मिर्जापुर, उत्तर प्रदेश। गर्भवती निधि सिंह की यह पहली डिलीवरी है। खबरों से दूर, वह काफी खुश हैं और सप्ताह के भीतर अपने बच्चे को जन्म देने की आस लगाए बैठी हैं।
लेकिन उत्तर प्रदेश के मिर्ज़ापुर जिले के घरवासपुर गाँव में उनके घर पर खुशी की कोई आहट नहीं सुनाई दे रही है। इसके बजाय वहाँ एक अनकहा तनाव पसरा हुआ है।
उनके पति 27 साल के अखिलेश सिंह उन 41 मजदूरों में से एक हैं, जो लगभग 1,200 किलोमीटर दूर उत्तराखँड के उत्तरकाशी में एक सुरँग के अंदर फँसे हुए हैं। 12 नवंबर को दिवाली की सुबह एक निर्माणाधीन सुरँग ढह गई और वहाँ फँसे श्रमिकों के लिए यह दर्दनाक अनुभव का 12वां दिन है। बचाव अभियान जारी है।
चिंता में डूबे अखिलेश के चचेरे भाई कृष्ण कुमार सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “अखिलेश के सुरँग में फँसे होने की खबर निधि को नहीं दी गई है; हमें डर है कि इससे उसे सदमा लग सकता है, ऐसा करना माँ और बच्चे की सेहत के लिए सही नहीं है।”
असहाय चचेरे भाई ने कहा, “हम मजदूरों के जल्द से जल्द सुरक्षित बाहर आने की प्रार्थना कर रहे हैं; उसकी पत्नी से इस ख़बर को छिपाने के लिए हम अपराधी महसूस कर रहे हैं लेकिन हमें इंतजार करना होगा।”
अखिलेश सिंह हैदराबाद स्थित नवयुग इँजीनियरिंग कँपनी लिमिटेड में सुपरवाइजर के रूप में काम कर रहे हैं। इसी कंपनी ने सुरँग के निर्माण के लिए मजदूरों को काम पर रखा था। परिवार के सदस्यों ने बताया कि उन्हें हर महीने 20,000 रुपये वेतन मिलता है।
अखिलेश के पिता रमेश सिंह ने कहा, ”हमें इँटरनेट पर ख़बर मिली कि सुरँग में फँसे मजदूरों में अखिलेश भी शामिल है।”
उन्होंने कहा, “इस ख़बर ने हमारी दिवाली खराब कर दी; लेकिन हमने अपनी बहू के चेहरे पर दुख की लकीरें नहीं पड़ने दीं। हम चाहते हैं कि वह हमेशा की तरह खुश दिखे और उसे इस हालत में कोई सदमा महसूस न हो।”
अखिलेश के परिवार के कुछ लोग पहले ही उत्तरकाशी में घटनास्थल पर पहुँच चुके हैं और सुरँग के मुहाने के बाहर साँस रोककर इंतजार कर रहे हैं। अखिलेश के छोटे भाई प्रितपाल सिंह और उनके चाचा उनसे मिलने के लिए सुरँग के बाहर ही खड़े हैं।
अखिलेश की माँ अँजू देवी अपने बेटे के सुरँग के अंदर फँसे होने की ख़बर मिलने के बाद से कई रातों से सो नहीं पाई थीं। लेकिन अब, जब से उन्होंने अपने बेटे को सुरँग के अंदर ठीक ढंग से रहते हुए देखा है, तब से थोड़ा आश्वस्त हो गई हैं।
अखिलेश की माँ ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मेरे भाई ने कल अखिलेश को उस समय स्क्रीन पर देखा जब उन्होंने कैमरा अंदर भेजा था। उन्होंने मेरे बेटे से कहा कि वह उसके मामा हैं और उसे एक बहादुर शेर की तरह इस चुनौती का सामना करना होगा। अखिलेश ने भी जवाब दिया कि वह शेर की तरह लड़ेंगे और जल्द ही बाहर आएंगे।”
कल बचाव दल ने सुरँग के अंदर एक एँडोस्कोपी कैमरा भेजा, जिससे बचावकर्मियों के साथ-साथ फँसे हुए मजदूरों के परिवार वालों के चेहरे भी खिल उठे थे। स्क्रीन पर नज़र आने वाले चेहरों को देखकर, इस बात का अंदाजा लगाया गया है कि सभी मज़दूर ठीक हालत में हैं और उन्हें भोजन और दवाओं सहित सभी जरूरी समान पहुँचाया जा रहा है।
