सीतापुर(उत्तर प्रदेश)। पहले ओला और बारिश और उसके बाद लॉकडाउन से किसान पहले से परेशान थे, अब किसानों के सामने नई मुसीबत आ गई है। मौसम के बदलाव के साथ ही गन्ना की फसल में पायरिला कीट का प्रकोप भी बढ़ गया है।
उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले के नवनेर गांव के रहने वाले किसान ज्ञानेंद्र मिश्र बताते हैं, “अभी मेरे पांच एकड़ की गन्ना फसल में पायरिला लग गया है। यह रोग बहुत तेजी से बढ़ रहा है। कोरोना वायरस की वजह से लॉकडाउन के चलते हम किसानों को दवाएं नहीं मिल पा रही है। ऐसे में हम लोगों बहुत कठिनायों का सामना करना पड़ रहा है। अभी तक चीनी मिल ने पैमेंट नहीं दिया। दूसरा लॉकडाउन के चलते सब काम काज ठप हैं। ऐसे में हमारे आगे विकराल समस्या बनी हुई है।”
वहीं झरेखापुर के रहने वाले किसान हिमांशू सिंह ने बताया कि पायरिल्ला रोग से इलाके में तक़रीबन पचास एकड़ गन्ने को प्रभावित कर रखा है। लेकिन अभी तक इसके रोकथाम की कोई जानकारी चीनी मिलों द्वारा नही दी गई। ऐसे में किसान बहुत परेशान हैं।
अचानक मौसम में हुए बदलाव से इन दिनों पायरिला कीट का प्रकोप पेड़ी गन्ने में सर्वाधिक देखा जा रहा है। ऐसे में किसानों को सही जानकारी देने के बजाय कीटनाशी विक्रेता अपने मन से कीटनाशकों का छिड़काव करा रहे हैं। यदि गौर करें तो इन विनाशकारी कीटो का दमन करने के लिए मित्र कीट प्रकृति ने हमें दे रखे हैं। जो इनको खेतों में ही समाप्त करने की क्षमता रखते हैं लेकिन जब किसान कीटनाशक का प्रयोग कर देते हैं तो खेतों में मौजूद मित्र कीट सबसे पहले समाप्त होते हैं, जिससे पायरिला जैसे दुश्मन कीटो के पनपने का खतरा और बढ़ जाता है दूसरी ओर यदि एक कीटनाशक काम नहीं करता तो ऐसे में दुकानदार नए-नए मिश्रित करके कीटनाशकों के प्रयोग को बढ़ावा देने लगते हैं, जिससे किसान की फसल लागत में लगातार वृद्धि के साथ-साथ पर्यावरण पर भी संकट मंडराने लगता है।
क्या कहते हैं कृषि वैज्ञानिक
कृषि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं, “यह कीट सामान्यतया अप्रैल से अक्टूबर के बीच में खेतों में दिखाई देता है, लेकिन अनुकूल मौसम मिलने से इसके प्रकोप की संभावना अधिक बढ़ जाती है और यदि मौसम में उतार चढ़ाव बना रहा तो यह कीट बड़े पैमाने पर फसल का नुकसान करता है। खेत में मित्र कीटों संख्या में कमी होने से यह कीट खेतों में बुरी तरीके से पैर पसार कर क्षेत्र के अन्य गन्ना किसानों की फसलों में भी अपना प्रकोप फैला देता है, ऐसे में यदि सही समय रहते एकीकृत सुझावों पर गौर न किया गया तो यह गन्ना फसल को क्षतिग्रस्त करने में कोई कसर नहीं छोड़ता।”
गन्ने की फसल में पायरिला कीट से बचाव
यह कीट बहुत तेजी से अपना जीवन चक्र बढ़ाकर आपके गन्ने की फसलों को बर्बाद करने की क्षमता रखता है, जिन खेतों में पायरिला कीट अभी नहीं देखा गया है वह भी सचेत रहें क्योंकि यदि किसी अन्य के खेत में अगर प्रकोप हो गया है तो आप के खेतों तक इसे पहुंचने में देरी नहीं लगेगी।
पायरिला कीट की पहचान
यह कीट हल्के पीले -भूरे रंग का 10-12 मीमी लम्बा होता है। इसका सिर लम्बा व चोंचनुमा होता है। इसके बच्चे और वयस्क गन्ने की पत्ती से रस चूसकर क्षति पहुंचाते हैं। इसका प्रकोप माह अप्रैल से अक्टूबर तक पाया जाता है।
पायरिला के लक्षण
इनके अंडे पत्तियों की निचली सतह पर झुंड में सफेद रोमों से ढंके रहते हैं। ग्रसित फसल की पत्तियां पीली पड़ने लगती है, क्योंकि इस कीट के शिशु और वयस्कों द्वारा इनका रस चूस लिया गया होता है। पीली पत्तियों से कभी कभी किसानों को ऐसा भ्रम हो जाता है कि फसल में किन्हीं पोषक तत्वों की कमी है, लेकिन ऐसा नहीं है रस चूसते समय यह कीट पत्तियों पर एक लसलसा सा पदार्थ छोड़ता है, जिससे पत्तियों पर काली फफूंद उगने लगती हैं। समूचे पत्ते काले पड़ने लगते हैं पौधों में प्रकाश संश्लेषण की क्रिया में बाधा पड़ने लगती है।
पायरिला से बचाव के लिए करें उपाय
खेतों के आसपास खरपतवार न जमा होने दें।
खेतों की सुबह-शाम निगरानी करते रहें।
यदि गन्ने की पत्तियों में सफेद रूई नुमा धागे वाई के आकार संरचना दिखाई दे रही है तो इन्हें तत्काल काटकर जला दें या गड्ढे में दबा दें।
जब तक कीटों का प्रकोप है यूरिया का प्रयोग ना करें।
रासायनिक कीटनाशकों के प्रयोग करने से बचें क्योंकि आप के खेतों में पायरिला के दुश्मन यानी किसानों का मित्र कीट इपिरकानिया मौजूद रहते हैं जो कि कीटनाशक डालने पर सबसे पहले नष्ट हो जाएंगे।
जैविक कीटनाशक मेटाराईजियम 5 मिलीलीटर प्रति लीटर पानी का घोल बनाएं एवं इस घोल में कुछ मात्रा गुड़ का घोल मिला ले तत्पश्चात शाम के समय छिड़काव करें।
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