विदिशा और रायसेन, मध्य प्रदेश। कलियाबाई जाटव रायसेन जिले की सांची तहसील के नीमखेड़ा गाँव में रहती है। यह गाँव बेतवा नदी से कुछ ही मीटर की दूरी पर है, जो बारहमासी नदी के रूप में जानी जाती है।
60 साल की जाटव ने गाँव कनेक्शन को बताया, “फिर भी हम पानी के लिए तरस रहे हैं। नदी की तलहटी सूखी है और पानी की जरूरत के लिए पूरा गाँव ट्यूबवेल पर निर्भर है। अगर हमें ट्यूबवेलों का पानी चाहिए तो हर माह तीन सौ रुपये देने पड़ेंगे।” उनके मुताबिक, जो अमीर लोग जमीन से पानी निकालने के लिए ट्यूबवेल लगाने का खर्च उठा पाने में सक्षम थे, आज वो अन्य ग्रामीणों को पानी बेच रहे हैं।
लेकिन गाँव में जाटव जैसे न जाने कितने लोग हैं जिनके लिए हर महीने 300 रुपये खर्च कर पाना मुमकिन नहीं है। अनुसूचित जाति से ताल्लुक रखने वाली कलियाबाई ने कहा, “हम गाँव के सबसे गरीब समुदाय से हैं। हमें कभी-कभी लोगों से पानी के लिए भीख मांगनी पड़ती है। लेकिन वे अक्सर मदद करने से इंकार कर देते हैं। पानी लेने के लिए हमें पांच किलोमीटर का लंबा रास्ता तय करना पड़ता है।”
गाँव कनेक्शन की ‘पानी यात्रा’ की सीरीज के दौरान रिपोटर्स और कम्युनिटी जर्नलिस्ट की हमारी राष्ट्रीय टीम ने देश के विभिन्न राज्यों के दूरदराज के गांवों की यात्रा की. ताकि वे यह पता लगा सके कि गाँवों में रहने वाले लोग किस तरह से भीषण गर्मी में अपनी पानी की जरूरतों को पूरा कर रहे हैं।
गाँव कनेक्शन ने इस बार मध्य प्रदेश से होकर बहने वाली बेतवा नदी के तट के आस-पास बसे कई जल-संकट वाले गाँवों का दौरा किया। ग्रामीण विदिशा और रायसेन में सैकड़ों हजारों ग्रामीण अपने रोजाना की जरूरतों के लिए पानी के लिए संघर्ष करते नजर आए।
बेतवा, यमुना की एक सहायक नदी है जो होशंगाबाद के उत्तर में विंध्य रेंज में निकलती है और 590 किलोमीटर तक की यात्रा करने के बाद उत्तर प्रदेश में यमुना में मिल जाती है। अपने रास्ते के कई हिस्सों में नदी सूखी पड़ी है।
इस क्षेत्र में भूजल का अंधाधुंध दोहन और पुराने तालाब और कुओं का पूरी तरह से गायब हो जाना इलाके की इस स्थिति के लिए जिम्मेदार है। वर्षा के पानी को इकट्ठा करने और इस नदी को पानी से लबाबब करने वाले भूमिगत एक्वीफर (जलभृतों) को रिचार्ज करने के लिए कोई जगह ही नहीं बची है।
मध्य प्रदेश के विदिशा जिले के बेतवा से सटे उदयपुर गाँव की रहने वाली 50 साल की गुड्डीबाई मोगिया ने गाँव कनेक्शन को बताया, “गर्मियां आते ही मंदिर के पास के गाँव का छोटा कुआं सूख जाता है। हममें से सैकड़ों लोग गाँव के बाहर वाले एक कुएं से पानी लाने के लिए तीन किलोमीटर पैदल चलने को मजबूर हैं, “समस्या सिर्फ दूर तक पैदल चलकर पानी लाने की नहीं है। मोगिया बताती हैं, “हमें अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए गिलाओ (कीचड़) को कपड़े से छानकर पानी निकालना पड़ता है। वहां भी पानी खत्म होने का खतरा बना हुआ है।”
अधिकारियों ने टैंकरों के जरिए गाँव में पानी पहुंचाने की व्यवस्था की है, लेकिन यह नाकाफी है। 7,000 की आबादी वाले गांव को पानी उपलब्ध कराने के लिए हर चार-पांच दिन में एक बार सात से आठ टैंकर पहुंचते हैं।
ग्राम सचिव कोमल प्रसाद ने गाँव कनेक्शन को बताया, “एक टैंकर की क्षमता 4,000 लीटर है।” गांव वालों ने शिकायत करते हुए कहा कि यह पानी पूरा नहीं पड़ता है।
बेतवा नदी का अंधाधुंध दोहन
केंद्रीय भूजल बोर्ड द्वारा प्रकाशित ग्राउंड वॉटर ईयर बुक- मध्य प्रदेश (2020-21) के मुताबिक, मध्य प्रदेश के दतिया, विदिशा, बैतूल, ग्वालियर, मुरैना और श्योपुर जिलों में जल स्तर हर साल आधा मीटर से एक मीटर की दर से गिर रहा है।
इयर बुक बताती है कि मानसून के बाद के जल स्तर में गिरावट की प्रवृत्ति से पता चलता है कि एक्वाफिर का एक हिस्सा हर साल या तो कम वर्षा या विकासात्मक गतिविधियों के कारण खाली हो रहा है। और यही बेतवा के सूखने का एक कारण भी है।
