सुबह के लगभग 11 बज रहे हैं। बनारस के अस्सी घाट पर सन्नाटा पसरा है। नावें कतार में एक दूसरे से मोटी रस्सियों से बंधी खड़ी हैं। गांठों में काई जम गई है। ऊपर सीढियों की तरफ एक नाव उलटी पड़ी है।
ये क्या कर रहे हैं आप लोग, “नाव ठीक कर रहा हूं। अभी से इसे थोड़ा दुरुस्त नहीं करेंगे तो पांच-छह महीने खड़े-खड़े खराब हो जायेगी। कुछ काम नहीं है तो यही करके समय बिता रहे हैं। तीन महीने से यही तो कर रहे हैं।” हथौड़े से कील ठोकते-ठोकते हमारे सवाल के जवाब में श्याम (55) कहते हैं।
श्याम नावों के मिस्त्री हैं। वे नयी नाव भी बनाते हैं, लेकिन लॉकडाउन के में वे नाव बना तो रहे हैं, लेकिन उसके बदले उन्हें कुछ मिल नहीं रहा। जिन नावों को वे ठीक कर रहे हैं वे इसलिए सुधारी जा रहीं ताकि कुछ और महीने खड़ी रहने पर खराब ना हो। नाव के मालिक ने कहा है कि नाव चलते ही जब कमाई होगी, तब उससे तुम्हारी मजदूरी दे दूंगा।
“बारिश के बाद से लगभग दो-तीन महीने बनारस में नाव वैसे ही नहीं चलती। नाविकों के सावन में कोई काम नहीं होता। अभी गर्मी की छुट्टियों में खूब भीड़ रहती थी, लेकिन इस बार तो लॉकडाउन ने सब चौपट कर दिया।” श्याम कहते हैं।
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बनारस (वाराणसी) में गंगा किनारे 84 घाट हैं। नाविकों के संगठन जय मां गंगा नाविक एसोसिएशन के अनुसार अस्सी से लेकर राजघाट तक लगभग 3,500 नावें चलती हैं और लगभग 14 हजार नाविक हैं। इनके परिवारों की संख्या को मिला दें तो संख्या 50 हजार से ज्यादा पहुंच जायेगी, जो नाव से होने वाली कमाई पर निर्भर हैं। नगर निगम में पंजीकृत नाविकों की संख्या एक हजार के आसपास है।
लॉकडाउन में कुछ ढील के बाद भी घाटों पर नाव चलाने की अनुमति अभी नहीं दी गई है। नाविक/मल्लाह इस बात को लेकर भी ज्यादा परेशान हैं कि लगभग तीन महीने का उनका कमाई वाला सीजन तो खत्म हो ही चुका है, अब बारिश के बाद दो-तीन महीने नाव चलाने और मछली पकड़ने की अनुमति नहीं होगी। ऐसे में उनका खर्च कैसे चलेगा।
श्याम कहते हैं कि अब हमारे सामने खाने का संकट हैं। मेरे दो बच्चे हैं। सरकार से क्या मदद मिली, इस पर वे कहते हैं, “एक बार 25 किलो राशन मिला था। उसमें चावल, गेहूं और दाल था। वह तो कब का खत्म हो चुका है। इसके अलावा हमें सरकार की तरफ से अभी तक कोई मदद नहीं मिली है। पिछली बार यहां जब मोदी और योगी आये थे तब मेरे ही बनायी नाव पर वे लोग गंगा घूमे थे।”
फत्तू मिस्त्री (70) का हाल भी कुछ ऐसा ही है। वे हमें अस्सी घाट पर जाल की सिलाई करते हुए मिले। वे कहते हैं, “किसी तरह से उधार-कर्जा लेकर घर का खर्च चल रहा है। एक बार पांच किलो चावल और आधा किलो चना मिला था। इसमें कितने दिन का गुजारा चलेगा। अब सरकार हमारे लिए कुछ करे, नहीं तो हम वैसे ही मर जाएंगे। अब तो बारिश आने वाली है। अगले दो-तीन महीने तक मेरे पास कोई काम नहीं रहेगा।”
लॉकडाउन बनारस के नाविकों के लिए दोहरी मार लेकर आया है। एक तो सीजन के समय काम बंद हो गया और अब आगे मानसून का सीजन है जिसमें नाच चलाने की इजाजत नहीं होती।
