लहसुन किसान बोले- “मोदी जी आपने कहा था 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे, हमारी फसलें कौड़ियों के भाव जा रहीं”

मध्य प्रदेश की रतलाम मंडी में एक किसान का लहसुन 6.90 रुपए किलो बिका तो उसने प्रधानमंत्री के 2022 तक किसानों के आमदनी दोगुनी करने के वादे की याद दिलाई। मध्य प्रदेश में लहसुन 300 रुपए कुंटल तक बिका है, जबकि प्याज 50 से 51 पैसे किलो तक में बिकने की नौबत आई है।
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लखनऊ। “मोदी जी ने कहा था 2022 तक किसानों की आमदनी दोगुनी कर देंगे, दोगुनी तो दूर कौड़ियों के भाव हमारी फसलें बिक रही हैं, मुनाफा तो दूर लागत तक नहीं निकल रही है।” रतलाम मंडी से गांव कनेक्शन को भेजे अपने वीडियो में अरविंद पाटीदार ने कहा।

किसान अरविंद पाटीदार अपना 20 कुंटल लहसुन लेकर रतलाम मंडी पहुंचे थे, जहां उन्हें 690 रुपए प्रति कुंटल का रेट मिला। पाटीदार के मुताबिक लहसुन की खेती में प्रति कुंटल कम से कम 2500-3000 रुपए की लागत आती है ऐसे 500-600 में बेचकर क्या मिलेगा?

36 साल के अरविंद पाटीदार दिल्ली से करीब 800 किलोमीटर दूर मध्य प्रदेश के रतलाम जिले में रहते हैं। 7 जनवरी को वो अपने गांव रिनिया से 15 किलोमीटर कृषि उपज मंडी समिति,रतलाम (APMC) लेकर आए थे, जहां उनके लहसुन का जो रेट मिला उससे वो हताश हो गए।

पाटीदार कहते हैं, “पिछले साल दिसंबर जनवरी में लहसुन का इसी मंडी में भाव 5000-7000 रुपए कुंटल था। इस बार उससे 10 गुना कम है। व्यापारी लोग बोलते हैं आगे डिमांड नहीं है। डेढ़ महीने पहले भी हमने 2000 रुपए में एक ट्राली लहसुन बेचा था। 20 कुंटल अभी घर में रखा है, क्या करें उसे बेचकर।”

किसान अरविंद पाटीदार

सिर्फ लहसुन ही नहीं प्याज भी माटीमोल है। मध्य़ प्रदेश की ही मंदसौर मंडी में इसी हफ्ते एक किसान का लहसुन 51 रुपए कुंटल यानि 51 पैसे प्रति किलो बिका है। रतमाल मंडी में लहसुन 300 रुपए से 2300 तो प्याज 600 से 2000 रुपए कुंटल बिक रहा है। मंडी के अधिकारी भी मानते हैं कि इस साल लहसुन का रेट बेहद कम है। यहां रोजाना करीब 2500 बोरी लहसुन (1250 कुंटल) आ रहा है, जबकि प्याज 15000 बोरी प्रतिदिन आ रहा है।

“लहसुन का भाव तो बिल्कुल बेकार है। लहसुन 300 रुपए से लगाकर 2300 रुपए कुंटल में बिक रहा है तो प्याज 600 रुपए से लेकर 2500 रुपए तक जा रहा है।” रतलाम मंडी में प्याज-लहसुन डिवीजन के इंचार्ज राजेंद्र जी व्यास फोन पर बताते हैं। वो आगे कहते हैं, “रेट इस महीने ज्यादा गिरे हैं, सेंटर पर भरे पड़े आगे उठान नहीं है। इस वक्त फैक्ट्री के लिए लहसुन की ज्यादा उठान हो रही है।”

