राजेंद्र नगर(हैदराबाद)। देश में चावल की नई किस्मों से लोगों में कुपोषण की समस्या दूर की जा सकती है। पोषक तत्वों की कमी को पूरा करने के लिए चावल की सात किस्में विकसित की हैं जो शरीर में जिंक की कमी को पूरा करेंगी। वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई चावल की इन किस्मों में जिंक मात्रा सामान्य चावल के मुकाबले लगभग दोगुनी है। इस चावल के उपयोग से शरीर में प्राकृतिक रुप से जिंक की कमी पूरी हो सकेगी।
भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान की प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. नीरजा बताती हैं, “देश के ज्यादातर हिस्सों में लोगों के खाने में चावल जरूर होता है, इसलिए हमने चावल की कुछ ऐसी किस्में विकसित की हैं, जिससे देश में जिंक की कमी को पूरा किया जा सके। अभी चावल की सात किस्में विकसित हुई हैं, दूसरी किस्मों में जिंक की मात्रा 12 पीपीएम होती है, जबकि नई किस्मों में जिंक की मात्रा 25 पीपीएम होती है।”
देश में पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, कर्नाटक, असम और पंजाब प्रमुख चावल उत्पादक राज्य हैं। जिंक और आयरन की कमी से कुपोषण से पूरी दुनिया में लगभग दो लाख लोग प्रभावित हैं। भारत में जिंक की कमी से करीब 30 प्रतिशत लोग प्रभावित हैं। इसमें पांच साल से कम उम्र के बच्चे और गर्भवती महिलाएं पोषक तत्वों की कमी के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
वो आगे कहती हैं, “हमारी कोशिश है कि चावल की किस्मों में जिंक की मात्रा बढ़ाएं। इन किस्मों को खाने से महिला-पुरुषों में 58 प्रतिशत तक जिंक की मात्रा मिल जाती है।”
“देश के ज्यादातर हिस्सों में लोग चावल ही खाते हैं, लेकिन उन्हें बारीक चावल ही पसंद होते हैं, लेकिन अभी जो जिंक वाले चावल हैं सभी मोटे चावल हैं। इसलिए अभी हम बारीक वाला चावल भी विकसित करना चाहता हैं। क्योंकि जैसी क्वालिटी किसानों को चाहिए, वैसी क्वालिटी अभी नहीं है। हम किसानों से कहते हैं, कि अभी तो हमने मोटा चावल विकसित किया है, लेकिन आगे हम पतला चावल भी विकसित कर रहे हैं। अभी एक दो साल और लगेंगे लेकिन इससे आपके शरीर में जिंक की मात्रा बढ़ जाएगी, “उन्होंने आगे बताया।
पूरे देश में पीडीएस सिस्टम से लोगों को कम दाम में चावल मिलता है। पीडीएस सिस्टम और एमडीएम में इन चावल देने के समर्थन में वो कहती हैं, “अगर इन किस्मों को एमडीएम में शामिल करें तो कुपोषण को दूर किया जा सकता है, क्योंकि बच्चों में जिंक की कमी बहुत बड़ी समस्या है। राशन में इन किस्मों को दिया जाए तो गरीबों में कुपोषण की समस्या को दूर किया जा सकता है।”
आयरन की कमी होने पर शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी आ जाती है, लेकिन जिंक की कमी पूरे शरीर पर प्रभाव डालती है। इस बारे में डॉ. नीरजा कहती हैं, “जैसे कि जब अब आयरन खाते हैं तो आपके हीमोग्लोबिन की मात्रा ठीक हो जाती है, लेकिन जिंक पूरे मेटाबॉलिज्म के लिए जरूरी होता है। जैसे कि गर्भवती महिलाओं के लिए जिंक बहुत जरूरी होता है।”
इन राज्यों के किसान कर रहे इन किस्मों की खेती
डॉ. नीरजा बताती हैं, “जिस तरह से पूरे देश में लोग चावल खाते हैं, हमारी कोशिश है कि सभी तक ये चावल पहुंचे। अभी उड़ीसा, छत्तीसगढ़ में हमने किसानों को ये किस्में पहुंचायी है, साथ ही आंध्र प्रदेश के कुछ किसानों को तक भी ये किस्में पहुंची है, जल्द ही पूरे देश में ये किस्में पहुंच जाए।”
ये हैं चावल की नई किस्में
भारतीय चावल अनुसंधान संस्थान, हैदराबाद ने तीन किस्में विकसित की हैं, डीआरआर धान 45, डीआरआर धान 49। उड़ीसा स्थित केंद्रीय चावल अनुसंधान ने सीआर धान 310, सीआर धान 311 और रायपुर, छत्तीसगढ़ स्थित इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय ने जिंक ओ राइस और सीजीज़ेडआर 2 किस्में विकसित की हैं।