो बैंगन बीस-पच्चीस रुपए किलो बिकना चाहिए वो दस से बारह रुपए किलो ही बिक पा रहा है। ट्रांसपोर्ट की समस्या हो रही है। एक भी गाड़ी नहीं चलने दी जा रही है। किसान साइकिल पर सब्जी लादकर ला रहा है। इसमें वही किसान आ पा रहें हैं जिनका घर मंडी से नजदीक है। दूर वाले मंडी में नहीं आ पा रहे हैं।
कृष्णा आगे बताते हैं कि अकोला में नींबू की खेती भारी मात्रा में होती है। गर्मी के दिनों में नींबू का रेट अच्छा होता है, क्योंकि लोग नींबू पानी पीते हैं। जो नींबू 50 से 60 रुपए किलो बिकता था अब वो 20 रुपए किलो हो गया है। हर तरफ़ से किसानों को समस्या ही हो रही है।
महाराष्ट्र के अलग-अलग जिलों के किसानों की परेशानी लगभग एक जैसी लगती है। किसानों की फ़सल मंडी तक नहीं जा पा रही है। सबसे ज्यादा बर्बाद होने वाली फसल सब्जियों की है। सब्जी को लंबे समय तक सुरक्षित नहीं रखा जा सकता है। एक निश्चित समय बाद सब्जी और फल, फूल सड़ने लगता हैं। छोटे शहरों में ऐसी व्यवस्था कम ही है जहां सब्जी और फल को रखा जा सके।