छतरपुर (मध्य प्रदेश)/मिर्जापुर (उत्तर प्रदेश)
पिछले साल 2 अगस्त को जब प्रीति पांडे अपने बेटे के साथ नाश्ता करने के बाद काम पर निकलीं थीं, तो उन्हें क्या पता था कि यह उनकी जिंदगी का सबसे काला दिन होने वाला है।
“वो मेरे साथ दरवाजे तक आया, और मुझे ‘बॉय’ कहा। उसके व्यवहार में ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे मुझे लगा हो कि वह परेशान था, “मध्य प्रदेश के छतरपुर में रहने वाली प्रीति ने गाँव कनेक्शन को बताया।
उस दिन, उसके 12 साल के इसी बेटे ने आत्महत्या कर ली थी।
मृतक बच्चे के पिता विवेक पाण्डेय ने बताया कि उनका बेटा फोन पर ‘फ्री फायर’ नामक एक ऑनलाइन शूटिंग गेम खेला करता था। इस खेल में पैसों की जरूरत पड़ती है। विवेक ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मुझे पता चला कि उसने अपनी मां के बैंक खाते से एक गेम के लिए ऑनलाइन सट्टेबाजी के लेनदेन के लिए 40,000 रुपये खर्च कर दिए थे।”
अपने बेटे की मौत के बाद एफआईआर दर्ज कराने के लिए संघर्ष करने वाले विवेक ने कहा, “मैं चाहता हूं कि इस तरह के ऑनलाइन खेलों पर पूरी तरह से पाबंदी लग जाए।” वह आगे कहते हैं, “अपने बेटे की मौत के बाद ही मैं जान पाया कि सरकार के पास डिजिटल जुए को नियंत्रित करने के लिए कोई तंत्र नहीं है। यहां तक कि एफआईआर दर्ज करना भी आसान नहीं था। मुझे ऐसा करने के लिए बहुत सारे प्रभावशाली लोगों का समर्थन जुटाना पड़ा था।”
छतरपुर जिले के मुख्य पुलिस अधीक्षक लोकेंद्र सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया कि फ्री फायर गेमिंग एप के मैनेजर के खिलाफ आत्महत्या के लिए उकसाने के आरोप में प्राथमिकी दर्ज की गई है। पिता ने शिकायत करते हुए बताया कि एफआईआर दर्ज होने के एक साल से अधिक समय बीत जाने के बाद भी मामले आगे नहीं बढ़ा है।
भारत में लगभग 42 करोड़ सक्रिय ऑनलाइन गेमर्स हैं और भारतीय ऑनलाइन गेमिंग क्षेत्र सालाना लगभग 30 फीसदी की दर से बढ़ रहा है। उम्मीद है कि यह इंडस्ट्री 2025 तक पांच बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।
गैंबलिंग यानी जुआ भारत में गैर-कानूनी है लेकिन दांव लगाने (पैसे) के लिए ऑनलाइन गेमिंग एक ग्रे एरिया बना हुआ है। बच्चों के परिवारों की शिकायत है कि फ्री फायर, रम्मी, रूलेट, ब्लैक जैक और इंडियन फ्लैश जैसे इंटरनेट जुआ और ऑनलाइन गेमिंग ने लाखों बच्चों को फंसाया हुआ है।
जैसे-जैसे इंटरनेट और स्मार्टफोन ने भारत के गाँवों में गहराई से पैठ बनानी शुरू की हैं, बड़ी संख्या में ग्रामीण युवा इन वर्चुअल खेलों के शिकार हो रहे हैं जिनकी रोकथाम के नियम कायदे यानी रेग्युलेशन लगभग जीरो है।