बेतवा उत्थान समिति – विदिशा स्थित गैर-लाभकारी संस्था के अध्यक्ष अतुल शाह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सबसे बड़ी समस्या यह है कि यहां बेतवा नदी में पानी का बहाव नहीं है.” उनके अनुसार, नदी में जो थोड़ा-बहुत पानी है वह भी पास के हलाली बांध का है।
शाह ने क्षेत्र में घटते भूमिगत जल भंडार और सूखी नदी के लिए अंधाधुंध सिंचाई पद्धतियों को जिम्मेदार ठहराया।
शाह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “क्षेत्र के कई किसानों ने सिंचाई के पानी के लिए सीधे नदी तल में खुदाई करनी शुरू कर दी है। इससे क्षेत्र में लंबे समय तक पानी का संकट बना रहेगा। इस सबकी वजह से जलवाही स्तर को रिचार्ज करने वाले रिसाव में और कमी आएगी।”
केंद्रीय कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों के अनुसार, मध्य प्रदेश में शुद्ध बुवाई क्षेत्र 15.074 मिलियन हेक्टेयर है। राज्य में सभी स्रोतों से शुद्ध सिंचित क्षेत्र 6.418 मिलियन हेक्टेयर है, जो कुल खेती योग्य भूमि का केवल 42.57 फीसदी है।
किसानों का दावा है कि सतही सिंचाई सुविधाओं की कमी उन्हें जमीन के अंदर से पानी लेने के लिए मजबूर करती है।
राज्य में ग्रामीण नल जल कनेक्शन की स्थिति बेहतर नहीं है। केंद्र प्रशासित जल जीवन मिशन के डैशबोर्ड के अनुसार, जून 2022 तक मध्य प्रदेश में केवल 41.03 फीसदी ग्रामीण घरों में नल के पानी के कनेक्शन हैं। इसके अलावा, विदिशा जिले के कुल 257,424 घरों में से केवल 40.14 प्रतिशत घरों में नल के पानी के कनेक्शन हैं, जबकि रायसेन जिले के कुल 226,999 घरों में से 85,467 घरों में (37.65 प्रतिशत) नल के पानी के कनेक्शन उपलब्ध हैं।
बेतहाशा जल निकासी के अलावा प्रदूषण भी बेतवा को मार रहा है. इससे क्षेत्र में गंभीर जल संकट पैदा हो गया है। बेतवा उत्थान समिति के शाह ने कहा, “शहर (विदिशा) से छह सीवेज नालों को नदी में छोड़ दिया जाता है। चूंकि पानी का प्रवाह नहीं है और पानी रुकने की वजह से प्रदूषण एक बड़ी समस्या बना गया है।”
उन्होंने शिकायत करते हुए कहा, “हर शनिवार को हजारों भक्त शनि मंदिर (विदिशा शहर में नदी के तट पर स्थित) में आते हैं और नदी में चप्पल और कपड़े फेंक जाते हैं। हम हर हफ्ते नदी से ट्रॉलियों भर कर इस तरह का कचरा निकालते हैं।”
केन-बेतवा लिंक परियोजना
बेतवा नदी बेसिन में पानी की कमी को दूर करने के लिए 1980 में केंद्र सरकार ने देश में जल संसाधनों के विकास के लिए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (एनपीपी) तैयार की थी।
सरप्लस वॉटर रिवर बेसिन को कम जल वाली रिवर बेसिन से जोड़ने की योजना, जल संकट को कम करने की उम्मीद जगाती है। केंद्र ने जुलाई1982 में जल संसाधन मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त सोसायटी के रूप में राष्ट्रीय जल विकास एजेंसी (NWDA) की स्थापना की और इसे एनपीपी की व्यवहार्यता का अध्ययन करने का काम सौंपा गया।
25 अगस्त 2005 को केन और बेतवा नदियों को जोड़ने की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट तैयार करने के लिए केंद्र, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की राज्य सरकारों के बीच सहमति बनी। दोनों नदियां लगभग 200 किलोमीटर की दूरी पर हैं।
व्यावार्हयता रिपोर्ट में केन नदी के ऊपर मौजूदा गंगऊ वियर के ऊपर एक बांध के निर्माण और केन नदी से ‘सरप्लस वाटर’ को पानी की कमी वाली बेतवा नदी में स्थानांतरित करने के लिए एक लिंक नहर बनाने का सुझाव दिया।
व्यावार्हयता रिपोर्ट में कहा गया है, “मध्य प्रदेश के छतरपुर और टीकमगढ़ जिलों और उत्तर प्रदेश के हमीरपुर और झांसी जिलों में पेयजल सुविधा और 47000 हेक्टेयर में सिंचाई के अलावा, मध्य प्रदेश के लिए 1375 मिलियन घन मीटर और उत्तर प्रदेश के लिए 850 मिलियन घन मीटर पानी की डाउनस्ट्रीम प्रतिबद्धताओं का प्रावधान भी रखा गया है।”
