मीना कुमारी ने फिल्म पाकीज़ा में ओढ़ा था यहां का दुपट्टा

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अरविंद सिंह परमार

कम्युनिटी जर्नलिस्ट

चंदेरी (मध्य प्रदेश)। फिल्म पाकीजा में मीना कुमारी ने ‘इन्हीं लोगों’ गीत में जो दुपट्टा ओढ़ा था, वो यहीं के बुनकरों ने बनाया था, यही नहीं सुई धागा फिल्म में भी यहां की साड़ियां दिखीं थीं, ये है चंदेरी।

मध्य प्रदेश बुंदेलखंड के हिस्से वाले अशोकनगर जिले से 65 किमी. दूर बेतवा नदी के पास पहाड़ी, झीलों और जंगलों से घिरे चंदेरी कस्बे में पलायन बेरोजगारी की कहानी नहीं बल्कि हर घर में खुद का रोजगार मिलेगा। किसी भी गली-मुहल्ले से गुजर जाइए वहां के घरों से खटका पर चंदेरी साड़ियां बनाते हुए लोग मिलेंगे। यहां की हाथ से बनी चंदेरी साड़ियां बड़े पैमाने पर बनायी जाती हैं, जो दुनिया भर में मशहूर हैं।


“खुद विवर्स हूं, खुद बनाता हूं, चंदेरी साड़ी वल्र्ड फेमस साड़ी हैं, चंदेरी के अंदर हैण्डवर्क काम होता हैं वाईल से वाईक तार होता हैं ,जिसको भरना पडता हैं ये हैण्डलूम होता हैं। इसके अंदर कपड़े बदलने का स्टेण्ड होता हैं। इसकी शुरूआत दो हजार से होती है। एक साधारण साड़ी सात दिन में बनती है। इसके अंदर जैसा वर्क बढ़ेगा वैसी ही प्राईज बढ़ेगी, वर्क बढ़ गया तो दिन भी बढ़ गया और कारीगर की मजदूरी भी। साड़ी की कीमत वर्क पर डिपेन्ट करती हैं, “अशोकनगर जिले से 65 किलो मीटर चंदेरी कस्वे के कारीगर सुहेल अंसारी (28 वर्ष) ने कुछ ऐसा ही बताया।

फिल्म अभिनेत्री मीना कुमारी का दुपट्टा सुहेल की दादी ने बनाया था, चंदेरी साड़ी के पुस्तैनी कार्य का जिक्र करते हुए सुहेल अंसारी बताते हैं ,”1972 की फिल्म पाकीजा की अभिनेत्री मीना कुमारी का दुपट्टा असर्फी बूटी में मेरी दादी ने बनाया, असर्फी का मीना कुमारी का दुपट्टा। फिर मीना कुमारी की साड़ी बनी थी असर्फी बूटी वाल, “चंदेरी की खासियत होती हैं हैण्डलूम, इसमें तिल भी होगा तो तिल भी दिखेगा। मेन खासियत होती हैं, काला टीका, जिससे नजर ना लगे उसके नाप के साथ टीका लगाया जाता है काले कलर का।


चंदेरी बुन्देलखंडी शैली की साड़ियों के लिए काफी प्रसिद्ध है, पारपरिक हस्तनिर्मित चंदेरी साड़ियों का एक प्रसिद्ध केन्द्र है। 2011 की जनगणना के आधार पर 33,081 जनसंख्या वाले चंदेरी में पाँच हजार से अधिक हैण्डलूम लगे हैं, इन पर लगभग 15,000 लोग काम करके अपनी आजीविका चला रहे हैं, यहां के लोग रोजगार की खोज में बड़े शहरों की ओर पलायन नहीं करते।

इसी कस्बे के सुनील प्रजापति (23 वर्ष) बताते हैं, “साड़ी की डिजाइन के हिसाब से मजदूरी मिलती हैं इतना पैसा हमारे पास नहीं कि हम कच्चा माल खरीद पाये थोक दुकानदार से डिजाइन का सामान और धागा मिल जाता हैं और घर पर लगे लूम पर साड़ी बनाते हैं, तैयार होने पर व्यापारी को दे आते हैं महीने भर में 10 से 15 हजार की मजदूरी कर लेते हैं, घर पर ही रोजगार होने से यहां के लोग पलायन नहीं करते। चंदेरी में लगभग नब्बे प्रतिशत लोग इसी कारोबार में लगे हैं।”

सुनील प्रजापति आगे बताते हैं, “चंदेरी साड़ियों का काम आसपास के ग्रामीण भी करने लगे चंदेरी से चार किमी दूर प्राणपुरा गाँव में तीन से चार हजार लोग साड़ी बनाते हैं।” चंदेरी से ललितपुर उत्तर प्रदेश की दूरी 37 किलो मीटर हैं। आपस में रिश्तेदारी होने की वजह से काम सीखा रहे हैं, और ललितपुर में साड़िया बना रहे हैं।


पुस्तैनी हैं कम से कम सौ दौ सौ साल पुराना, चंदेरी राजा शिशुपाल की बसायी नगरी हैं ऐसा सुनने में आता हैं। जहाँ पर राजा महाराजा सभी लोग यहां आये, बाबर भी यहाँ आया, “यह कहना हैं अब्दुल हकीम खलीफा (65 वर्ष) का।

वो आगे बताते है, “हमारे बुजुर्ग पुस्तैनी धन्धा करते चले आ रहे हैं, राजा महाराजा ग्वालियर में चंदेरी साड़ियां बैलगाड़ी से देने जाते थे। वर्तमान में लगभग पाँच हजार से अधिक हैण्डलूम चंदेरी साड़ी बनाने का काम करते हैं, पूरा काम हाथ से होता हैं, घर के बच्चे परिवार के साथ मिलकर बनाते हैं। चंदेरी साड़ी हिन्दुस्तान नहीं विदेशों में भी अच्छी तरह जानी जाती हैं, काफ़ी माँग हैं।”

ज्यादातर व्यापारी चंदेरी साड़ी, सूट व दुपट्टा के कारोबार में लगे हैं, कपड़ों में उपयोग होने वाला कच्चे माल और तैयार माल को खरीदने का काम करता हैं। सब अलग-अलग धंधे कर रहे हैं ताना बैंग्लौर से जरी सूरत से कॉटन बोम्बेटूर से सब अलग अलग जगह से आती हैं इन्हीं व्यापारियों से चंदेरी साड़ी का काम करने वाले लोग कच्चा माल खरीदते हैं।

पिछले कई वर्षो से थोक व्यापार कर रहे बाके बिहारी चतुर्वेदी बताते हैं, “चंदेरी साड़िया हाथ से बनती हैं। रेशम और मसराई का काम होता है, सिल्क वाई सिल्क और जरी का भी काम होता हैं। रेशम मसलाई और सिल्क से मिलकर साड़ी तैयार होती हैं , पूरे वर्कर लगन और मेहनत से बनाते हैं चंदेरी साड़ियों को। दिल्ली, मुम्बई, कलकत्ता गोवा आदि जगह माँग हैं। यहां का व्यापारी विवर्स चंदेरी साड़ी से जुड़ी हैं।  

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