“ग्रामीण इलाकों में इंटरनेट की पहुंच है लेकिन ऑनलाइन गेमिंग और जुए के संभावित जोखिमों के बारे में ग्रामीण निवासियों में बिल्कुल भी जागरूकता नहीं है। ऐसे ऑनलाइन गेम के लिए अनजान ग्रामीण आसानी से निशाना बनते हैं। विशेष रूप से युवा लोगों के बीच जुए का सामाजिक प्रभाव चिंताजनक है, “उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर से विधान सभा के पूर्व सदस्य ललितेश पति तृप्ति ने गाँव कनेक्शन को बताया।
उदाहरण के तौर पर इस साल जुलाई में ओडिशा के केंद्रपाड़ा के मानपुर गाँव के एक 22 साल के युवक ने ऑनलाइन गेमिंग में पैसे गंवाने के बाद खुद की जान ले ली। दो महीने बाद सितंबर में, गुजरात के वापी के एक 21 साल के इंजीनियरिंग छात्र ने ऑनलाइन जुए में पैसे हारने के बाद खुद की जान ले ली।
चौंकाने वाली बात यह है कि इसी साल जनवरी में मध्य प्रदेश के भोपाल में एक 11 साल के बच्चे ने ऑनलाइन गेमिंग में पैसे गंवाने के बाद आत्महत्या कर ली।
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला अस्पताल की क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट पूजा सिंह ने गाँव कनेक्शन को बताया, “बच्चों को ऑनलाइन गेमिंग और जुए की लत लगने के मामले काफी तेजी से बढ़े हैं। ऑनलाइन जुए की लत एक कंप्लसिव डिसऑर्डर है, जिसमें बार-बार पैसे गंवाने के बाद भी मरीज उसी ओर भागता है।”
ऑनलाइन गैंबलिंग और ऑनलाइन गेमिंग (पैसे लगाकर खेलने वाले) के बीच कोई स्पष्ट कानूनी अंतर नहीं है। ऑनलाइन गेमिंग प्रमोटर इसे मनोरंजन बताते हैं. वह इसे जुआ नहीं मानते हैं, क्योंकि यह ‘स्किल ऑफ गेम्स’ के अंतर्गत आता है।
लेकिन जिन लोगों ने खेल-खेल में काफी पैसों का नुकसान कर दिया, उन्हें इससे बच निकलने का एकमात्र सहारा आत्महत्या नजर आता है। यह भयावह स्थिति है।
ऑनलाइन गेमिंग की लत लगना कोई लंबा प्रोसेस नहीं है। यानी इसकी लत लगने में ज्यादा समय नहीं लगता है और यह काफी तेजी से बढ़ती है। जैसा कि मध्य प्रदेश के विदिशा के पवन अहिरवाल के भाई के साथ हुआ। उनके छोटे भाई 20 साल के अमन अहिरवाल को ऑनलाइन जुआ खेलते हुए सिर्फ एक सप्ताह ही हुआ था, लेकिन जुआ खेलने की ऐसी लत लगी कि खेलने के लिए लोगों से पैसे तक उधार ले लिए। हारने के बाद जब और कोई रास्ता नजर नहीं आया तो उसने अपनी जान ले ली। अमन ने इस साल 4 सितंबर को आत्महत्या कर ली थी।
पवन अहिरवाल ने गाँव कनेक्शन को बताया, “उन्हें पिछले साल एक नया फोन मिला और हाल ही में उन्होंने तीन पत्ती गेम ऑनलाइन खेलना शुरू किया था। उसने रिश्तेदारों और दोस्तों से लगभग 50,000 रुपये उधार लिए थे. वह जुए में करीब 40 हजार रुपए हार गया। इस खेल को खेलने के लगभग एक हफ्ते के बाद उसने खुद को मार डाला।”
आहत माता-पिता और परिवार के सदस्यों के पास कोई रास्ता नहीं है। वे नहीं जानते कि न्याय कैसे मांगा जाए या इन्हें कैसे बंद कराया जाए, क्योंकि इन डिजिटल प्लेटफॉर्म को नियंत्रित करने या निगरानी करने के लिए कोई व्यापक कानून नहीं बना है।
अरबों डॉलर की इंडस्ट्री लेकिन कोई रेगुलेशन नहीं
