चंडीगढ़। “एक दिन मैं गन्ने में पानी लगाने की तैयारी कर रहा था, तभी मोबाइल में संदेश (मैसेज) आया कि दो दिन बाद हरदोई में बारिश हो सकती है। तो मैंने इंजन (पंपिंग सेट) से सिंचाई नहीं की। अगर इंजन से पानी लगाता तो कम से कम 1000 रुपए का डीजल लगता। वो पैसे बच गए।”
यूपी में हरदोई जिले में जमुई गांव के किसान यदुनाथ, मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी मिनले पर होने वाले फायदे गिनाते हैं। यदुनाथ ये भी बताते हैं, अगर पहले मालूम हो जाता है कि हवा चलने वाली है, बूंदाबांदी होने वाली है या फिर तेज बारिश होने वाली है तो उसी के अनुरूप खेती के काम निपटा लेते हैं। इससे कई बार नुकसान से बच जाते हैं।
यदुनाथ को ये मैसेज को विशेष प्रोजेक्ट के तहत ग्रीन अलर्ट मोबाइल सेवा के जरिए किसान संचार चंडीगढ़ से भेजे जाते हैं। किसानों के जीवन में सुधार, प्राकृतिक संसाधन, संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए किसान संचार को विन्गीफाई फाउडेशन आर्थिक सहयोग कर रहा है।
किसानों के मोबाइल पर मौसम की जानकारी भेजे जाने की इस सर्विस को साल 2017-18 में उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र के कुछ जिलों में सीएसआर प्रोजेक्ट के तहत शुरु किया गया था।
किसान संचार संस्था किसान को मौसम संबंधी जानकारी देने, उनके उद्यम को बढ़ावा देने और किसानों की बेहतरी के लिए काम करती है। संस्था द्वारा यदुनाथ जैसे हजारों किसानों को हफ्ते में दो बार मौसम के पूर्वानुमान संबंधी सूचनाएं भेजी जाती हैं। संस्था के मुताबिक मौसम की सही जानकारी होने से यूपी के दो जिलों में किसानों 800 से 1000 रुपए तक साल में बचे हैं।
मौसम के पूर्वानुमान की जानकारी कैसे-कैसे किसानों को लाभ दे रही है, इस बारे में किसान संचार के निदेशक कमलजीत कहते हैं, खेती का सीधा संबंध मौसम से है। अगर किसानों को मौसम का पूर्वानुमान मिल जाए तो किसान खेती के कार्यों को सही समय पर करके अतिवृष्टि, सूखा के नुकसान से बच सकता है। किसान का समय, पैसा और खेत का सही सदुपयोग होगा तो वो ज्यादा पैसा कमा सकता है।
विन्गीफाई फाउंडेशन के अध्यक्ष अनिल चोपड़ा बताते हैं, इस प्रोजेक्ट को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कृषि अनुसंधान में कार्य करनी वाली संस्थाएं सिम्मेट अंतर्राष्ट्रीय मक्का एवं गेहूं सुधार संस्थान और कैबी सेंटर फॉर एग्रीकल्चर एंड बायोसाइंस इंटरनेशनल भी सहयोग कर रही हैं। गांवों में लाइब्रेरी का नेटवर्क बनाने वाली संस्था रीड इंडिया भी इस प्रोजेक्ट में सहभागी के तौर पर जुडी है।”
कमलजीत उदाहरण देते हैं, अगर कोई किसान गन्ने या धान के एक खेत में सिंचाई करता है और उसके तुरंत बाद बारिश हो जाए तो किसान का डीजल या बिजली का पैसा तो गया ही खेत में पानी ज्यादा होने से फसल भी चौपट हो सकती है। लेकिन अगर पता है कि बारिश होने वाली है तो वो सिंचाई करेगा ही नहीं। इसी लिए हम लोग भारतीय मौसम विभाग के साथ मिलकर किसानों तक मौसम का पूर्वानुमान पहुंचाते हैं।
