ओडिशा के इस समुद्र तट से क्यों रूठ गए ओलिव रिडले कछुए?

जहाँ कभी हज़ारों ओलिव रिडले कछुए आते थे, आज वहाँ गिनती के कछुए आ रहे हैं। ये पहली बार नहीं है, पिछले एक दशक में इनकी संख्या घटती जा रही है, आखिर क्या है इसके पीछे की वजह?
odisha olive ridley turtles nesting

कई साल पहले यहाँ इतने ओलिव रिडले कछुए आते थे कि समंदर के किनारे पर दूर-दूर तक सिर्फ वही दिखाई देते थे, लेकिन ऐसा क्या हुआ कि कछुए इस जगह से रूठकर चले गए और कभी वापस ही नहीं लौटे; ये है ओडिशा के पुरी ज़िले के अस्त्रंगा समुद्र तट का देवी नदी मुहाना,  जहाँ इस बार इतने कम कछुए आये हैं कि कोई भी इन्हें उंगलियों पर गिन सकता है। 

सोशल मीडिया के साथ ही कई सारी न्यूज वेबसाइट पर एक ख़बर चल रही है, कि इस बार ओडिशा के गंजाम जिले का ऋषिकुल्या समुद्र तट पर हर साल के मुकाबले ज़्यादा ओलिव रिडले कछुए आएं हैं, रिपोर्ट्स के अनुसार यहाँ सात लाख से ज़्यादा कछुए अंडे देने के लिए आए हैं। 

ओडिशा में ऐसी तीन जगह हैं, जहाँ पर हर साल ओलिव रिडले टर्टल नेस्टिंग के लिए आते हैं। इनमें गंजाम ज़िले का ऋषिकुल्या समुद्री तट , केंद्रपाड़ा ज़िले का गहिरमाथा और पुरी ज़िले का अस्त्रंगा समुद्री तट। लेकिन सी टर्टल्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार अस्त्रंगा समुद्री तट के देवी नदी के मुहाने पर एक दशक से भी अधिक समय से उनकी संख्या लगातार कम हो रही है। 

कछुओं का एक व्यवहारिक लक्षण (Natal Behaviour) होता है कि वे जहाँ एक बार अंडे देते हैं, और जब उनसे बच्चे निकलते हैं तो वो भी वहीं पर अंडे देते हैं जहाँ पर उनका जन्म हुआ था। ओलिव रिडले कछुओं के लिए ओडिशा के तट अनुकूल माने जाते हैं। 

अस्त्रंगा समुद्री तट पर कछुओं की घटती संख्या पर चिंता व्यक्त करते हुए ग्रीन लाइफ रूरल असोसिएशन के सदस्य सोवाकार बेहरा गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “आखिरी बार मास नेस्टिंग 1997 में हुई थी, तब लगभग 45,000 कछुए अंडे देने आए थे। उसके बाद से इनकी संख्या लगातार कम होती जा रही है।”

कछुओं की मृत्यु दर को कम करने और प्रजातियों के भविष्य को सुरक्षित करने के लिए, भारतीय वन्यजीव संरक्षण सोसायटी (WPSI) ने 1998 में “ऑपरेशन कच्छप” (OpK) शुरू किया। यह कार्यक्रम उड़ीसा वन्यजीव सोसायटी (WSO) और उड़ीसा वन विभाग की साझेदारी में चलाया जाता है।

वन्यजीव सोसाइटी ऑफ ओडिशा के सचिव और राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड के पूर्व सदस्य डॉ बिस्वजीत मोहंती गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “1999 से लेकर 2007 तक मास नेस्टिंग नहीं हुई, बल्कि कहीं कहीं पर छिटपुट नेस्टिंग हुई। इसका सबसे बड़ा कारण गैरकानूनी तरीके से मछली पकड़ना है, जोकि इन तीनों जगह में सबसे ज़्यादा देवी नदी के मुहान पर ही होती है।”

क्यों अस्त्रंगा समुद्री तट से दूर चले गए कछुए?

विशेषज्ञों के अनुसार समुद्र में अवैध मछली पकड़ना भी इनके न आने के एक कारण है।   मछुआरे समुद्र में अवैध रूप से गहरे तक जाते हैं और गिल नेट (Gill Net) का इस्तेमाल करते हैं, जो लगभग एक किलोमीटर लंबी होती है। इसमें कछुए फँस जाते हैं, जिससे कछुए साँस नहीं ले पाते हैं क्योंकि वो 45 मिनट तक साँस रोक सकते हैं, लेकिन जब वे सतह तक नहीं आ पाते और दम घुटने से उनकी मौत हो जाती है।

डॉ. मोहंती आगे बताते हैं, “मछुआरे इसी समय समंदर में जाते हैं, क्योंकि इस समय हवा कम होती है, जिस कारण से वे आराम से जाकर और मछली पकड़ सकते हैं, ठीक उसी टाइम टर्टल्स मेटिंग के लिए समंदर के सतह तक आते हैं, और टर्टल्स के जोड़े बहुत पास-पास रहते है, ट्राउल जाने के वजह से उनके जोड़े टूटकर बिछड़ जाते हैं, जिस कारण से वो और अंडे नहीं दे पाते हैं।”