भारत में सौ साल से भी पुराने पब्लिक गैंबलिंग एक्ट 1867, में “पब्लिक गैंबलिंग” पर रोक लगाने के लिए कड़ी सजा का प्रावधान है। लेकिन अधिकांश ऑनलाइन गेमिंग पोर्टल जिनमें सट्टेबाजी या गैंबलिंग शामिल है, वो अपने इस प्रोडेक्ट को ‘चांस’ की बजाय ‘गेम ऑफ स्किल’ के तौर पर प्रमोट करते हैं।
इस ऑनलाइन गैंबलिंग बनाम गेमिंग बहस ने जीएसटी इंटेलिजेंस महानिदेशालय (डीजीजीआई) को बेंगलुरू स्थित ऑनलाइन गेमिंग कंपनी, गेम्सक्राफ्ट टेक्नोलॉजी प्राइवेट लिमिटेड (जीटीपीएल) को इनडायरेक्ट टैक्सेशन के इतिहास में 21,000 करोड़ रुपये का सबसे बड़ा कारण बताओ नोटिस जारी किया है। उधर कंपनी न भी कर्नाटक उच्च न्यायालय में नोटिस को चुनौती देते हुए एक याचिका दायर कर दी है।
ऑनलाइन गेमिंग के लिए टू-टायर रेट स्ट्रक्चर है – ‘गेम ऑफ स्किल’ के मामले में 18 प्रतिशत और ‘गेम ऑफ चांस’ के मामले में 28 प्रतिशत अधिकांश ऑनलाइन गेमिंग कंपनियां 18 प्रतिशत की दर से जीएसटी (वस्तु एवं सेवा कर) लगाती हैं। उनके मुताबिक उनका प्रोडेक्ट गेम ऑफ स्किल की कैटेगरी के अंतर्गत आता है।
हालांकि DGGI को लगता है कि ये चांस ऑफ गेम हैं, इसलिए 28 फीसदी जीएसटी लगाया जाना चाहिए। यह मामला विभिन्न रिट्स के अधीन रहा है और कानूनी विवादों में उलझा हुआ है।
देखा जाए तो 1867 का अधिनियम ऑनलाइन गैंबलिंग और पैसे लगाकर खेलने वाले गेम से निपटने में पूरी तरह से अप्रभावी है।
मिर्जापुर के एक वकील नारायणजी उपाध्याय ने गाँव कनेक्शन को बताया, “हालांकि पब्लिक गैंबलिंग एक्ट, 1867 की धारा 13 ऐसे अपराधों (ऑनलाइन गेमिंग फॉर स्टेक्स) पर लागू होती है, लेकिन यह ऑनलाइन जुआ और गेमिंग को रोकने में बहुत प्रभावी नहीं है।”
उपाध्याय की बातों से सहमत होते हुए मिर्जापुर के एक अन्य वकील मनीष त्रिपाठी ने बताया कि जुआ की जांच के लिए मौजूदा कानून (पब्लिक गैंबलिंग एक्ट, 1867) काफी पुराना है और इसमें अधिकतम 600 रुपये के दंड और एक वर्ष तक का कारावास की सजा का प्रावधान है।
त्रिपाठी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “युवाओं को ऑनलाइन जुए की लत लग रही है। इस तरह की असामाजिक प्रथाओं को रोकने के लिए हमारे पास जो कानून है, वह इस देश में मल्टी-बिलियन गेमिंग और गैंबलिंग इंडस्ट्री में सेंध लगाने के लिए काफी पुराना है।”
पिछले दिसंबर में, भारतीय जनता पार्टी के सांसद सुशील कुमार मोदी भारत में ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री को रेग्युलेट करने के लिए कानून बनाने की जरूरत जैसे विषय को चर्चा में लेकर आए थे। उन्होंने स्वीकार किया था कि ऑनलाइन गेमिंग एक ‘बड़ी लत’ के रूप में सामने आया है और इसे रेगुलेट करने की मांग की थी।
