लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन उस ऐतिहासिक घटना का गवाह रहा है जब महात्मा गाँधी और पंडित जवाहरलाल नेहरू पहली बार यहाँ मिले थे। मौका था इंडियन नेशनल कांग्रेस की सालाना बैठक का; जिसमें शामिल होने के लिए नेहरू इलाहाबाद (प्रयाग) से 200 किलोमीटर दूर लखनऊ ट्रेन से पहुँचे थे।
दोनों स्वतंत्रता सेनानी कांग्रेस के 31वें सत्र में भाग लेने के लिए यहाँ आए थे, जो हिंदू-मुस्लिम एकता का प्रतीक प्रसिद्ध ‘लखनऊ संधि’ में ख़त्म हुआ था।
26 दिसम्बर 1916 की वो तारीख़ कितनी ऐतहासिक थी इसका अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि इस बात का जिक्र न सिर्फ नेहरू ने अपनी आत्मकथा में किया है बल्कि चारबाग रेलवे स्टेशन के सामने जहाँ ये मुलाक़ात हुई थी वहाँ एक पट्टिका पर भी इस बात का उल्लेख है।
नेहरू की ज़ुबानी पहली मुलाक़ात का जिक्र
अपनी आत्मकथा टुवर्ड फ्रीडम में नेहरू ने लिखा है –
“ गांधीजी से मेरी पहली मुलाकात 1916 में क्रिसमस के दौरान लखनऊ कांग्रेस के दौरान हुई थी। हम सभी दक्षिण अफ्रीका में उनकी वीरतापूर्ण लड़ाई के लिए उनकी प्रशंसा करते थे, लेकिन वे हममें से कई युवाओं को बहुत दूर, अलग और अराजनीतिक लगते थे। उन्होंने तब कांग्रेस या राष्ट्रीय राजनीति में भाग लेने से इनकार कर दिया और खुद को दक्षिण अफ़्रीकी भारतीय सवालों तक ही सीमित रखा।”
नेहरू ने लिखा है कि महात्मा गाँधी जी साउथ अफ्रीका में हुई घटना को लेकर कैसे आगे आए।
करीब 20 मिनट की इस बातचीत में दोनों नेताओं ने कई मसलों पर चर्चा की।
अगर लखनऊ के निशांतगंज से हज़रत गंज की तरफ बढ़े तो गोमती नदी पुल के दूसरे छोर पर महात्मा गाँधी और नेहरू की मूर्ति आपको दिख जाएगी। पुल के बीचो बीच लगी इस मूर्ति की ख़ास बात ये है कि ये उस तस्वीर को देख कर बनाई गई है जो 26 दिसम्बर 1916 को महात्मा गाँधी और नेहरू की मुलाक़ात के समय खींची गई थी।
महात्मा गाँधी की लखनऊ यात्रा
इतिहार खंगाले तो मालूम चलता है साल 1916 से 1939 के बीच लखनऊ में अपने कई प्रवास के दौरान महात्मा गाँधी ने न सिर्फ अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ रणनीति बनाई बल्कि शिक्षा, स्वास्थ्य और पर्यावरण संरक्षण का महत्व भी स्थानीय लोगों को समझा गए थे।
1936 में उनके हाथ से लगाया गया बरगद का एक पौधा अब विशाल वृक्ष बन गया है। कभी गोखले मार्ग से आप गुज़रे तो दूर से नज़र आ जाएगा।
साल 1936 में ही महात्मा गाँधी, नेहरू की अध्यक्षता में कांग्रेस के अधिवेशन में शामिल होने के लिए दूसरी बार फिर लखनऊ आए थे।
चारबाग रेलवे स्टेशन के जिस स्थल पर पहली बार महात्मा गांधी और पंडित जवाहर लाल नेहरू का मिलन हुआ था; वहाँ मौजूद गांधी उद्यान को रेलवे आम यात्रियों के साथ शहरवासियों की सैर के लिए और खूबसूरत बना रहा है। गांधी उद्यान में बच्चों के लिए झूले के अलावा रेलवे ने इसी उद्यान के पास रेस्टोरेंट आन व्हील शुरू किया है जहाँ सभी राज्यों के पकवान आप खा सकते हैं।
क्या ख़ास है चारबाग रेलवे स्टेशन में
लखनऊ का चारबाग रेलवे स्टेशन अपने आप में ख़ास है।
इसकी वास्तुकला में आपको मुग़ल, राजपूत और अवधि संस्कृति की झलक मिलेगी।
अगर आपको इस रेलवे स्टेशन को कभी ऊपर से देखने का मौका मिले तो यह शतरंज की बिसात जैसा लगता है; इसके लम्बे-लम्बे खम्भे और नीचे बने हुए गुम्बद शतरंज के मुहरें जैसे प्रतीत होते हैं।
इसकी वास्तुकला इतनी अद्भुत है कि वह इसके भीतर आने-जाने वाली ट्रेनों की आवाज़ को अपने अंदर ही समाहित कर लेती है। इस तरह यह एक साउंड प्रूफ स्टेशन का काम करता है।
पहले नवाबों द्वारा तैयार किया गया ये एक खूबसूरत बगीचा (चारबाग) था। जिसे बाद में अंग्रेजों ने रेलवे स्टेशन में बदल दिया। इसकी डिज़ाइन जे.एच. होर्निमन ने तैयार की थी। कहते हैं 1923 में लगभग 60-70 लाख रुपए में इसका निर्माण किया गया, जो 1 अगस्त, 1925 को पूरा हुआ।