लहसुन के रेट में बेतहाशा गिरावट के पीछे की वजह उत्पादन भी बताया जा रहा है। अक्टूबर 2021 में साल 2020-21 के लिए बागवानी फसलों के उत्पादन के बारे में आंकड़े जारी करते हुए कृषि मंत्री ने कहा था, “प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में, किसान हितैषी नीतियों, वैज्ञानिक शोधों के चलते साल 2020-21 में बागवानी फसलों (फल-सब्जी-मसाले) का रिकॉर्ड उत्पादन 331.05 मिलियन टन होने की उम्मीद है जो पिछले साल के 320.47 मिलियन टन से 3.3 फीसदी ज्यादा है।”

देश में पिछले कुछ वर्षों में लहसुन और प्याज दोनों का उत्पादन और रकबा दोनों बढ़े हैं। साल 2019-20 में 352 हजार हेक्टेयर में लहसुन की खेती हुई थी जबकि 2925 हजार मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था वहीं 2020-21 में 391 हजार हेक्टेयर में 3185 हजार मीट्रिक टन उत्पादन का अनुमान है। इसी तरह प्याज का रकबा 1431 हजार हेक्टेयर से बढ़कर 1639 और उत्पादन 26091 हजार मीट्रिक टन से बढ़कर 2020-21 में 26830 होने का अनुमान है। वहीं अगर मध्य प्रदेश की बात करें तो मध्य प्रदेश के उद्यान विभाग के मुताबिक साल 2015-16 में लहसुन का रकबा पूरे प्रदेश में 114786.73 हेक्टेयर था और 1243135.67 मीट्रिक टन उत्पादन हुआ था वहीं साल साल 2019-20 में लहसुन का रकबा बढ़कर 180580.96 हो गया और उत्पादन 1833175.54 मीट्रिक टन था। रकबा और उत्पादन दोनों बढ़े हैं लेकिन इस इस साल किसानों की आमदनी कम होती नजर आ रही है।

मध्य प्रदेश के उज्जैन मंडल में उज्जैन, रतलाम, मंदसौर, नीमच, अगर मालवा, शाजापुर और देवास आते हैं। ये सातों जिले बागवानी फसलों का खासकर लहसुन, प्याज के लिए प्रसिद्ध हैं। इलाके में छोटे बड़े सभी किसान लहसुन और प्याज की खेती करते हैं।

अरविंद पाटीदार कहते हैं, “सिर्फ रतलाम ही नहीं पूरा मालवा बेल्ट में हर छोटा बड़ा किसान अपनी क्षमता के अनुसार लहसुन-प्याज की खेती करता है। क्योंकि धान गेहूं में कुछ रखा नहीं था, लेकिन अब इसमें भी निराशा हाथ लग रही है।”

उज्जैन मंडल के संयुक्त निदेशक बागवानी (प्रभारी) आशीष कनेश गांव कनेक्शन को इसके पीछे कई वजह बताते हैं। आशीष के मुताबिक मंडियों में आज भी अच्छी क्वालिटी का रेट 2000 के ऊपर है लेकिन जो बदतर और खराब क्वालिटी हैं उनका रेट 300-400 भी होता है।

आशीष कहते हैं, “हमने पिछले दिनों ही अपनी सभी 7 जिलों से आलू, प्याज, लहसुन समेत 5 जिसों के थोक और फुटकर रेट का डाटा मंगवाया था, जिसमें समझ में आया कि अच्छी क्वालिटी को आज भी अच्छे रेट मिल रहे हैं। बागवानी की फसलों में आप देखेंगे न्यूनतम और उच्चतम रेट में अंतर 6-7 गुना का अंतर होता है।”

