‘जब पहली बार नक्सलियों से मेरा सामना हुआ’

हम अपने घरों में सुरक्षित रहते हैं, इसके पीछे हज़ारों की संख्या में सरहद पर तैनात सैनिकों का योगदान होता है। देश के अलग-अलग हिस्सों में सैनिकों की अलग-अलग बटालियन तैनात है। उनकी ज़िदंगी के हर दिन की अपनी अलग कहानी होती है। ऐसा ही एक किस्सा साझा कर हैं सीआरपीएफ के कोबरा बटालियन में नियुक्त सब इंस्पेक्टर महेंद्र सिंह चौहान।
#CRPF

ये किस्सा उन दिनों का है जब 205 बटालियन कोबरा में नियुक्त था, वो 8 फरवरी 2016 की बात है, जब मैं पहली बार नक्सलियों सें रुबरू हुआ।

हमारा ऑपरेशन दोपहर 2 बजे से स्टार्ट होना था, जैसा कोबरा का है कि अंधेरे में ही मार्च करना है। सुबह से पहले हमें उस जगह पर पहुँच जाना होता है, अगर हम पहुँच गए तो ऑपरेशन में मदद हो जाती है।

2 बजे हमने निकलना शुरू किया, घना अंधेरा था, एक नहर के किनारे हम चल रहे थे, जहाँ बहुत ज़्यादा झाड़ियाँ थीं। हम ऐसी जगह से इसलिए मार्च करते हैं क्योंकि अगर किसी गाँव के पास से गुजरेंगे तो कुत्ते भौंकने लगेंगे, जिससे वो सतर्क हो जाते हैं।

इसलिए हम गाँव से दूर नहर के किनारे चल रहे थे, चाँदनी रात थी, हल्की हल्की रोशनी थी। मुझे अच्छी तरह से याद है उस दिन नहर के किनारे चलते हुए छह-सात बार गिरे होंगे। क्योंकि उबड़ खाबड़ रास्ता था, कहीं चढ़ाई तो कहीं पर एकदम से ढलान।

उतरने के चक्कर में शॉर्टकट मारने के चक्कर में कई बार फिसले गिरे हँसी भी आती थी, जब आदमी गिरता हैं तो चार हँसने लगते हैं लेकिन कोबरा में हँसने का भी अलग तरीका है, मुँह फाड़कर के नहीं हँसते हैं। बस अगर हँसी आयी भी तो हाथ हिलाकर इशारा करना है, इसका मतलब हैं हम लोग हँस लिए।

उस समय हमारे साथ एक नक्सली भी था, जो हमें रास्ता बताते हुए चल रहा था। एक बाँध पर नक्सली आया करते थे, हमें वहाँ तक पहुँचना था।

सुबह के चार-पाँच बजे हम वहाँ पहुँच गए, अब उजाला होने लगा था, वहाँ सर्च करने पर जब देख लिया गया कि वो जगह पूरी तरह से सुरक्षित है। तो ये हुआ कि हम थोड़ा रुककर नाश्ता वगैरह कर लेते हैं, उसके बाद आगे बढ़ेंगे।

हमने वहाँ पर नाश्ता किया, थोड़ा आराम कर रहे थे, तभी पता चला कि जहाँ पर हमें नक्सली मिल सकते हैं, वहाँ से धुआँ उठ रहा है। जल्दी-जल्दी सब सतर्क हो गए और हम धीरे-धीरे बढ़ने लगे, एक टीम दाएँ और दूसरी बाएँ चल रही थी।

अभी हम वहाँ से लगभग 50 मीटर दूर पहुँचे थे, तभी उधर फायरिंग हुई, अब और ज़्यादा चौकन्ने हो गए, हमारे साथ के एक हवलदार मेजर के कंधे पर गोली लगी।

हमारी टीम ने भी फायर करना शुरू कर दिया, बस लग रहा था कि कहीं हमारी टीम को न गोली लग जाए।

और हमारे जवान इतने बहादुर की कुछ कह नहीं सकते, मतलब कोई भी लड़का नहीं था, जिसके अंदर कोई डर रहा हो। सभी लगातार फायरिंग कर रहे थे, दोनों तरफ से गोलियाँ चल रहीं थीं, जब कुछ शांति हुई तो सर्च किया तो पता चला कि एक मेजर को गोली लगी है और चार नक्सली घायल हुए हैं।

हमने उनकी तलाशी ली तो उनके पास से कई हथियार बरामद हुए, उनके पास से और भी काफी कुछ मिला।

उस ऑपरेशन के बाद मुझे अनुभव हुआ कि मेरे अंदर से डर निकल गया, उसके बाद तो मैं अकेले भी निकल सकता था। उस ऑपरेशन के दौरान हमारे दो लोगों को शौर्य चक्र मिला था हम दो लोगों को पहली बार कोबरा में शौर्य चक्र मिला था।

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