हाल ही में एक आधिकारिक प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, 44,605 करोड़ रुपये वाली इस केन-बेतवा लिंक परियोजना से उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में लगभग 62 लाख की आबादी को 1.026 मिलियन हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई और पेयजल आपूर्ति करने की उम्मीद है।
हालांकि, पर्यावरणविद और जल प्रबंधन विशेषज्ञ इस महत्वाकांक्षी परियोजना को लेकर संशय में हैं।
पर्यावरण विशेषज्ञ और दिल्ली स्थित एनजीओ साउथ एशिया नेटवर्क ऑफ डैम्स, रिवर एंड पीपल (SANDRP) के समन्वयक हिमांशु ठक्कर ने कहा कि केन नदी के सरप्लस वाटर (जल अधिशेष) के वर्गीकरण पर पुनर्विचार करना होगा। उन्होंने पूछा, “नदी के जल प्रवाह डेटा के आधार पर ही एक नदी के सरप्लस वाटर के तौर पर वर्गीकृत किया जा सकता है। सरकार ने केन नदी के जल प्रवाह डेटा का उल्लेख नहीं किया है। समझ नहीं आता कि ये वर्गीकरण किस आधार पर किया गया।”
ठक्कर ने गाँव कनेक्शन को बताया कि सार्वजनिक डोमेन में ऐसा कोई डेटा मौजूद नहीं है जो बताता हो कि केन नदी में पानी की कमी वाले क्षेत्र में स्थानांतरित करने के लिए पर्याप्त पानी है
पर्यावरणविद् ने चेतावनी देते हुए कहा,”एक बार केन नदी के पानी को बेतवा के आसपास के क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिए जाने पर बांध पूरी तरह से भर जाएंगे। इसके बाद जब पानी को बेतवा क्षेत्र की ओर स्थानांतरित किया जाएगा, तो नए बांध बनाने होंगे. और यह हाइड्रोलॉजिकल प्रभाव के रूप में एक बड़े क्षेत्र के हजारों पेड़ों सहित पारिस्थितिकी को जलमग्न और बर्बाद कर देगा।”
साथ ही ठक्कर ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त सेंट्रल एम्पावर्ड कमेटी ने सितंबर 2019 की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि परियोजना से पर्यावरण को होने वाला नुकसान इसके कथित उद्देश्य से कहीं ज्यादा है।
केन-बेतवा रिवर लिंक प्रोजेक्ट का बचाव करते हुए इसके सुपरिटेंडेंट इंजिनियर शीलचंद्र उपाध्याय ने गांव कनेक्शन को बताया कि प्रस्तावित परियोजना बेतवा क्षेत्र को पानी की कमी से छुटकारा पाने का एकमात्र तरीका है।
उपाध्याय ने कहा, “जनसंख्या बढ़ रही है और जल संसाधनों पर दवाब भी बढ़ रहा है। हमें स्थानीय आबादी के लिए पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक उपायों की जरूरत है। दरअसल जो लोग इस परियोजना का विरोध कर रहे हैं, वो नहीं चाहते कि मध्य प्रदेश में पानी की कमी से जूझ रहे इन इलाकों में समृद्धि आए।”
विदिशा के पब्लिक हेल्थ इंजिनियरिंग विभाग के कार्यकारी अभियंता संतोष साल्वे ने गाँव कनेक्शन को बताया, “इस साल भूजल के स्तर में तीन से चार मीटर की गिरावट आई है. और इसे रोकने के प्रयास किए जा रहे हैं।”
लेकिन तस्वीर डरावनी है। विदिशा में बेतवा नदी के एक हिस्से को पानी मुहैया कराने वाले हलाली बांध के कार्यकारी अभियंता राजीव कुमार जैन ने गांव कनेक्शन को बताया. “हम अपनी क्षमता से अधिक आपूर्ति कर रहे हैं। विदिशा और रायसेन दोनों को हर साल पचास लाख क्यूबिक मीटर पानी की आपूर्ति की जा रही है। और अभी भी अधिक पानी की मांग बनी हुई है।
भोपाल के पर्यावरणविद् केजी व्यास टी, ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नदियों और भूजल के संरक्षण की एकमात्र जिम्मेदारी किसानों और स्थानीय समुदायों की नहीं हो सकती है।
व्यास ने कहा, “सरकार को हस्तक्षेप करना होगा और पानी के संरक्षण के लिए आगे आना होगा। वर्षा के पानी को इक्ट्ठा करने के लिए बड़े पैमाने पर तालाब बनाए जाएं। इससे न केवल पानी के संरक्षण में मदद मिलेगी बल्कि ये गिरते भूजल स्तर को फिर से भरने में भी मदद करेगा।” उन्होंने कहा, “यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि तालाब केवल वही नहीं हैं जो मनरेगा के तहत बनाए गए हैं। वे तालाब बहुत छोटे हैं. बड़े तालाब बनाये जाने की जरूरत है। यह इस संकट का एकमात्र दीर्घकालिक समाधान है।”