मोदी ने 3 दिसंबर,2021 को राज्यसभा में कहा था, “ऑनलाइन गेमिंग एक बड़ी लत बनती जा रही है। मैं इस बात को रेखांकित करना चाहूंगा कि क्रिप्टो इंडस्ट्री की तरह इस क्षेत्र में भी नियामक खामियां हैं। मैं सरकार से ऑनलाइन गेमिंग पर एक समान टैक्स लाने का आग्रह करूंगा। साथ ही मैं सरकार से आग्रह करता हूं कि ऑनलाइन गेमिंग के लिए नियमन का एक व्यापक ढांचा बनाया जाए।”
इस साल एक अप्रैल को कांग्रेस सांसद डीन कुरियाकोस ने ऑनलाइन गेमिंग (रेगुलेशन) बिल, 2022 पेश किया. ताकि ऑनलाइन गेमिंग इंडस्ट्री को रेगुलेट करने के लिए एक प्रभावी कानून बनाया जा सके और इससे जुड़े मामलों का पता लगाया जा सके।’
बिल में कहा गया था कि भारत में लगभग 42 करोड़ सक्रिय ऑनलाइन गेमर्स हैं और उम्मीद है कि इंडस्ट्री 2025 तक बढ़कर पांच बिलियन डॉलर तक पहुंच जाएगी।
ऑनलाइन गेमिंग के लिए नए नियमों का पता लगाने के लिए गठित एक इंटर-मिनिस्ट्रियल टास्क फोर्स ने हाल ही में इसे नियंत्रित करने के लिए केंद्रीय कानून की सिफारिश की है। कहा गया कि 1867 का पब्लिक गैंबलिंग एक्ट मौजूदा समय में इसे कवर करता है, लेकिन वह डिजिटल-बेस्ड गतिविधियां और इससे जुड़ी उभरती तकनीकों से “कवर करने /बचाव करने और निबटने” में अक्षम हैं।
इस क्षेत्र के लिए एक केंद्रीय नियामक निकाय स्थापित करने का भी प्रस्ताव है, जो साफतौर पर परिभाषित करेगा कि गेम ऑफ स्किल और गेम ऑफ चांस क्या हैं। साथ ही ये ऑनलाइन गेमिंग को प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉंड्रिंग एक्ट, 2002 के दायरे में भी लेकर आएगा।
लेकिन अभी तक ये अरबों डॉलर का उद्योग अनियंत्रित बना हुआ है और इसकी कीमत आम नागरिकों को चुकानी पड़ रही है।
ऑनलाइन गैंबलिंग बना आत्महत्या का कारण
यह सिर्फ बच्चे ही नहीं हैं, जो ऑनलाइन जुए और ऑनलाइन गेमिंग में पैसे गंवाने के बाद अपनी जान ले रहे हैं। इस मामले में युवा भी पीछे नहीं है। जब इस मसले पर Google पर सर्च किया तो ऐसी कई खबरें सामने आईं।
इस साल अक्टूबर में आंध्र प्रदेश के पूर्वी गोदावरी जिले में एक 21 वर्षीय इंजीनियरिंग छात्र ने ऑनलाइन गेमिंग में 80,000 रुपये का नुकसान उठाने के बाद आत्महत्या कर ली।
उसी महीने तेलंगाना के हनमकोंडा जिले के मलकपल्ली गाँव में एक 26 साल के युवक ने ऑनलाइन जुए के कारण कर्ज के जाल में फंसने के बाद कथित तौर पर आत्महत्या कर ली थी।
इस साल जून में, तमिलनाडु के चेन्नई में दो बच्चों की 29 वर्षीय मां की आत्महत्या करने की एक और चौंकाने वाली घटना सामने आई। उसने कथित तौर पर ऑनलाइन रमी में 10 लाख रुपये गंवा दिए थे।
तमिलनाडु में धर्मपुरी इस साल मई में तब चर्चा में आया था जब एक 20 साल के NEET उम्मीदवार ने ऑनलाइन जुए में पैसे गंवाने के बाद अपनी जान दे दी थी।
इसके अलावा, इस साल की शुरुआत में फरवरी में एक 25 साल के छात्र ने इंदौर में खुद को मार डाला क्योंकि उसने इनाम देने वाले कुछ ऑनलाइन गेम खेलने के लिए कर्ज लिया था। लेकिन वह इन खेलों में पैसा गंवाता रहा और कर्ज चुकाने में नाकाम रहा.