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नाविक समाज गंगा में जल परिवहन को बढ़ावा देने का भी विरोध करता आया है। इन्हें डर है कि इससे उनका पारंपरिक काम बंद हो जायेगा। रिवर फ्रन्ट बनाने और गंगा में क्रूज चलाने के फैसले का विरोध नाविक लंबे समय से कर रहे हैं। शायद इसीलिए नाविकों के नाव लाइसेंस का नवीनीकरण नहीं हो रहा है। इन सब के बीच लॉकडाउन ने मुसीबत और बढ़ा दी है।
युवा दीपक कुमार साहनी मल्लाह समाज से हैं। उनके दादा-परदादा भी बनारस में नाव चलाते थे। वे इस बात को भी लेकर परेशान हैं कि लॉकडाउन में नाव में लगने वाले सामानों की भी कीमत बढ़ गई।
वे बताते हैं, “सोचा कि अब जब नाव बंद है तो क्यों ना पुराने कुछ खराब पड़े नावों को ठीक करा लिया जाये, लेकिन लॉकडाउन में सब कुछ महंगा हो गया है। नाव में लगने वाली लकड़ियों की कीमत 25 से 30 फीसदी तक बढ़ गई है। पहले एक नाव बनाने में एक लाख रुपए तक का खर्च आता है। अब यह बढ़कर 130,000 तक हो गया है। मतलब 25 से 30 हजार रुपए तक कीमत बढ़ी है।”
“जब से क्रूज चला है तब से हमारा काम वैसे ही कम हो गया। लोग क्रूज में 800-900 रुपए देकर सवारी कर लेते हैं लेकिन हमें 50 रुपए देने में आनाकानी करते हैं। तीन महीने के लगभग बीत चुके हैं और तीन महीने और मान लीजिए, मतलब कुल मिलाकर 6 महीने तक हमारी कमाई नहीं होनी है। क्या खाएंगे, परिवार कैसे पालेंगे। जमीन जायदाद भी तो नहीं है कि खेती-बाड़ी ही कर लेते।” दीपक कहते हैं।
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नाविकों के संगठन जय मां गंगा नाविक एसोसिएशन के अध्यक्ष वीरेंद्र जाम इस बात को लेकर नाराजगी जताते हैं कि सरकार ने कहा था कि हर मजदूर, कामगार को मदद मिलेगी, लेकिन अभी तक कुछ नहीं हुआ। वे गांव कनेक्शन को फोन पर बताते हैं, “अभी तक हमें सरकार की ओर से कोई मदद नहीं मिली है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ जी ने कहा था कि सभी कामगारों को 1,000-1,000 रुपए मिलेंगे, लेकिन हमारे एक भी नाविक के खाते में पैसे नहीं आये हैं। हम जब भी अपनी मदद की गुहार लगाते हैं कि आश्वासन देकर लौटा दिया जाता है।”
“यहां क्रूज चलने से वैसे ही बहुत से नाविक दूसरे काम की तलाश कर रहे हैं। ऐसे में जो बचे हैं यही हाल रहा तो वे भी कब तक यह काम कर करेंगे। अब अगले दो-तीन महीने और नाव नहीं चलेंगे। ऐसे में कई नाविक कह रहे हैं कि वे लोग शहर चले जाएंगे काम की तलाश में, बिना कमाई के कब तक कोई खाएगा। और यहां दूसरा काम भी तो नहीं है।” वीरेंद्र आगे कहते हैं।
दीपक सरकार के रवैये से नाराज होते हुए कहते हैं, “सरकार चाहती तो हमारे लिए बहुत कुछ कर सकती है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का क्षेत्र है यह, लेकिन अत तक बहुत निराश हुए हैं। सामान्य दिनों में नाविक 500 से 600 रुपए दिनभर में कमा लेते थे। इस हिसाब से जोड़ेंगे तो अब तक बहुत नुकसान हो चुका है।”