बीजापुर (छत्तीसगढ़)। “कई बार तो नदी का पानी गले तक बढ़ जाता है और ऐसे में हमें नदी पार करनी होती है, कभी-कभी तो जिन गांवों में जाती हूं वहीं दो से तीन दिन रुकना पड़ता है, “स्वास्थ्य कार्यकर्ता रानी मंडावी बताती हैं। रानी मंडावी बस्तर में नियुक्त उन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं में से एक हैं जो अपनी जिंदगी की परवाह किए बिना सैकड़ों लोगों की जिंदगी बचा रही हैं।
छत्तीसगढ़ के बस्तर संभाग के बीजापुर जिले के अंर्तगत बेलनार गाँव के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में रानी मंडावी मंडावी नियुक्त हैं। बेलनार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में तीन गाँव बेलनार, ताकीलोड, और पलेवाया आते हैं, ये तीनों गाँव तक पहुंचने के लिए घने जंगल और दुर्गम रास्तों को पार करके जाना होता। इसी रास्ते पर इंद्रावती नदी भी पड़ती है। इन्हीं रास्तों और नदियों को पार करके रानी मंडावी हर दिन गाँवों तक पहुंचती हैं।
रानी मंडावी बताती हैं, “मैं पिछले पांच साल से बेलनार प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र में नियुक्त हूं। दूसरे गांव में स्वास्थ्य सुविधा देने के लिए 15 से 25 किमी नदी को नाव से पार कर पैदल जाती हूं। सुबह 7 बजे निकलती हूं तो गांव एक बजे तक पहुंचती हूं। वैसे वापस आते शाम आठ बज जाते हैं।”
रानी आगे कहती हैं, “मेरे सीएचसी में तीन गांव आते हैं, तीनों गांव जाने के लिए नदी, पहाड़, जंगल पड़ते हैं, अकेले जाने से बहुत डर लगता है। लेकिन मेरे लोगों को स्वास्थ्य की जरूरत है, इसीलिए में अपनी परवाह नहीं करती जिनकी सेवा में कर रही हूं उनकी दुवाएं मेरे साथ रहती है।”
एक घटना का जिक्र करते रानी बताती हैं थोड़ी रात होने के कारण नाव चलाने वाला कोई नहीं था तो मैंने खुद से नाव चला के पार करने की कोशिश की लेकिन बीच मे जाकर फंस गई तभी एक गांव वाले ने देखा और मुझे बचाया।
रानी आगे कहती हैं कि कई बार तो गले तक पानी नदी में बढ़ जाता है और मैंने पैदल नदी पार की है, कभी-कभी तो जिन गांवों में जाती हूं वहीं दो से तीन दिन रुकना पड़ता है गांव वाले सोने की व्यवस्था करते हैं, लेकिन मैं अपने साथ राशन ले के जाती हूं। रानी मंडावी एक घटना का जिक्र करते हुए बताती हैं कि एक बार मैं गांव से वापस आ रही थी शाम सात बजे का वक्त था, नदी पार करने के लिए नाव में बैठी अचानक बीच मे नाव रुक गया में डर गई थी, लेकिन जो नाव चला रहा था उसने पार करा दिया ऐसे ही
रानी कहती हैं, “इस क्षेत्र में सड़क, पुल-पुलिया नहीं होने के चलते ग्रामीणों को स्वास्थ्य सुविधा के लिए बहुत तकलीफों का सामना करना पड़ता है, गर्भवती महिलाओं को एमरजेंसी में एक डोली जिसे कांवर भी कहते हैं ग्रामीण 20- 25 किमी ढोकर मरीज को लाते हैं इन सब तकलीफों के सामने मेरी तकलीफ कुछ भी नहीं है।”
बस्तर में मौजूद एक स्वास्थ्यकर्ता रानी की कहानी नहीं है, लगभग बस्तर के बीहड़ों में कार्यरत सैकड़ों महिला स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं के कंधो पर बस्तर के बीहड़ के गांवो में स्वास्थ्य सुविधा पहुंचाने का जिम्मा है।