आत्महत्या से मौत के ये सभी मामले ऑनलाइन गेमिंग की लत और कर्ज के जाल फंसने के बाद उठाया गया कदम था। एक तेजी से बढ़ता हुआ उद्योग, जिसमें काफी लोगों के जुड़े होने के बाद भी यह अनियमित बना हुआ है।
राज्य अपने कानून खुद बनाते हैं, लेकिन…
मौजूदा समय में पूरे देश में सिर्फ 1867 में बना एक ही राष्ट्रव्यापी कानून है जो सभी तरह की जुए की गतिविधियों को नियंत्रित करता है. देश में जुआ काफी हद तक एक राज्य का विषय है. ऑनलाइन गैंबलिंग और गेमिंग की वजह से बढ़ते आत्महत्या के मामलों के मद्देनजर, कुछ राज्यों ने अपने कानून बनाए हैं।
तमिलनाडु: इस साल अक्टूबर में, तमिलनाडु विधानसभा ने ऑनलाइन जुए पर रोक लगाने और राज्य में ऑनलाइन खेलों को विनियमित करने के लिए मुख्यमंत्री एम के स्टालिन द्वारा पेश एक विधेयक पारित किया था। सरकार ने बढ़ते आत्महत्या के मामलों की जांच के लिए मद्रास उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश के चंद्रू के तहत एक समिति की स्थापना की थी। जून 2022 में कमेटी ने ऑनलाइन गेम पर बैन लगाने की सिफारिश की थी।
हालांकि, राज्यपाल की सहमति मिलने में देरी की वजह से विधेयक पास नहीं हो पाया था। तमिलनाडु ऑनलाइन प्रोहिबिशन ऑफ ऑनलाइन गैंबलिंग एंड रेगुलेशन ऑफ ऑर्डिनेंस,2022 की 3 अक्टूबर, 2022 को ऑनलाइन गैंबलिंग और पैसे लगाकर खेले जाने गेम ऑफ चांस पर रोक लगाने के लिए औपचारिक घोषणा की गई थी।
तेलंगाना: तेलंगाना राज्य ने 2017 में ऑनलाइन गैंबलिंग समेत सभी तरह के जुए पर प्रतिबंध लगा दिया था। इसने तेलंगाना गेमिंग (संशोधन) अधिनियम, 2017 को लागू किया। लेकिन समाचार रिपोर्टों की मानें तो राज्य सरकार प्रतिबंध पर पुनर्विचार करने पर विचार कर रही है क्योंकि गेमिंग इंडस्ट्री राज्य की अर्थव्यवस्था में योगदान दे सकती है और रोजगार का एक महत्वपूर्ण जरिया भी बन सकती है।
कर्नाटक: पिछले साल कर्नाटक ने कर्नाटक पुलिस अधिनियम में बदलाव किए, जो ऑनलाइन जुए से संबंधित है। “इंटरनेट, मोबाइल ऐप्स के जरिए गेमिंग के खतरे को रोकने” के लिए राज्य में ऑनलाइन जुए सहित सभी प्रकार के जुए पर प्रतिबंध लगा दिया गया था।
हालांकि, इस साल फरवरी में, कर्नाटक उच्च न्यायालय ने ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध लगाने वाले कानून को रद्द कर दिया। और फिर अगले ही महीने मार्च में राज्य सरकार ने भारत के सर्वोच्च न्यायालय का रुख किया। शीर्ष अदालत ने 16 सितंबर को कर्नाटक सरकार की याचिका पर स्किल बेस्ड गेमिंग कंपनियों और उद्योग निकायों को नोटिस जारी किया।
सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मद्रास उच्च न्यायालय के एक फैसले के खिलाफ तमिलनाडु सरकार की ओर से दायर इसी तरह के एक मामले के इसके साथ उस याचिका को क्लब कर दिया था।
इसमें स्किल-गेमिंग इंडस्ट्री बॉडी ऑल इंडिया गेमिंग फेडरेशन, स्व-नियामक फंतासी स्पोर्ट्स इंडस्ट्री ‘बॉडी फेडरेशन ऑफ इंडियन फैंटेसी स्पोर्ट्स, गेमिंग फर्म मोबाइल प्रीमियर लीग, गेम्स24×7, हेड डिजिटल वर्क्स, जंगली गेम्स और गेम्सक्राफ्ट शामिल हैं।
