फिरोजाबाद में बुखार से राहत नहीं, अपनों का इलाज कराने के लिए कर्ज में डूबे परिवार

उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के नगला अमन से 18 अगस्त को 'बुखार' का पहला मामला सामने आया था। पांच हफ्ते बाद, गांव कनेक्शन ने गांव व उसके आस-पास के इलाकों का दौरा किया और पता लगाया कि फिलहाल वह किन परिस्थितियों में अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। लगभग हर घर में कोई न कोई बीमार और कर्ज के बोझ से दबा हुआ था। यह कर्ज लगातार बढ़ता जा रहा है क्योंकि परिवार अपने बीमार बच्चों के इलाज के लिए बड़ी रकम उधार ले रहे हैं।
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नगला अमन (फिरोजाबाद), उत्तर प्रदेश। नगला अमन वह गांव है जहां से मिस्ट्री फीवर शुरू हुआ था। लगभग दो महीने बीत जाने के बाद भी यहां कुछ नहीं बदला है। गांव अभी भी गंदगी में डूबा हुआ है और बुखार थमने का नाम नहीं ले रहा। यह जगह आज भी बुखार का केंद्र बनी हुई है। उत्तर प्रदेश के फिरोजाबाद जिले के इस गांव में लगभग 800 लोग रहते हैं।

ठीक दो महीने पहले 18 अगस्त को नगला अमन में ‘बुखार’ का पहला मामला सामने आया था, जिसे शुरू में ‘मिस्ट्री फीवर’ कहा गया। बाद में इस बुखार की डेंगू के रूप में पुष्टि की गई। गांव वालों का कहना है कि तब से लेकर आज तक इससे कम से कम सोलह लोगों की मौत हो चुकी है। इन सभी की उम्र तीन महीने से लेकर 58 साल के बीच थी।

नगला अमन, प्रदेश की राजधानी लखनऊ से करीब 300 किलोमीटर पश्चिम में स्थित है। गांव का कोई भी घर बुखार से अछूता नहीं है। लगभग हर घर के बाहर चारपाई बिछी थीं, जिस पर बुखार से पीड़ित बच्चे और बड़े लेटे हुए थे।

आगरा और मथुरा के साथ-साथ, उत्तर प्रदेश के कुछ अन्य जिलों से भी बुखार फैलने की खबरें आई हैं।

फिरोजाबाद के मुख्य चिकित्सा अधिकारी दिनेश कुमार प्रेमी ने गांव कनेक्शन को बताया, “फिरोजाबाद में बुखार से कुल 63 लोगों की मौत हुई है। जिले में इस समय बुखार के 82,609 मरीज हैं और 136,817 लोग ठीक हो चुके हैं।’

नगला अमन के लगभग हर घर में, बच्चे बीमार होकर चारपाइयों पर लेटे थे। सभी फोटो: बृजेंद्र दुबे

निराशा का बुखार

नगला अमन के रहने वाले राम स्नेही ने गांव कनेक्शन को बताया। “यहां सब बीमार हैं और भूखे भी। हमारे पास बीमार बच्चों को खिलाने के लिए भी पैसे नहीं हैं, ” उनके 10 साल के पोते को बुखार है। वह चारपाई पर लेटा है, उसके हाथ में ग्लूकोज की ड्रिप लगी हुई है। चारपाई के पास से बार-बार मक्खियों को भगाते हुए, भारी मन से वह कहते हैं, “प्रशासन की तरफ से किसी ने हमसे हमारी परेशानी के बारे में पूछा तक नहीं है। कुछ अधिकारी आए, एक बार चक्कर लगाया और चले गए। अगर उन्होंने हमें दो किलो गेहूं भी दिया होता तो उनका बड़ा उपकार रहता। तब हम अपने बच्चों को कुछ खिला तो सकते थे।”

राम सनेही के परिवार में छह बच्चे बीमार हैं। फिलहाल उनका दीमाग काम नहीं कर रहा। बच्चों की प्लेटलेट काउंट गिरती जा रही थीं। तब उन्हें 12 किलोमीटर दूर फिरोजाबाद जिला अस्पताल के ट्रॉमा सेंटर में भागना पड़ा। उन्होंने कहा, ‘उस समय मवेशियों को चारा खिलाने वाला भी कोई नहीं था।’

