जगन्नाथ यात्रा: ओडिशा का आदिवासी समुदाय बनाता है दुनिया के सबसे बड़े रथ को खींचने वाली रस्सियां

ओडिशा के केंदुझर जिले में जुलाई के पहले सप्ताह में होने वाली जगन्नाथ यात्रा के भव्य आयोजन की तैयारी चल रही है। प्रदेश आदिवासी समुदाय के लोग रथों को मंदिर तक ले जाने के लिए जरूरी रस्सियां बना रहे हैं।
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रस्सी बनाने के लिए स्थानीय रूप से पाए जाने वाले लता रेशों को बांटने में व्यस्त, 55 वर्षीय कुंजा देहुरी ने ओडिशा के केंदुझर जिले में जगन्नाथ यात्रा के भव्य समारोह के लिए जरूरी रस्सियों बनाने को लेकर खुशी का इजहार किया।

केंदुझार जिले के देहन गाँव के निवासी देहुरी ने गाँव कनेक्शन को बताया, “कोरोना महामारी की वजह से दो साल से जगन्नाथ मंदिर का वार्षिक उत्सव नहीं मनाया गया। बहुत सारे प्रतिबंध थे। हमारे जैसे आदिवासी समुदाय के लोग रथ यात्रा के लिए रस्सियां बनाते रहे हैं और यह आय का अतिरिक्त जरिया होने की वजह से हमारे लिए काफी अहम है।”

डेहरी गाँव के 80 आदिवासी हैं जो सामूहिक तौर पर 12 रस्सियां बना रहे हैं। हर रस्सी की लम्बाई 300 मीटर तक है। इन रस्सियों के लिए रेशे सियाली के पेड़ों से प्राप्त होते हैं जो जिले के गंधमर्दन जंगलों में पाए जाते हैं।

आदिवासी निवासी ने बताया, “एक रस्सी का वजन लगभग दो क्विंटल (200 किलोग्राम) होता है। मंदिर के अधिकारी हमें एक रस्सी के लिए 10,000 रुपये का भुगतान करते हैं। ये रस्सियां सियाली पौधे की लता से बनाई जाती हैं। जगन्नाथ यात्रा से पहले के हफ्तों में, हम दूसरे सभी काम छोड़ देते हैं और इन रस्सियों को बनाने पर ध्यान केंद्रित करते हैं।”

लताएं आदिवासियों की आजीविका का जरिया

क्योंझर नगर पालिका के सब-कलेक्टर रामचंद्र टिस्कू ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सियाली की रस्सियां दूसरी रस्सियों की तुलना में ज्यादा मजबूत होती हैं और यात्रा में विशाल रथों को खींचने के लिए बहुत शक्ति प्रदान करती हैं।”

सियाली लता का पौधा इस क्षेत्र के जंगलों में आर्थिक रूप से सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण पौधों में से एक है, क्योंकि आदिवासी इन लताओं का उपयोग रस्सियों, टोकरियों, बैगों और इसी तरह के सामान बनाने के लिए करते हैं।

डेहरी पौड़ी भुइयां नामक आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं जो अपने शांत, सरल और मेहनती स्वभाव के लिए जाने जाते हैं।

भुवनेश्वर स्थित अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान द्वारा तैयार जनजाति पर एक नोट की प्रस्तावना में उल्लेख है, “पौड़ी भुइयां बहुत ही सरल, शांत और मेहनती लोग हैं, जो ज्यादातर क्योंझर के भुइयां पिरहा, बनई पहाड़ी इलाकों, सुंदरगार्ड और अंगुल जिलों के पहाड़ी इलाकों में पाए जाते हैं। वे पहाड़ी इलाकों और घाटी के निचले हिस्से में रहना पसंद करते हैं। वे घर पर व्यस्त रहते हैं, सुबह से शाम तक खेत और जंगल में वे कभी खाली नहीं बैठते हैं।”

‘प्राचीन मंदिर में दुनिया का सबसे बड़ा रथ’

सब-कलेक्टर टिस्कू ने गाँव कनेक्शन को बताया कि क्योंझर में भगवान जगन्नाथ के 72 फीट लंबे रथ को इस साल गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने सबसे बड़ी रथ यात्रा रथ में शामिल किया है।

क्योंझर के जगन्नाथ मंदिर का निर्माण 1672 में क्योंझर के महाराजा लक्ष्मीनारायण भांजा ने करवाया था।

मंदिर के मुख्य पुजारी सुजीत कुमार दास ने गाँव कनेक्शन को बताया, “मंदिर की स्थापना के बाद से, आदिवासी रथ यात्रा के लिए सियाली लता से रस्सियां बना रहे हैं। राज काल के दौरान, महाराजा ने पहाड़ी भान जनजातियों को जगन्नाथ मंदिर की वार्षिक रथ यात्रा में सियाली लता रस्सी प्रदान करने और उनकी सेवा के बदले भूमि प्रदान की थी। लेकिन राजा के शासन के अंत के बाद, रस्सी बनाने वालों को मंदिर प्रबंधन समिति से अपने काम के लिए पैसा मिल रहा है। सदियों पुरानी परंपरा को जीवित रखते हुए, हम रथ खींचने के लिए सियाली लता रस्सियों का उपयोग करते रहे हैं।”

साथ ही, सियाली लता का पौधा इतिहास, धर्म और पौराणिक कथाओं के विषयों से गहरा जुड़ाव रखता है। मुख्य पुजारी ने बताया कि महाकाव्य महाभारत के अनुसार, भगवान कृष्ण की मृत्यु सियाली लता द्वारा बनाए गए बिस्तर पर सोते वक्त हुई थी।

दास ने यह भी बताया कि आदिवासी लोग सियाली शाखाओं को सावधानीपूर्वक काटते हैं ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि शाखाएं फिर से विकसित हो सकें।

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