लखीमपुर/लखनऊ। सुबह की चाय से लेकर मिठाइयों में हर जगह चीनी घुली है। गन्ने से चीनी बनाई जाती है, लेकिन ये बनती है कैसे काफी लोगों को इसकी पूरी जानकारी नहीं होगी। गांव कनेक्शन आज आपको गन्ने से चीनी बनने की पूरी प्रकिया बताएगा। साथ ये भी कि चीनी मिल में चीनी के अलावा और क्या क्या बनता है? जानकारी का पूरा वीडियो यहां देखिए
भारत में चीनी सरकारी, निजी चीनी मिलों के अलावा क्रशर और छोटे कोल्हुओं पर भी बनती है। लेकिन चीनी बनाने का बड़ा काम निजी चीनी मिलों के पास है। किसान के खेत से गन्ना तौलाई के बाद ट्रक और ट्रैक्टरों से चीनी मिल के एक ऐसे एरिया में आता हैं, जहां एक बड़ी नहर सी मशीन होती है, जिसमें ट्रकों से गन्ना गिरता और गिरने से के साथ ही कटता हुआ आगे बढ़ता चला जाता है। फिर उसकी पेराई होती है।
अंग्रेजी में ख़बर यहां पढ़ें- Do you know one quintal of sugarcane yields 11-13 kgs of sugar?
“ट्रकों और टैक्टरों का गन्ना जिस ऑटोमैटिक बेल्ट पर हाईड्रोलिक मशीनों से गिराया जाता है। वहीं पर वो लगी ब्लैड से छोटा होता हुआ कोल्हू तक पहुंच जाता है। ज्यादातर चीनी मिलों में 3 से पांच कोल्हू एक कतार में होते हैं, जिनमें गन्ने से जूस (रस) निकलता है। हमारे यहां 4 कोल्हू हैं। लेकिन पहले कोल्हू में 85 फीसदी तक रस निकल आता है।” अनुज मिश्रा, डिप्टी चीफ इंजीनियर, गुलरिया चीनी मिल बताते हैं। गुलरिया चीनी मिल उत्तर प्रदेश के लखीमपुर जिले में है। ये जिला यूपी में सबसे ज्यादा गन्ना पैदा करता है।
गन्ने का जूस निकलने के दौरान ही उसे साथ साथ भाप से गर्म भी किया जाता है। इसके साथ ही यहां पर गन्ने बड़े-बड़े चुंबकों के माध्यम से गन्ने के रस में मिले लोहे जैसे ठोस पदार्थों को अलग कर दिया जाता है। “गन्ने के जूस में शुरु से ही गर्म भाप इसलिए मिलाई जाती है, ताकि वो किसी तरह का फंगस न लगने पाए, साथ ही वो जूस से सीरप (गाढ़ा) करने में मदद करती है। बॉयलर से चीनी बनने तक जूस का तापमान अलग अलग स्टेज पर 60 से 110 डिग्री सेल्सियस तक रखा जाता है।”
आमतौर पर चीनी शहर की एक कॉलोनी जितने क्षेत्रफल में होता है। जिसमें एक भाग में किसानों द्वारा गन्ना लाने का इंतजाम होता है, दूसरे कोल्हू, टरबाइन और स्टीम बॉयलर होते हैं, जबकि तीसरे पार्ट में जूस के शुद्धीकरण, गाढ़ा होने के बाद चीनी बनने और पैकिंग का इंतजाम होता है।
“कोल्हू सेक्शन से बड़े-बड़े पाइपों के द्वारा गर्म जूस चीनी बनाने वाले बॉयलर सेक्शन में आता है। यहां इसमें चूना और सल्फर गैस मिलाई जाती है। ताकी गाढ़े होते जूस से शीरा, मड समेत दूसरे तत्व बाहर निकल सकें। इसके बाद उसे दाना बनाने होने तक गाढ़ा करते हैं। जब ये तरल गुड़ जैसा बन जाता है तो वो उसे एक विशेष मशीन के जरिए दानों में बदल कर चीनी बना दिया जाता है।” अनुज मिश्रा बताते हैं।
एक कुंतल गन्ने से मिल की मशीनी क्षमता के अनुसार 10 से 12 किलो तक चीनी मिलती है। बाकी उससे बैगास (खोई), शीरा, मड (अपशिष्ट पदार्थ) निकलते हैं। इनमें वैल्यू एड कर दूसरे उत्पाद बनाए जाते हैं।
“गन्ने से जूस निकलने से चीनी बनने तक करीब 3 से 4 घंटे लगते हैं। मिल में कई कई बॉयलर यूनिट होती हैं, जिसमें उत्पादन क्षमता के अनुसार लगातार काम चलता रहता है। आजकल सारे काम मशीनों से होते हैं, हर जगह सेंसर लगे हैं। कोल्हू की रफ्तार से भट्टी और बॉयलर के तापमान तक को कंप्यूटर से नियंत्रित किया जाता है।” अनुज आगे बताते हैं।
आमतौर पर चीनी मिल 3 से 4 तरीके की चीनी बनाने हैं। ज्यादातर मिल आम उपभोक्ताओं के लिए एम कैटेगरी (मध्यम साइज के दानों की) की चीनी बाजार में बेचते हैं।
चीनी मिल में शक्कर के अलावा कई चीजें बनती हैं
मिली में उसी गन्ने से शक्कर यानी चीनी के अलावा और कई चीजें बनती हैं। इसमें बैगास और शीरा अहम होते हैं। गन्ने से रस से के बाद निकलने वाले भूसे जैसे उत्पाद को बैगास कहा जाता है। इसके एक बड़े हिस्से को मिल में लगी भट्टियों में ईंधन के रूप में इस्तेमाल की जाती है। जबकि बाकी को कागज बनाने वाली कंपनियों को बेचा जाता है।
शीरा- तरल गुड़ से चीनी बनने के बाद जो चीज सबसे ज्यादा निकलती है वो शीरा होता है, ये प्रति कुंतल गन्ने में चीनी के मुकाबले काफी ज्यादा होता है। शीरे से एथनॉल और स्प्रिट समेत कई चीजें बनाई जाती हैं। वर्तमान में ज्यादातर चीनी मिलों में डिस्टलरी यूनिट लगाई जा रही हैं, जहां एथनॉल से शराब बनाई जाती है। इसी एथेनॉल को पेट्रोल में भी मिलाया जाता है।
मड यानि अपशिष्ट- ये चीनी बनाने की प्रक्रिया का अपशिष्ट होता है। लेकिन इससे काफी अच्छी कहा जाता है। इसके साथ ही इससे कोल यानि छोटे छोटे टुकड़े टुकड़े ब्रिक (ईंट जैसे) बनाकर ईंट भट्टों में ईंधन के रुप में इस्तेमाल किया जाता है।