पिछले 10-11 वर्षों में हाथी-इंसानों के बीच संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं, उड़ीसा के वन्यजीव सोसायटी के एक विशेषज्ञ ने बताया कि जानवरों के प्राकृतिक मार्गों पर इंसानों के अतिक्रमण और हस्तक्षेप के कारण यह संकट बढ़ा है।
गांव कनेक्शन की डिप्टी मैनेजिंग एटिडर निधि जामवाल को दिए एक इंटरव्यू में उड़ीसा के वन्यजीव सोसायटी के सचिव बिस्वजीत मोहंती ने कहा कि ओडिशा में अनुमानित 2,000 हाथी हैं और हर साल 75-80 हाथी इंसानों के साथ टकराव में मर जाते हैं। “कई लोग भी इस संघर्ष में अपनी जान गंवाते हैं। 2020-21 में, अकेले ओडिशा में हाथियों के कारण लगभग 122 लोगों की मौत हो गई, “मोहंती ने कहा।
इस संघर्ष में योगदान देने वाले कारकों के बारे में बात करते हुए, मोहंती ने कहा कि खनन जैसी विकास गतिविधियों ने हाथियों के रहने योग्य क्षेत्र को कम कर दिया है। “यह संघर्ष में योगदान देने वाले सबसे बड़े कारकों में से एक रहा है। साथ ही, हाथी अक्सर खाने की तलाश में अपने आवास की ओर पलायन करता है। यह एक बहुत बड़ा जानवर है और इसे बड़ी मात्रा में खाने की जरूरत होती है, इसलिए जानवर का जीव विज्ञान ऐसा है कि यह झुंड में घूमता है और 150-200 किलोमीटर के दायरे में ये रहते हैं, “उन्होंने समझाया।
उन्होंने कहा कि हाथियों द्वारा जंगलों में प्रवास के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले रास्तों पर अतिक्रमण नहीं किया जाना चाहिए, लेकिन खनन, नहरों, रेलवे लाइनों जैसी गतिविधियां अक्सर इन रास्तों पर रुकावट बनती हैं, जिसके कारण हाथियों और मानव आबादी के बीच झड़पों की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अनुसार, 2014-15 और 2018-19 के बीच, हाथियों के साथ संघर्ष के चलते लोगों की मौत हुई, जबकि 510 हाथियों की मौत बिजली के झटके, ट्रेन दुर्घटना, अवैध शिकार, जहर जैसी घटनाओं में हुई। लगभग दो-तिहाई मौतों (510 में से 333) का कारण बिजली बनी।
राज्य-वार, पश्चिम बंगाल ने सबसे अधिक 403 इंसानों की मौत हुई है, उसके बाद ओडिशा में 397 और असम में इसी अवधि के दौरान 332 मौतें हुईं। इन तीन राज्यों में देश में कुल मानव-हाथी संघर्ष में मानव और हाथियों दोनों की मृत्यु का लगभग आधा हिस्सा है।