सीतापुर (उत्तर प्रदेश)। इस संस्कृत विद्यालय में आज भी गुरुकुल की परंपरा चली आ रही है, दस वर्ष की उम्र में बच्चा आता है और पूरी पढ़ायी करके ही घर वापस जाता है। यही नहीं इस विद्यालय में पड़ोसी देश नेपाल से भी बच्चे पढ़ने आते हैं।
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 90 किलोमीटर दूर पर स्थित 88 हजार ऋषि मुनियों की तपोभूमि नैमिषारण्य स्थित अनन्त श्री वसुदेव संस्कृत महाविद्यालय में बच्चों को वैदिक शिक्षा दी जाती है। महाविद्यालय के आचार्य राम जी प्रसाद मिश्र बताते हैं, “वैदिक शिक्षा का ग्राफ दिन पर दिन बढ़ता चला जा रहा है। आज के इस आधुनिक युग मे हमारे गुरुकुल में अध्ययनरत छात्र भारत ही नही विदेशों में संस्कृत भाषा का ज्ञान दे रहे हैं। जैसे कि भारत सरकार की एक रिपोर्ट के अनुसार संस्कृति भाषा की पढ़ाई 144 देशों में हो रही है।”
वो आगे कहते हैं, “प्राचीन समय से भारत मे चली आ रही वैदिक शिक्षा दिन पर दिन बढ़ती चली जा रही है। आज के इस आधुनिक युग के युवा इंग्लिश मीडियम शिक्षा से अलग हटकर के वैदिक शिक्षा की ओर ज़्यादा आकर्षित हो रहे हैं। गुरुकुल में रह कर के विद्या अर्जित करना इसके बाद में पूरे विश्व मे संस्कृति भाषा ज्ञान दे रहे है। इस वैदिक पद्धति की शिक्षा को ग्रहण करने के लिए देश विदेश से युवा पीढ़ी आती है।”
ऋषि परम्परा विधि से ग्रहण कराई जाती है शिक्षा
गुरुकुल में पढ़ने वाले छात्रों को धोती कुर्ता व अचरा लुंगी धारण कर के विद्या अर्जित कराई जाती है। प्रातः काल उठ के स्नानः करके सभी छात्र उपासना करते हैं, उसके बाद दिनचर्या शुरू होती है। गुरुकुल में अध्यरन्त छात्र देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व मे संस्कृति भाषा का प्रचार प्रसार करते हैं।
नेपाल से भी आते हैं संस्कृत भाषा का अध्यन करने छात्र
आचार्य राम जी बताते हैं, “वैदिक पद्धति की पढ़ाई पढ़ने के लिए भारत के अनेकों राज्यो के साथ पड़ोसी देश नेपाल के पालपा, धनगढ़ी ,बैतड़ी आदि जगहों से भी हमारे गुरुकुल में शिक्षा ग्रहण करने छात्र आते हैं। नासा के वैज्ञानिक तक अब संस्कृति भाषा का ज्ञान ले रहे हैं। जब कही पे भी हमारे छात्र संस्कृत भाषा मे कही पर जब स्वाति वचन बोलते हैं तो वहां का माहौल एक भक्तिमय हो जाता है, ऐसा प्रतीत होता है, कि जैसे शरीर मे एक नई ऊर्जा प्रवाहित होने लगी हो।”
बाल्यावस्था से शुरू होती है वैदिक पद्धति की पढ़ाई
वैदिक पद्धति की शिक्षा ग्रहण करने के लिए छात्रों को बाल्यावस्था महज 10 वर्ष की आयु से बच्चों को गुरुकुल में प्रवेश लिया जाता है, धीरे धीरे इन बच्चों को वैदिक, शास्त्रार्थ, ज्योतिष विद्या, आदि में निपुर्ण बनाया जाता है।