गाँव कनेक्शन की पहले प्रकाशित हुई एक रिपोर्ट में ‘राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण’ के सदस्य सैयद अता हसनैन ने कहा था कि सुरँग के अंदर पर्याप्त पानी और ऑक्सीजन है; और वहाँ फँसे लोगों के लिए घूमने की काफी जगह मौजूद है। यह खबर चिंतित परिवार के सदस्यों के लिए एक राहत के रूप में आई थी। इनमें से कुछ तो सुरँग के बाहर इंतजार कर रहे हैं।
भारतीय सेना से रिटायर्ड और भारतीय रेलवे के मुख्य चिकित्सा निदेशक के रूप में कार्य कर चुके गुरुग्राम स्थित डाक्टर सतीश गादी ने बताया कि अगर बुनियादी पोषण संबंधी जरूरतों को पूरा किया जा रहा है, तो उनके जीवित रहने की संभावना ‘बहुत अधिक’ है।
सीनियर डॉक्टर ने कहा कि इन मजदूरों के बचाव के बाद, इस बात का खास ध्यान रखा जाना चाहिए कि उन्हें जल्द से जल्द उनके परिवारों से मिलाया जाए।
गादी ने कहा, “एक बार जब इन मजदूरों की पूरी तरह से चिकित्सा जाँच हो जाएगी और उन्हें फिट पाया जाएगा, तो उन्हें अपने घरवालों से मिलने की सख्त जरूरत होगी।”
उन्होंने कहा, “कोई भी थैरेपी या परामर्श उन्हें उतना शाँत नहीं कर सकता जितना कि वह अपने परिवार वालों के बीच रह कर कर पाएंगे। उन्हें उनके परिवार के साथ रहने की जरूरत होगी। साथ ही, मेरी राय में उनके परिवार वाले भी उनकी अनिश्चित स्थिति के कारण बड़े आघात से गुजर रहे हैं।”
उधर अखिलेश के 53 साल के चाचा ओम प्रकाश सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया कि परिवार को उनकी वापसी की उम्मीद है।
उन्होंने कहा, “एक बार जब हमने कैमरे में उन्हें देखा, तो हम निश्चिंत हो गए कि सरकार और बचाव दल मजदूरों को बाहर निकालने की पूरी कोशिश कर रहे हैं; मुझे उम्मीद है कि मैं जल्द ही अखिलेश से मिलूँगा।”
उत्तरकाशी में सुरँग का निर्माण राष्ट्रीय राजमार्ग और बुनियादी ढाँचा विकास निगम लिमिटेड द्वारा किया जा रहा है।
सुरँग का प्राथमिक मकसद तीर्थयात्रा के मौसम के दौरान यात्रा की सुविधा के लिए उत्तराखँड में यमुनोत्री और गँगोत्री घाटी को जोड़ना है। रेडी पास के नीचे से गुजरने वाली सुरँग के एक बार बनने के बाद, यह 25.6 किलोमीटर लंबी सड़क यात्रा को 4.5 किलोमीटर तक कम कर देगी।
फँसे हुए मजदूरों की लोकेशन सुरँग के मुहाने से करीब 200 मीटर की दूरी पर है। सुरँग से मजदूरों को बचाने की योजना में, उन्हें सुरक्षित बाहर निकालने के लिए सुरँग के अंदर एक छोटा लेकिन स्थिर हॉरिजॉन्टल या वर्टिकल रास्ता ड्रिल करना शामिल है।
12 नवंबर को भूस्खलन के कारण सुरंग का एक हिस्सा ढह गया था और मलबे के कारण सुरंग के अंदर जाने का रास्ता बँद हो गया। इसकी वजह से अंदर काम कर रहे मज़दूर वहीं फँसे रह गए थे। चारधाम परियोजना के हिस्से के रूप में ब्रह्मकाल-यमुनोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग पर सिल्क्यारा और डँडालगाँव के बीच 4.5 किलोमीटर लंबी सुरंग का निर्माण किया जा रहा था।
बचाव अभियान जारी है और हालिया समाचार रिपोर्टों के मुताबिक, बचाव दल सुरंग में 39 मीटर तक ड्रिल कर चुके हैं।