इसका बड़ा कारण वो बढ़ा रकबा भी मानते हैं। आशीष कनेश कहते हैं, “आप देखेंगे कि 20 साल पहले क्रॉपिंग पैटर्न (फसल चक्र) परिस्थितियां दूसरी थीं,  अब किसान इंफॉर्मेशन तकनीकी का यूज कर रहे हैं। सबके हाथ में मोबाइल है, यूट्यूब पर दूसरे जगहों के वीडियो देखकर खेती कर करते हैं। अब जैसे पिछले 3 वर्षों से अच्छा रेट चल रहा था तो इस बार प्याज का रकबा काफी बढ़ा है। ऐसे जब तक क्रॉप बजटिंग पूरे देश में सही तरीके से नहीं होगी ऐसा होता रहेगा। कभी कोई चीज काफी महंगी हो जाती है कभी रेट गिर जाते हैं।”

मध्य प्रदेश की एक बड़ी लहसुन-प्याज मंडी मंदसौर में भी किसान परेशान हैं। यहां पर लहसुन का भाव 300-400 से शुरू होकर 5000 तक जाते हैं। जबकि प्याज के भाव 500 रुपए से शुरु होते हैं लेकिन पिछले हफ्ते एक किसान का प्याज 51 रुपए कुंटल में लगाया गया।

मंदसौर में प्याज और लहसुन की खेती करने वाले जितेंद्र सिंह कहते हैं, “लहसुन हो या प्याज दोनों में मजदूरी का खर्च काफी ज्यादा है। लहसुन में लगाने से लेकर निराई और काटने तक में महिला मजदूर लगाने होते हैं। काफी पैसा जाता है। मौसम गड़बड़ होने पर सड़ता भी है। इसलिए लागत बढ़ जाती है। 1000-1500 के रेट में भी लहसुन में सिर्फ घाटा है।”

लहसुन के रेट तेजी से क्यों गिरने के पीछे क्या उत्पादन ही एक वजह है? इस सवाल के जवाब में वेजिटेबल ग्रोवर एसोसिएशन के चेयरमैन श्रीराम गढ़वे पुणे से फोन पर बताते हैं, “मध्य प्रदेश में लहसुन का उत्पादन बहुत ज्यादा है, ऐसे में रेट तो गिरना ही है। दूसरी बात है कि बाहर भेजने लायक (निर्यात वाला) माल नहीं तैयार हो पाया। क्योंकि लहसुन-प्याज के दोनों के सीजन में पिछले साल 2-3 बार बारिश हुई तो क्वालिटी गिर गई साथ ही उत्पादन भी कम हो गया। अगर उत्पादन हो जाता तो इस रेट में किसान को कुछ हासिल हो जाता लेकिन उत्पादन भी कम है और क्लाविटी भी नहीं है तो नुकसान हो रहा है।” श्रीराम गढ़वे के मुताबिक उनके साथ महाराष्ट्र और एमपी समेत कई राज्यों के करीब 25000 किसान जुड़े हैं।

एमपी में बागवानी अधिकारी आशीष कनेश भी मानते हैं कि एमपी के लहसुन के निर्यात में दिक्कत आती है, वो कहते हैं, खाड़ी देशों में तो छोटा बड़ा और औसत क्वालिटी का माल चला जाता है लेकिन अमेरिका और दूसरे देशों में नियम कानून सख्त हैं। वहां पेस्टीसाइड से लेकर कई स्टैंडर्ड है जो यहां का औसत किसान मैच नहीं कर पाता है। ऐसे में घरेलू मांग पर निर्भर रहना होता है।”

लहसुन के रेट अमूमन 2-3 साल में ऊपर नीचे होते रहते हैं। साल 2016-17 में लहसुन का रेट काफी नीचे था लेकिन 2019 के कुछ महीनों में लहसुन फुटकर में 200 रुपए किलो तक पहुंच गया था। जो आजकल 30 रुपए 80 रुपए किलो में ढेलों पर बिक रहा है।

अरविंद पाटीदार कहते हैं, “रेट कम ज्यादा क्यों हुए ये हमें नहीं पता। व्यापारी माल दबाए बैठा है या माल विदेश नहीं जा रहा है। हम ये जानते हैं कि हमने जितनी लागत लगाई थी वो भी डूब रही है।”

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