गाँव से शहर तक ज़रूरी है शून्य अपशिष्ट का प्रबंधन

इंसान हर साल 430 मिलियन टन प्लास्टिक उत्पन्न कर रहा है; जिसका दो तिहाई हिस्सा जल्द ही वेस्ट में तब्दील हो जाता है क्योंकि इसकी लाइफ छोटी होती है।
#PlasticWaste

अपशिष्ट प्रबंधन पृथ्वी और मानवता की सेहत के लिए क्यों ज़रूरी है और इसकी भयावहता कितनी है; इसको कुछ उदाहरणों द्वारा समझ सकते है। संयुक्त राष्ट्र संघ पर्यावरण कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार शिपिंग कंटेनर में पैकिंग मटेरियल से एक साल में ही इतना वेस्ट उत्पन्न होता है कि पृथ्वी को उससे 25 बार लपेटा जा सकता हैं। अगर हमने कोई ठोस उपाय नहीं किए तो सन् 2050 तक म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट का उत्पादन 3.8 बिलियन टन वार्षिक होगा।

14 दिसंबर 2022 को संयुक्त राष्ट्र संघ की साधारण सभा ने एक प्रस्ताव पास कर 30 मार्च को “शून्य अपशिष्ट का अंतर्राष्ट्रीय दिवस” प्रत्येक वर्ष मनाने का निर्णय किया।

दुनियाभर के युवाओं, संस्थाओं, नागरिकों, चिंतकों से आह्वान किया गया कि राष्ट्रीय,राज्य,उपमहाद्वीपीय, क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर पर सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए “शून्य अपशिष्ट” प्रबंधन की दिशा में पहल ज़रूरी है।

“शून्य अपशिष्ट” के लक्ष्यों में सभी अपशिष्ट शामिल हैं जैसे – खाने का अपशिष्ट, प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और इलेक्ट्रॉनिक अपशिष्ट।

संसाधनों की उपयोगिता में तेजी से वृद्धि के कारण तीन तरह के संकट पृथ्वी पर बढ़ते जा रहे हैं जो जलवायु परिवर्तन संकट , प्रकृति और जैव- विविधता का संकट और प्रदूषण है।

पृथ्वी पर मानव की सतत विकास की अवधारणा के विपरीत गतिविधियों के कारण उत्पादन और अंधाधुंध उपभोग की आदतों ने पृथ्वी को इस वैनाशिक संकट की तरफ धकेला है।

अपशिष्ट संकट की भयावहता का अंदाजा आप इस तथ्य से भी लगा सकते हैं कि घरेलू, लघु व्यवसाय,और नागरिक सेवा प्रदाताओं द्वारा पैकेजिंग , इलेक्ट्रॉनिक,प्लास्टिक और खाने की वस्तुओं से हर साल 2.1 बिलियन से 2.3 बिलियन म्युनिसिपल सॉलिड वेस्ट उत्पन्न हो रहा है जिसे दुनियाभर की अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं द्वारा निपटान में विफलता हाथ लग रही है। इससे हमे यह चेतावनी मिलती है कि मानवता को इस पृथ्वी पर अगर स्वस्थ वातावरण प्रदान करना है तो हमे अपशिष्ट संकट से निपटने के लिए आपात स्थिति मानकर काम करना जरूरी है।

अपशिष्ट प्रबंधन के लिए अपशिष्ट का संकलन,फिर उसे रीसाइकल करना तथा उसके अन्य स्वास्थ्य वेस्ट प्रबंधन उपाय आज की आपात ज़रूरत है।

अपशिष्ट संकट से निपटने के लिए अपशिष्ट को हमें अब एक संसाधन की तरह मानना होगा। जितना संभव हो सके दुनियाभर में लोगों में यह जागरूकता अभियान चलाया जाना चाहिए कि अपशिष्ट को संसाधन की तरह मानकर उसे जितना संभव हो रीसाइकल करे, वापस उपयोग में लाए और उत्पाद ड्यूरेबल तथा ऐसे पदार्थों से बनाए जाने को प्राथमिकता देने की ज़रूरत है। जिनका पर्यावरण पर नुकसानदायक प्रभाव कम से कम हो जिससे हवा , मिट्टी व जल का प्रदूषण कम होगा और सीमित और कीमती अमूल्य प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव कम होगा। इससे हमे संयुक्त राष्ट्र संघ के सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिलेगी।

दुनियाभर के समुदायों, समाजों, सरकार और अन्य स्टेक होल्डर्स को अपशिष्ट प्रबंधन के लिए धन का प्रबंधन व साथ ही नीति ऐसी बनानी होगी जो मार्जिनलाइज्ड समूहों यथा -शहरी गरीबों, महिलाओं और युवाओं को नुकसान न पहुँचाए या उनकी जिंदगी पर विपरीत प्रभाव न डाले।

उपभोक्ताओं को भी उनकी आदतों में बदलाव के लिए जागरूक करना आवश्यक है ताकि वे उत्पादों का दोबारा ज़्यादा से ज़्यादा उपयोग करे, रीसाइकल को बढ़ावा दें और हो सके तो किसी भी उत्पाद को डिस्पोज करने से पहले रिपेयर करके एक बार इस्तेमाल करें ।

भारतीय संस्कृति सदैव पृथ्वी और मानवता के साथ साथ तमाम जीवों के संरक्षण के लिए सनातन काल से ही प्रयासरत है लेकिन वर्तमान में पश्चिम की भोगवादी संस्कृति से भारतीय संस्कृति में भी उनके दुष्प्रभाव आए हैं और वे निश्चय ही विनाशकारी है जिन्हे हम जितना जल्दी त्याग दे उतना ही दुनिया का भला होगा और हम हमारी संस्कृति की परंपराओं के अनुसार चलकर न सिर्फ देश बल्कि दुनिया को भी एक दिशा दे सकते हैं जिससे सतत विकास की अवधारणा के लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिलेगी और मानवता का भला होगा।

अपशिष्ट संकट से दुनिया का कोई कोना अछूता नहीं रहा है इसलिए अपशिष्ट प्रबंधन सेवाओं को दुरुस्त करने की जिम्मेदारी संपूर्ण पृथ्वी वासियों की है। अगर ईमानदारी से सामूहिक और प्रभावी प्रयास किए जाएंगे तो निश्चय ही हम अपशिष्ट संकट के इस ग्लोबल दुष्प्रभाव से दुनिया को बचा पाएंगे।

(डॉ हेमलता मीना, राजस्थान के जयपुर में राजकीय महाविद्यालय में इतिहास की प्रोफेसर हैं)

Recent Posts



More Posts

popular Posts