जंगल घना है और वहां काफी अंधेरा भी होता है, लेकिन ये बाधाएं राम सिंह पवार को ई-कॉमर्स कंपनी, फ्लिपकार्ट के ग्राहकों के लिए दूरदराज वाले इलाकों तक भी माल पहुंचाने के उनके कर्तव्य से नहीं रोकते हैं।
पवार को इलाके में एक विशमास्टर (लोगों की इच्छा पूरी करने वाला) के नाम से जाना जाता है। कई बार उन्हें ग्राहक के घर तक पहुंचने के लिए जंगलों के बीच, पहाड़ी व कीचड़ भरे रास्तों से होकर भी गुजरना पड़ता है, लेकिन उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। 35 वर्षीय पवार हर बाधा को पार करते हुए ग्राहक के दरवाजे तक उनका पार्सल पहुंचाते हैं।
पवार ने तीन साल तक महाराष्ट्र के नागपुर में फ्लिपकार्ट के लिए काम किया है। पवार ने बताया, “मेरी पत्नी स्नेहा को सुबह साढ़े सात बजे तक खाना तैयार करना होता है, क्योंकि मैं अपने साथ टिफिन लेकर ही काम पर जाता हूं।” पवार के दो बच्चे हैं, जिनमें बेटे का नाम गणेश व बेटी का नाम धरा है। वे वादी के सोनबा नगर के गोदाम में काम पर जाते हैं। यह वसंत विहार में उनके घर से लगभग एक किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।
यहां कुछ कागजी कार्रवाईयों को समाप्त करने के बाद, पवार कंपनी के अशोक लीलैंड ट्रक में बैठ जाते हैं। इस ट्रक में कार्डबोर्ड और डक्ट टेप में पैक किए गए ऐसे माल भरे होते हैं, जिन्हें उस दिन ग्राहकों के घरों तक पहुंचाना होता है। पवार बताते हैं कि अगर केवल स्थानीय इलाकों में ही डिलीवरी करना हो तो वे एक दिन में लगभग 20 से 25 घरों तक डिलीवरी कर देते हैं। वे आगे बताते हैं, “कई बार कुछ जगहों पर डिलीवरी के लिए हमें 100 से 120 किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है।” वे ऐसी स्थिति में भी लगभग 10 से 15 घरों तक डिलीवरी करने का दावा करते हैं।
पवार कहते हैं कि कहने को तो यह एक नौकरी ही है, लेकिन फिर भी ग्राहकों की खुशी और उत्साह इतनी ज्यादा होती है कि किसी के भी दिल को छू जाए। पवार मुस्कुराते हुए बताते हैं कि वे उनकी खुशी को महसूस करते हैं। वे कहते हैं कि जब ग्राहकों का कीमती सामान वे उनके सामने खोलते हैं तो इस दौरान उनका उत्साह देखते बनता है, यह देखकर उन्हें अच्छा लगता है कि ग्राहकों की खुशी में उनका भी एक अहम योगदान है।
पवार ने कहा, “मुझे वह समय याद है कि जब मैंने एक परिवार को टेलीविजन डिलीवर किया था। उन्हें इस टीवी का लंबे समय से इंतजार था। जब मैंने उस टीवी का कवर हटाते हुए अनपैक किया, तब वहां बच्चों ने इसका आनंद और उत्साह के साथ ताली बजाते हुए स्वागत किया।” पवार ने बताया कि यह देखकर वे बहुत खुश हुए और भावुक भी हो गए।
पवार ने कहा, “हो सकता है कि उन्हें मैं या मेरा चेहरा याद ना हो, लेकिन वे सुखद क्षण जरूर याद होंगे जब मैंने उनके लिए फ्रिज, वॉशिंग मशीन या टेलीविजन अनपैक किया था।” उन्होंने आगे बताया, “ज्यादातर समय ऐसा होता है कि ग्राहक खुश होते हैं। इस दौरान वे हमें पानी के लिए भी पूछते हैं। लेकिन कभी-कभी ऐसे लोग भी मिलते हैं जो डिलीवरी में हुई देरी को लेकर नाराज़ होते हैं। इसके अलावा कभी-कभार हमारे द्वारा बरती जाने वाली तमाम सावधानियों के बावजूद सामान के टूट जाने पर भी ग्राहक नाराज़ हो जाते हैं।”
