लखनऊ। बागवानों का रुझान तेज़ी से आम की बाग़ के साथ-साथ अमरूद की तरफ भी बढ़ा है। अमरूद की कई नई किस्में बाजार में है जिन्हें लोग पसंद कर रहे हैं और उनकी मांग बढ़ी है। अमरूद की बाग लगाने के साथ-साथ अमरूद की वेज ग्राफ्टिंग तकनीक से अमरूद की पौधे की नर्सरी भी किसानों के लिए फायदे का सौदा बन रही है।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के मलिहाबाद क्षेत्र किसान अमरूद के बाग लगाने के साथ-साथ नर्सरी भी लगा रहे हैं। सीआईएसएच (केंद्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) के निदेशक डॉ. शैलेश राजन बताते हैं कि इस समय 40 से 50 लाख पौध का उत्पादन मलिहाबाद के किसानों द्वारा किया जा रहा है और मलिहाबाद अमरूद की नर्सरी के मामले में एक हब बन चुका है।
सीआईएसएच से प्रशिक्षण प्राप्त कर शुरू कर सकते है अमरूद की नर्सरी
सीआईएसएच (केन्द्रीय उपोष्ण बागवानी संस्थान) के निदेशक डॉ. शैलेश राजन बताते हैं, “वेज ग्राफ्टिंग तकनीक की खोज सीआईएसएच द्वारा ही की गयी है। आज इसकी मांग पूरे देश में हैं। वेज क्राफ्ट तकनीक अमरूद की खेती के क्षेत्र में एक नया रेव्यूलेशन आया है जिसने परंपरागत तरीके की बागों जिनमें लागत अधिक, रोग की मात्रा अधिक, उपज कम और समय अधिक लगता था। उसे छोड़ते हुए अमरूद की बाग को घाटे के सौदे से फायदे के सौदे में तब्दील कर दिया है। आज सबसे बड़ी जरूरत मांग के अनुरूप इन पौध को तैयार करके उन्हें पूरा करना है।
डॉ. शैलेश राजन बताते हैं, “पुराने बागों में पहले भेट कलम द्वारा पौध बनाई जाती थी या बीजू पौधों होते थे जिससे किसानों को अच्छे परिणाम नहीं मिलते थे। पौधे बनाने में समय तो अधिक लगता ही था साथ ही लागत भी अधिक आती थी। ये जो ग्राफ्टिंग की तकनीक है, इसका प्रशिक्षण पूरे साल सीआईएसएच में किसानों को दिया जा रहा हैं।”
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इन किस्मों के अमरूद की बाजार में हैं मांग
डॉ.शैलेश राजन बताते हैं, “सीआईएसएच द्वारा विकसित की गयी अमरूद की किस्मों की मांग इस समय पूरे देश में है। इनके बागानों की संख्या दक्षिण भारत में यहां से 5 हजार किमी दूर अरुणाचल प्रदेश में भी प्रयोग की जा रही है और सफलता से इन किस्मों का उत्पादन हो रहा है। इसलिए किसानो ने इसके बाग लगाना शुरू कर दिया है और लाखों की संख्या में इसके पौध की डिमांड हमारे पास आ रही हैं, अमरूद की चार किस्में जो संस्थान द्वारा विकसित की गयी हैं।”
इसमें “ललित” एक किस्म है जो अंदर से गुलाबी गूदे वाली होती है। इसका इस्तेमाल ज्यादातर लोग प्रसंस्करण के लिए करते हैं। इसमें अन्य किस्मों की अपेक्षा करीब 20 प्रतिशत अधिक उपज होती है। इसकी पौध की अगर छंटाई करें तो नये कल्लो में ही फल आते हैं प्रूनिंग के द्वारा किसान इसकी अलग-अलग फसल ले सकते हैं। जिसमें उन्हें दाम ज्यादा मिलता है।
दूसरी किस्म अमरूूद की “श्वेता” है। जो उत्तर प्रदेश के पश्चिमी भाग में हरियाणा और पंजाब में सफलता पूर्वक उगाई जा रही हैं। इस किस्म की खासियत ये है कि ठंडा हो जाने पर इसके ऊपर गुलाबी रंग आ जाता हैं। गुलाबी रंग होने के कारण फल आकर्षक होते हैं बाजार में इसके दाम अच्छे मिलते हैं। इसमें बीजों की संख्या कम होती है और गूदा बिलकुल सफेद है जिसके कारण इसकी मांग अच्छी हैं।
तीसरी किस्म हमारी “धवल” है जिसका है उत्पादन तो अच्छा है ही देखने में भी फल काफी आकर्षक हैं। चौथी किस्म “लालिमा” है जो की बिल्कुल सेब की रंग की होती है और सेब जैसी दिखने के कारण इसका बाजार में लगभग दोगुना मूल्य मिल जाता हैं। जो हमारी और किस्में हैं उनके मुकाबले इसकी उपज थोड़ी कम होती हैं।
डॉ. शैलेश बताते हैं कि इन सभी किस्मों में लालिमा को छोड़कर बाकी कोई भी किस्म आप पूरे देश में कही भी लगा सकते हैं। लालिमा के लिए जिस समय फल विकसित हो रहा हो उस समय लगभग तापमान 8 से 12 डिग्री होना चाहिए और दिन में खुली धूप होनी चाहिए।