इतने सारे कछुओं के मरने का कारण संरक्षणवादियों और शोधकर्ताओं का यह निष्कर्ष है कि बड़ी संख्या में सरीसृप मेटिंग के लिए समुद्र तट से लगभग 60 किमी दूर इकट्ठा होते हैं, जो पहले की धारणा के विपरीत था कि मेटिंग गतिविधि तट के करीब होती थी।

डॉ बिश्वजीत आगे कहते हैं, “जिस तरह एक बाघ को मारना गलत है, उसी तरह एक ओलिव रिडले कछुए को मारना भी उतना ही गलत है।”

यही नहीं देवी नदी के आसपास बढ़ते झींगा पालन ने भी ओलिव रिडले कछुओं के लिए मुश्किलें बढ़ा दी हैं।

सोवाकर बेहरा आगे बताते हैं, “लोग झींगा पालन के लिए हैलोजन लाइट का इस्तेमाल करते हैं, जिससे समुद्र में तेज़ रोशनी फैलती है। कछुओं को लगता है कि ये सूरज की रोशनी है,  और दूसरी जगह जाकर अंडे दे देते हैं, जबकि वे ज्यादातर रात में नेस्टिंग के लिए आते हैं।”

“झींगा पालकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाले रसायनों को बिना उपचारित किए सीधे नदी में बहा दिया जाता है, जिससे वह समुद्र में जाकर मिल जाता है। इससे समुद्री पर्यावरण पर प्रभाव पड़ रहा है, “बेहरा ने आगे बताया। 

क्या कहता है वन विभाग?

ज़िला वन अधिकारी विवेक कुमार गाँव कनेक्शन से बताते हैं, “कछुओं के न आने का सही कारण पता नहीं चल रहा है। ये सिर्फ  इस साल की बात नहीं है, बल्कि पिछले 20-25 सालों से ओलिव रिडले कछुओं का आना कम होता जा रहा है।”

फॉरेस्ट डिपार्टमेंट, पुरी के अनुसार, इस साल फरवरी तक अभी लगभग 400 कछुए आ चुके हैं।

कुमार आगे कहते हैं, “2024-2025 में अब तक 8 अवैध ट्रॉलिंग के मामले सामने आए हैं, जिन पर Orissa Marine Fishing Regulation Act (OMFRA) के तहत कार्रवाई भी की गई है।”

साल 1997 के बाद से ही अवैध ट्रॉलिंग शुरू हुई है, जो बाकी तीन जगह की तुलना में देवी नदी में अधिक होती है, क्योंकि वहाँ पेट्रोलिंग नहीं होती है।)

डॉ. बिस्वजीत कहते हैं, “इस काम को तीन विभाग देखते हैं- मत्स्य विभाग, वन विभाग और कोस्ट गार्ड। लेकिन इनके पास न तो पर्याप्त पेट्रोलिंग बोट और न ही जो वन विभाग से समुद्र में पेट्रोलिंग के लिए जाते हैं, वे प्रशिक्षित होते हैं। इसी कारण उनकी तबीयत भी खराब हो जाती है।”

समुद्र तट पर लगाए गए पेड़ भी हैं जिम्मेदार 

पिछले कुछ सालों में समुन्द्र तट पर कैजुरीना पेड़ लगाए गए हैं, जो कहीं न कहीं कछुओं के यहाँ न आने के ज़िम्मेदार हैं, डॉ बिस्वजीत चिंता व्यक्त करते हुए गाँव कनेक्शन से कहते हैं, “टर्टल्स के नेस्टिंग पॉइंट के पास  कैजुरीना प्लांटेशन 500 मीटर दूर लगा न चाहिए। लेकिन यहाँ करीब ही पेड़ लगाएं गए हैं, यहाँ पर पेड़ हटाने की बात की गई थी, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ।”

ओलिव रिडले टर्टल क्यों हैं ज़रूरी?

भारत के पूर्वी तट पर ओडिशा की 480 किलोमीटर लंबी तटरेखा है, जहाँ समुद्री कछुओं की चार प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनमें ऑलिव रिडले, हॉक्सबिल, ग्रीन और लेदरबैक शामिल हैं। इनमें से केवल ऑलिव रिडले ही इस क्षेत्र में घोंसला बनाते हैं।

वे फ़ूड चैन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। ऑलिव रिडले कछुए, समुद्र में जेलीफ़िश की संख्या को नियंत्रित रखते हैं, क्योंकि अधिक जेलीफ़िश होने से समुद्र में मछलियों की संख्या कम हो सकती है।

जानकारों की माने तो अगर सही ध्यान दिया जाए तो एक बार फिर यहाँ कछुए आ सकते हैं, इस पर सोवाकार बेहेरा आगे कहते हैं, “अगर सही से पेट्रोलिंग हो, तो अवैध ट्रॉलिंग नहीं होगी। इससे ज्यादा कछुए आएंगे। इसके अलावा, एक व्यापक रिसर्च की जरूरत है कि आखिर ओलिव रिडले टर्टल्स की संख्या क्यों घट रही है, ताकि इसका समाधान निकाला जा सके।”

“जो लोग अवैध ट्रॉलिंग करते हुए पकड़े जाते हैं, वे कुछ महीनों बाद फिर से आकर वही काम करने लगते हैं। विभाग उन्हें दोषी करार नहीं देता, जिसके कारण उनका लाइसेंस रद्द नहीं होता। अगर यह सब सख्ती से लागू किया जाए, तो अवैध ट्रॉलिंग और भी कम हो जाएगी, “डॉ. बिस्वजीत ने आगे कहा।

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