मध्य और उत्तर भारत के वनों में एक वृक्ष बड़ी प्रचुरता से देखा जा सकता है जिसे लोग महुआ के नाम से जानते हैं। महुआ एक विशालकाय वृक्ष होता है जिस पर मोहक सी सुगंध लिए हुए सफेद फूल लगते हैं। स्थानीय वनवासी और ग्रामीण जन इन फूलों को सुखाकर अनेक तरह से इस्तेमाल करते हैं। इसके फूलों को चौपायों के लिए एक पोषक आहार माना जाता है।
महुए के सूखे हुए फूलों को चपाती बना कर भी खाया जाता है। हर्बल जानकारों के अनुसार इसके सूखे फूल पोषक तत्वों की भरमार लिए होते हैं और इनके सेवन से पेट के तमाम विकार दूर हो जाते हैं। महुआ के हर अंग का अपना एक अनोखा औषधीय महत्व है।
महुए की छाल में टैनिन नामक रसायन प्रचुरता से पाया जाता है जोकि घाव को सुखाने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इस ताजी हरी टहनियों को बाकायदा दातुन की तरह इस्तेमाल में लाया जाता है जोकि दंत रोगों में काफी कारगर साबित होती है। इसकी पत्तियों में भी घाव और त्वचा जनित रोगों को ठीक करने के गुण पाए जाते हैं।
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महुए के ताजे फूलों को किण्वित कर पारंपरिक ‘गपई’ का निर्माण किया जाता है। गाँव देहातों में महुए के फलों को एकत्र करते समय युवाओं द्वारा एक बात कही जाती है ‘प्यार नोहब्बत धोखा है, महुआ बीनो मौका है’।
महुए के फूलों की सुगंध बड़ी मोहक सी होती है। इसके फलों से प्राप्त बीजों का इस्तेमाल एक विशेष तरह के तेल को बनाने के लिए किया जाता है जिसे ‘गुल्ली का तेल’ कहा जाता है। गुल्ली का तेल ग्रामीण इलाकों में अलग-अलग तरह से इस्तेमाल में लाया जाता है। बैलगाड़ी के पहियों के जोड़ों के बीच सुगमता बनाए रखने के लिए इस तेल का इस्तेमाल किया जाता है।
हर्बल जानकार इस तेल को त्वचा जनित रोगों के लिए खासतौर से इस्तेमाल करते हैं। जिन्हें हर्पिस या अर्टिकरिया की शिकायत हो उन्हें शरीर पर गुल्ली के तेल को लगाना चाहिए। निरंतर गुल्ली का तेल शरीर पर लगाए रखने से त्वचा के रोगों और तमाम तरह के इन्फ्लेमेशन में राहत मिलती है।
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