केरल: रमी जैसे ऑनलाइन गेम की बढ़ती लोकप्रियता को देखते हुए पिछले साल 23 फरवरी को केरल सरकार ने एक अधिसूचना जारी की थी. इसमें कहा गया था कि “ऑनलाइन रम्मी दाव लगाने के लिए खेला जाता है” को केरल गेमिंग अधिनियम, 1960 के प्रावधानों से छूट नहीं मिलेगी। यह प्रावधान स्किल बेस्ड गेमिंग को नहीं बल्कि चांस बेस्ड गेमिंग को नियंत्रित करता है।
हालांकि, 27 सितंबर, 2021 को केरल उच्च न्यायालय ने अधिसूचना को पलट दिया और कहा कि चूंकि रमी को पहले ही सर्वोच्च न्यायालय की ओर से गेम ऑफ स्किल बताया गया है. इसलिए स्वाभाविक तौर पर यह केरल गेमिंग अधिनियम, 1960 के छूट के दायरे में आएगा।
कुछ अन्य राज्यों ने भी अपने स्वयं के कानून बनाए हैं, लेकिन विशेषज्ञ इस क्षेत्र को रेगुलेट करने के लिए एक व्यापक और कड़े केंद्रीय कानून की जरूरत पर बल दे रहे हैं।
एक गंभीर लत
उत्तर प्रदेश के मिर्जापुर जिला अस्पताल में क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट पूजा सिंह ने कहा कि ऑनलाइन गैंबलिंग और गेमिंग की लत भयावह रूप धारण कर चुकी है। उन्होंने कहा कि यह किसी भी तरह से नशीले पदार्थों के सेवन करने से अलग नहीं है।
सिंह ने कहा कि इस तरह की लत का एक जाना-पहचाना लक्षण बाहर जाकर खेलने, पढ़ाई, सामाजिक मेलजोल और शौक में कमी आना है।
उन्होंने कहा, “नशीले पदार्थों के सेवन के अलावा कुछ अन्य गतिविधियों भी होती हैं जो दिमाग पर असर डालती हैं और लत का कारण बन जाती है. जुए की लत के लिए हार्मोन डोपामाइन और सेरोटोनिन काफी हद तक जिम्मेदार हैं। ऑनलाइन जुए के लिए सिर्फ एक मोबाइल फोन और एक इंटरनेट कनेक्शन की जरूरत होती है, इसे एक्सेस करना आसान है और इसकी लत जल्दी लग जाती है।”
वाराणसी के सर सुंदरलाल अस्पताल में काम करने वाले एक न्यूरोलॉजिस्ट विजय नाथ मिश्रा ने गाँव कनेक्शन को बताया कि नशे की लत से जूझ रहे व्यक्ति का इलाज कॉग्निटिव बिहेवियरल थेरेपी से किया जाता है, लेकिन इसके फिर से हो जाने की संभावना काफी ज्यादा होती है।
मिश्रा ने कहा, “ऐसे व्यक्तियों, खासतौर पर बच्चों को जुए के लिए फटकार नहीं लगाई जा सकती है और उनसे इसे छोड़ने की उम्मीद की जा सकती है। यह काफी ज्यादा मुश्किल है। इलाज के दौरान परिवार के सदस्यों और साथियों के सहयोग की काफी ज्यादा जरूरत होती है।”
न्यूरोलॉजिस्ट ने आगे बताया, “बेहतर प्रयासों के बावजूद, ऐसे रोगियों का रिलैप्स रेट काफी ज्यादा होता है. ऐसे लगभग 53 प्रतिशत मरीज पूरी तरह से ठीक हो जाने के बाद भी इस लत की ओर लौट जाते हैं.”
क्लिनिकल साइकोलॉजिस्ट सिंह के अनुसार, “शुरुआती स्तर पर रोका-टोकी ही लत को नियंत्रित करने का सबसे अच्छा तरीका है। एक बार फिर से पढ़ने, खेलने या फिल्में देखने जैसे रोजाना के कामों में लगाने और खुशी को फिर से खोजने के लिए लत के शिकार व्यक्ति की मदद करनी होगी। सबसे बड़ी बात, मरीज की लत छुड़ाने की प्रक्रिया में पूरे परिवार को शामिल होना पड़ता है।’
लेखक- प्रत्यक्ष श्रीवास्तव। सतीश मालवीय, विदिशा, मध्य प्रदेश से इनपुट्स के साथ.