कभी-कभी ये विशमास्टर भी अपने रास्ते से भटक जाते हैं। फिर भी दिन में अनगिनत बार ऐसा होता है कि पवार अपने जूते घरों की दहलीज पर उतारते हैं, और फिर पार्सल को सावधानीपूर्वक रखते व खोलते हैं। अक्सर ऐसा होता है कि पवार काफी उत्साहित और अधीर ग्राहकों का सामना करते हैं।
“कई बार सड़कों की स्थिति भी काफी खराब होती है। अक्सर ऐसे मामलों में मुझे व ड्राइवर को घर के दरवाजे तक सामान डिलीवर करने के लिए आधे किलोमीटर तक पैदल चलना पड़ता है। पवार अपने द्वारा की गई एक बेहद मुश्किल डिलीवरी को याद करते हुए बताते हैं, “एक बार हमें नागपुर से लगभग 80 किलोमीटर दूर वर्धा में एक वॉशिंग मशीन डिलीवर करना था। एक लंबी ड्राइव के बाद हम काफी थक चुके थे, लेकिन फिर भी लगभग 100 किलोग्राम से अधिक भार वाले वॉशिंग मशीन को हमें तीन मंजिल ऊपर तक चढ़ाना पड़ा।”
पवार ने कहा, “हम अपने साथ अपना लंच लेकर जाते हैं। कभी-कभी लंबी ड्राइव होने पर हम रास्ते में रुक जाते हैं और खाने की जगह ढूंढते हैं।” उन्होंने आगे बताया कि वे आमतौर पर घर से बना हुआ खाना ही खाते हैं। ड्राइवर और पवार के बीच साथ में लंच के दौरान बातचीत के बहुत सारे अनुभव हैं। पवार बताते हैं कि कभी-कभी वे एक-दूसरे की टांग इसलिए खींचते हैं क्योंकि उनकी पत्नी तीन दिन तक लगातार एक ही तरह का खाना भेज रही हैं।
इस दौरान, पवार की पत्नी ने उन्हें खाने के लिए याद दिलाने के लिए दिन में कई बार फोन भी किया।
पवार ने बताया, “कई बार काम से वापस लौटते वक्त काफी रात हो जाती है और हमें अंधेरे जंगलों के रास्ते से होकर गुजरना पड़ता है। यह बहुत डरावना होता है क्योंकि इस सुनसान रास्ते में काफी अंधेरा होता है और वहां केवल वाहन की हेडलाइट्स की ही रोशनी होती है।” पवार बताते हैं कि कभी-कभार ऐसा भी हुआ है कि उनका वाहन जंगल के बीच में ही खराब हो गया हो। उन्होंने बताया, “ऐसे समय में हमें रिकवरी वाहन भेजे जाते हैं, लेकिन वहां फंसे रहना अच्छा नहीं है। हम जानते हैं कि उन जंगलों में जंगली जानवर घूम रहे होते हैं।”
पवार अपने कार्यस्थल पर 15 अन्य लोगों के साथ सप्ताह में छह दिन काम करते हैं। वे महीने में लगभग 12,000 रुपये कमा लेते हैं। वे कहते हैं, “कुछ ऐसे दिन होते हैं जब हमें थोड़ा ज्यादा काम करना होता है, लेकिन सप्ताह में एक बार छुट्टी मिल जाती है। हालांकि छूट्टी का दिन रविवार होना जरूरी नहीं है।
यह पूछने पर कि दिन का सबसे अच्छा समय कौन सा होता है, पवार कहते हैं, “जब मैं काम के बाद अपने स्कूटर पर ड्राइव करते हुए घर जा रहा होता हूं, वह समय मेरे लिए सबसे खूबसूरत होता है। मेरी पत्नी और बच्चे घर पर मेरा इंतजार कर रहे होते हैं।”
अनुवाद- शुभम ठाकुर