राम स्नेही के घर से थोड़ी दूर 11 साल का दीपक अपने घर के बाहर एक खाट पर लेटा हुआ है। उसके हाथ में भी एक ग्लूकोज ड्रिप लगी है। दीपक ने गांव कनेक्शन को बताया, “मुझे पिछले चार दिनों से डेंगू बुखार है। यह उतरता-चढ़ता रहता है। कभी मुझे गर्मी लगती है तो कभी ठंडा महसूस होता है।” दीपक ने बताया कि शिकोहाबाद से गांव के दौरे पर आए एक डॉक्टर ने उन्हें ड्रिप लगाई थी।

चारपाई पर लेटा हुआ दीपक

दीपक के पिता पप्पू ने गांव कनेक्शन से कहा, प्राइवेट डॉक्टर से इलाज कराने में अब तक एक लाख रुपये खर्च हो चुके हैं। कुछ पैसा हमने रिश्तेदारों से उधार लिया और कुछ पैसे जेवर गिरवी रखकर इक्ट्ठा किए थे। 42 साल के पप्पू के परिवार में 10 लोग हैं जिनमें से सात पिछले 20 दिनों से बीमार चल रहे थे।

मुसीबतों का दलदल

इस गांव से दो- तीन किलोमीटर दूर पड़ोसी गांव भरतपुरा में भी स्थिति कुछ अलग नहीं हैं। एक ओर जहां मच्छरों के कारण होने वाली बीमारियों को रोकने के लिए कहीं भी पानी जमा न हो, यह सुनिश्चित किया जा रहा है। इसके लिए आधिकारिक चेतावनियां भी दी गईं हैं। लेकिन वहीं दूसरी तरफ भरतपुरा के प्राथमिक विद्यालय के आसपास का क्षेत्र एक गंदी झील जैसा दिखता है। गांव वालों ने बताया कि स्कूल के अंदर पानी भरा है।

निर्मला देवी का घर ठीक स्कूल के सामने है। उन्होंने गांव कनेक्शन से कहा, “न तो बच्चे और न ही टीचर, कोई भी स्कूल में अंदर नहीं जा सकता है। वहां पानी भरा है। उस पर मच्छर भिनभिनाते हैं और दीवारों पर काई चढ़ी है।”

ग्रामीणों का कहना है कि स्कूल के अंदर पानी जमा हो गया है।

भरतपुरा गांव में लगभग 850 लोग रहते हैं। नगला अमन की तरह इस गांव में भी हर घर का कोई न कोई सदस्य बुखार से जूझ रहा है।

गांव वालों ने बताया कि गांव के करीब तीन सौ लोग बीमार हैं और अब तक आठ लोगों की जान जा चुकी है। गांव वाले आगरा, हाथरस और फिरोजाबाद के निजी अस्पतालों के चक्कर लगा रहे हैं।

कर्ज में दबे

गांव वालों के अनुसार, उन्होंने सरकारी अस्पताल पर भरोसा नहीं है। प्राईवेट अस्पतालों में इलाज कराने के लिए हमारे पास जो कुछ भी जमीन-जायदाद थी, उसे हमने बेच दिया। ताकि अपने परिवार वालों की जान बचा सकें।

निर्मला देवी बताती हैं, “घर में बीमार एक सदस्य पर लगभग एक लाख रुपये खर्च हो रहा है। मैंने साहूकार के पास अपनी जमीन गिरवी रख दी। उसी पैसे से दवाई खरीद पा रहे हैं। मेरे परिवार में आठ लोग बीमार हैं। ” उसने यह भी कहा कि उनके पास खाने के लिए बहुत कम है। साग-सब्जी खरीदने के लिए भी पैसे नहीं हैं। वह आगे कहती हैं, “हम में से ज्यादातर लोग चूड़ी के कारखानों में काम करते हैं और एक दिन में लगभग साढ़े तीन सौ रुपये ही कमा पाते हैं।”

स्थिति गंभीर है, खासकर उन परिवारों के लिए जहां दो या तीन से ज्यादा सदस्य डेंगू से लड़ रहे हैं।

अनीता देवी

भरतपुरा की अनीता देवी ने गांव कनेक्शन को बताया, “मेरा बेटा पंकज आगरा के एपेक्स अस्पताल में भर्ती है। उसे आठ दिनों से बुखार था। उसकी नाक और मुंह से खून बह रहा था।” एक तरफ उनका 20 साल का बेटा आगरा में जिंदगी की जंग लड़ रहा है, वहीं उन्होंने अपने दूसरा बेटे को हाथरस के एक अस्पताल में भर्ती कराया है। वह उदास मन से कहती हैं,”मैं पहले ही साढ़े तीन लाख से ज्यादा रुपये खर्च कर चुकी हूं।” और फिर वह रोने लगती हैं।  

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अनुवाद: संघप्रिया मौर्या

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