सैय्यद तहसीन अली, कम्युनिटी जर्नलिस्ट
पूर्णिया (बिहार)। यहां पर एक गाँव ऐसा है जहां पर किसान साल भर गेंदा की की खेती है, गेंदा की खेती ही किसानों के आमदनी का मुख्य जरिया है।
बिहार के पूर्णिया जिले के डुमरिया गाँव में पिछले दस साल में गेंदे की खेती तेजी से बढ़ी है, जो साल भर बाजार में बिकते हैं। यहां से फूल न केवल पूर्णिया में बल्कि पड़ोसी देश नेपाल भी भेजे जाते हैं। इससे न केवल किसानों का रोज़गार चलता है बल्कि इनसे जुड़े मजदूर वर्ग भी लाभान्वित होते हैं। खेत से गेंदा तोड़कर फूल की माला बनायी जाती है, जो बाजारों में बिकने जाते हैं। दुर्गा पूजा हो, दीवाली हो या फिर छठ जैसे बड़े पर्व, सब में इस फूल की अहमियत बढ़ जाती है।
साल में तीन बार करते हैं खेती
किसान दुर्योधन मजूमदार कहते हैं, “हम लोग साल भर गेंदा की खेती करते हैं, हर चौथे महीने में नए फूल आ जाते हैं। साल में तीन बार नयी खेती होती है। तीन महीने पहले दुर्गापूजा , दीवाली और छठ जैसे मुख्य पर्व के लिए लगाए गए थे जो अब लगभग समाप्त हो गए हैं। अब यहां से सरस्वती पूजा के लिए नए पौधे रोप जा रहे हैं। बाकि के सालों भर सजावट और फूल के दुकानदार इन फूलों को खरीदते हैं।
खेती करने में मेहनत बहुत है और फिर मुनाफा भी मिलता है
गेंदा फूल की खेती करने वाली महिला किसान सविता मजुमदार बताती हैं, “इस खेती में मेहनत बहुत लगती है। दिन रात एक करके इसे तैयार किया जाता है। एक बार की खेती में 25 से तीस हज़ार रुपए की लागत लगती है। फूल पूरी तरह से आने के बाद 50 से 60 हज़ार रुपए तक का मुनाफा भी है।”
10 साल पहले बंगाल से आया था इसका कांसेप्ट
पिछले 10 साल से इस खेती को कर रहे दुर्योधन मजुमदार की माने तो 10 साल पहले बंगाल से इसके बीच लाकर थोड़ी सी जगह में इसकी खेती हुई थी। जब पैदावार अच्छा हुआ और मुनाफा दिखा तो फिर सिरे से खेती शुरू की गई। और अब गाँव के किसान इसी खेती में अपना रोज़गार बना लेते हैं।
गेंदा की खेती से मिला है इन्हें रोज़गार, चलता है घर
इस गेंदा की खेती से गाँव के मजदूर वर्ग को भी रोज़गार मिला है। फूल की माला बनाने का काम करने वाली ममता देवी बताती हैं, “मेरे परिवार के सभी लोग इसमें काम करते हैं, पति पत्नी माला गुथकर अपना घर चलाते हैं तो बच्चे भी खाली समय में साथ देने बैठ जाते हैं।”
सरकार की तरफ से कुछ भी नहीं मिलता
गाँव के किसानों की माने तो इन लोगों को सरकार की तरफ से कुछ नहीं मिलता है। अगर सरकार की नज़र इसपर जाए तो ये लोग और भी बेहतर पैदावार कर गाँव वालों के लिए भी रोज़गार का साधन बना सकते हैं। बीते बाढ़ में इनके खेतों में पानी आ गया था, जिससे इनको काफी नुकसान हुआ है। सरकार की तरफ से कर्मचारी आये और देखकर चले गए मगर अबतक इन्हें कोई मुआवजा नहीं मिल पाया है।”