चैनपुरवा उत्तर प्रदेश के दूसरे हजारों गाँवों से अलग नहीं है। यह भाघर झील के किनारे बसा तंग संकरी, धूल भरी गलियां, प्लास्टर उखड़ी दीवारों वाले छोटे घर औ खुली नालियों वाला छोटा सा गाँव है।
लेकिन बाराबंकी जिले के इस गांव ने एक अनोखी यात्रा शुरू की। अवैध शराब बनाने, शराबबंदी और घरेलू हिंसा के लिए पहचान वाला यह गाँव अब नए रास्ते पर चल दिया है।
मेरी प्यारी जिंदगी सीरीज के माध्यम से गांव कनेक्शन आपके लिए विश्व स्वास्थ्य संगठन दक्षिण-पूर्व एशिया (WHO SEARO) के सहयोग से शराबबंदी और शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य दोनों पर इसके भयानक प्रभाव के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए अपने सामाजिक अभियान के हिस्से के रूप में चैनपुरवा की कहानी लाया है।
“स्कूल में मेरे साथी मेरे गाँव को लेकर ताना मारते थे, “चैनपुरवा गाँव की शुभ्रा ने कहा। इसका कारण यह था कि चैनपुरवा के अधिकांश घर अवैध शराब बनाने, बेचने और पीने के लिए बदनाम था।
“हमारे पुरुष जो शराब बनाते थे, वे भी इसके आदी थे, और इसके कारण घर में झगड़े और बहुत हिंसा हुई। वे शराब के नशे में घर आते और बच्चों को पीटते थे, अपनी पत्नियों को पीटते थे…”यह गाँव की उन महिलाओं का कहना था, जिन्होंने सिलाई का काम करते हुए या कभी-कभी अपने पुरुषों के साथ शराब बनाने में उनकी मदद की थी।
बदलाव की बयार
जब अरविंद चतुर्वेदी को 2020 में बाराबंकी में पुलिस अधीक्षक के रूप में तैनात किया गया था, तो वह उन चुनौतियों से अच्छी तरह वाकिफ थे, जिनका उन्हें सामना करना पड़ा। उन्होंने चैनपुरवा में कोई ज्यादा बदलाव की उम्मीद नहीं की थी।
“125 परिवारों में से 123 परिवार अवैध शराब बनाने में लगे हुए थे। तीन दशकों में बनी आदतों को उलटना मुश्किल है। इसलिए, मैंने नहीं सोचा था कि कोई बड़ा बदलाव होगा, “पुलिस अधिकारी ने गांव कनेक्शन को बताया।
लेकिन असल में कुछ भी हो सकता है, चतुर्वेदी ने एक चौपाल या गाँव की बैठक बुलाई जहां उन्होंने गाँव के पुरुषों और महिलाओं को शामिल होने के लिए बुलाया और उन्हें अपनी कहानियों और समस्याओं को साझा करने के लिए प्रोत्साहित किया। बस यहीं से बदलाव की बयार चलनी शुरू हुई।
चैनपुरवा की रहने वाली रमा देवी ने कहा कि वह उस दिन को कभी नहीं भूल पाएंगी। “हम डरे हुए थे। हम में से ज्यादातर औरतें नहीं जाना चाहती थीं। लेकिन हममें से कुछ लोगों ने हिम्मत जुटाई और उस मीटिंग में शामिल हुए। कई महिलाओं ने उठकर बात की कि क्या उनकी मजबूरी है जो यह काम कर रही हैं, फिर हममें से कई लोगों ने पूरी बात बतायाी, “उन्होंने कहा।
चतुर्वेदी को उनमें से एक के शब्द आज भी याद है, जब चौपाल के आखिर में एक महिला खड़ी हुई और बोली: ‘तुम्हारी बातें एक सपने की तरह थीं। लेकिन अब, हमें घर लौटना है, काम करना है, शराब बनाकर साठ रुपये कमाना है जिससे मैं अपने बच्चों को के लिए चावल और सब्जियां खरीदूंगी नहीं तो उन्हें भूखा सोना पड़ेगा। मैं उस पैसे में से कुछ को अपने बीमार बच्चे के इलाज के लिए लिए गए कर्ज को चुकाने के लिए अलग रखना भी याद रखूंगी…।”
वह कड़वी हकीकत थी। लोगों को जिंदा रहने के लिए, अपने बच्चों को खिलाने के लिए, बीमारों की देखभाल करने के लिए पैसे की जरूरत थी… चतुर्वेदी ने उस चौपाल को ‘टर्निंग पॉइंट’ बताया।
मोम के दीये जिंदगी में रौशनी ला रहे हैं
उन्होंने और उनकी टीम ने गांव के विकास के लिए लघु, मध्यम और दीर्घकालिक लक्ष्य निर्धारित करने का फैसला किया और विशेष रूप से महिलाओं को आय के वैकल्पिक स्रोत प्रदान करने का प्रयास किया।
सात स्वयं सहायता समूह बनाए गए और 75 महिलाओं ने साइन अप किया। एक युवा मधुमक्खी पालक निमित सिंह की मदद से, उन्होंने एक प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार किया, जहां महिलाओं को दीवाली से ठीक पहले मोम से दीया बनाना सिखाया जाता था।
महिलाओं ने लगभग साढ़े पांच लाख दीये बनाए जो तब बाजार में आए। महिलाओं को अवैध शराब से महीने में मिलने वाले हजारों रुपये के बजाय अब वे मोम के दीये बनाकर 16,000 रुपये तक कमा सकती हैं।
चैनपुरवा में बदलाव आ रहा है। गांव के लोगों के रिश्तेदार जो उनसे दूर रहा करते थे अब आने लगे हैं।
“दीयों ने हमारे जीवन को भी रोशन किया, “शुभ्रा ने कहा।
जब गांव कनेक्शन ने महिलाओं से पूछा कि उनके नए जीवन में सबसे बड़ा बदलाव क्या है, तो अपेक्षित प्रतिक्रिया नहीं थी, ‘हमारे पास ज्यादा पैसा है’ या ‘हम ईमानदारी से आजीविका कमा रहे हैं’। “बेशक जो कुछ भी है, लेकिन हमारे साथ सबसे अच्छी बात यह है कि … सालों बाद, हम चैन से सोने लगे हैं।”
लेख: पंकजा श्रीनिवासन