चौधरी चरण सिंह कृषि विश्वविद्याल हरियाणा से पढ़ाई करने वाले कमल जीत ने किसान संचार की स्थापना 2012 में की। हरियाणा-पंजाब में दर्जन भर से ज्यादा किसान उत्पादक कंपनियों (ऍफ़ पी सी) की स्थापना में सहयोग करने वाले कमलजीत किसानों को देसी तरीकों से खेती और कृषि से जुड़े रोजगार करने लिए प्रेरित करते हैं। प्राकृतिक आपदाओं आंधी, बारिश से किसानों के नुकसान को देखते हुए उन्होंने कृषि वैज्ञानिकों के साथ मिलकर किसान संचार की शुरुआत की।
किसान संचार एडमिन निशा कौशिक ने बताया, हमने भारतीय मौसम विज्ञान विभाग, देश की कई कृषि विश्वविद्यालयों आदि के साथ एम्ओयू किए हैं। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के जरिए जो जानकारी मिलती है हमारी टीम उसे सरल करके टेक्टस (लिखित) मैसेज और आडियो के जरिए संदेश भेजते हैं। किसान संचार किसानों की जानकारियों के माध्यम से मदद करने की कोशिश करता है। मौसम की जानकारी तो हम देते ही हैं। कई बार किसान फसल में रोग, उपज आदि के बारे में सवाल करता है, हम संबंधित जानकारों से पूछकर उनको जवाब देते हैं।
किसान संचार किसानों से इन जानकारियों के बदले कोई पैसा नहीं लेता, लेकिन किसान और किसान संचार के बीच अक्सर कोई सहकारी संस्था, फाउंडेशन, चीनी मिल, किसान प्राड़्यूसर कंपनी, कृषि विश्वविधालय या कृषि विभाग आदि होते हैं। किसान संचार के मुताबिक वे पिछले 7 वर्षों में लगभग साढ़े ग्यारह लाख किसानों को 18 भाषाओं में सेवाएं उपलब्ध करवा चुके हैं।
किसान संचार भारत में मौसम विभाग, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (आईसीएआर), 10 कृषि विश्वविद्यालयों और कई अन्तर्राष्ट्रीय स्तर की कृषि अनुसन्धान संस्थाओं के साथ काम मिलकर कार्य कर रहे हैं।
सर्वे में किसानों ने बताया कैसे-कैसे हुआ जानकारी का लाभ
गन्ना भारत की प्रमुख नगदी फसलों में से एक है। किसान संचार ने यूपी के दो जिलों लखीमपुर और हरदोई में गन्ना किसानों के बीच सर्वे किया। जो वो किसान थे जिन्हें मौसम, खाद,सिंचाई, फसल प्रबंधन, समय प्रबंधन आदि की जानकारी हफ्ते में दो बार (मंगलवार को वाणी संदेश (आडियो) और शुक्रवार को लिखित मैसेज) दी गई थीं।
किसान संचार एडमिन निशा कौशिक ने बताया, “अप्रैल 2017 से मार्च 2018 तक हमने 7149 किसानों को हफ्ते में दो बार सूचनाएं दीं। इन सभी मैसेज का विश्लेषण टेलीकाम सिस्टम के डाटा और 464 किसानों के बीच सर्वे किया गया। इससे हमे पता चला कि पूर्वानुमान की जानकारी, नियोजित सिंचाई करने से कम से कम एक पानी की बचत हुई, जिससे किसानों को कम से कम 72 से 1068 रुपए की बचत हुई। किसानों को ये फायदा, बुवाई, खाद देने, सिंचाई, मिट्टी चढ़ाने और गन्ना बांधने से हुआ था।” आर्थिक लाभ में दिख रही यह भिन्नता किसानों द्वारा अपनाए गये सिंचाई के साधनों के फलस्वरूप है
मौसम के पूर्वानुमान को हर किसान तक पहुंचाने की जरुरत पर जोर देते हुए कमलजीत कहते हैं, भारत में ज्यादातर खेती भूमिगत जल से होती है। ये प्राकतिक संसाधन बहुमूल्य है। हमें इसका बहुत ही संतुलित और नियोजित इस्तेमाल करने की जरुरत है।
गन्ने में अगर किसान एक सिंचाई की बचत करता है तो प्रति एकड़ करीब 1.02 लाख लीटर पानी की बचत होती है। यानि मौसम की जानकारी हासिल अगर किसान भूमिगत जल से सिंचाई नहीं करता है तो प्रति एकड़ ही इतना पानी बचाया जा सकता है। रिपोर्ट में गांवों में बढ़ते मोबाइल फोन नेटवर्क को देखते हुए कृषि जानकारियों को और सुगमता से किसानों तक पहुंचाए जाने की वकालत की गई है।