रेवतीपुरवा (लखीमपुर खीरी, यूपी)। गांव के चारों तरफ पानी ही पानी नजर आ रहा था। गांव में लोगों से ज्यादा तेज धार में बहते पानी का शोर था। कोई सिर पर अनाज की बोरी के लिए धीरे-धीरे किनारे जा रहा था तो कोई अपने बच्चों को जल्दी से नाव में बैठाकर सुरक्षित भेजने में लगा था। गांव के ज्यादातर घरों में रात से खाना नहीं बना था, क्योंकि राशन और अनाज, चूल्हा सब भी गया था।
लखीमपुर जिले के रेवतीपुरवा गांव के सैकड़ों लोगों के लिए पिछले 24 घंटे बहुत मुश्किल भरे बीते। गांव के ज्यादातर घरों में 2-3 फीट पानी भरा था, कुछ लोग रात से ही छत पर बैठे हुए हैं। करीब 1000 की आबादी वाला गांव रेवतीपुरा में मंगलवार रात से शारदा नदी का पानी भरना शुरु हुआ और सुबह तक गांव पानी-पानी हो गया था। कुछ लोगों ने तख्त या फिर छत पर गैस या चूल्हा रखकर जैसे तैसे खाना बनाया तो कुछ परिवार ऐसे ही रह गए।
“जब तक बचाने की कोशिश करते आटा सीधा (आटा, दाल, चावल) बह गया। बच्चे भूख से तड़प रहे हैं। चूल्हे में खाना बनाते थे वहां पानी भर गया। बच्चों को सुबह भूखा निकाल (सुरक्षित स्थान) दिया। घर में कुछ सामान नहीं बचा, अंग पर यही कपड़ा बचा है।” मालती देवी, देर रात घर में घुसे पानी के जख्म बताती हैं। मालती (57 वर्ष) के मुताबिक अनाज के नुकसान के साथ ही उनके घर की एक दीवार भी दरक गई है। वो बार-बार सुबकते हुए पूछती है आप ही बताइए अब हमारा गुजारा कैसे होगा।
इसी गांव के बुजुर्ग राम विलास (60 वर्ष) के मुताबिक बाढ़ तो उनके इलाके में अक्सर आती है लेकिन इस मौसम में ऐसी बाढ़ करीब 50 साल पहले आई होगी। बैलगाड़ी पर बैठे राम विलास गांव कनेक्शन को बताते हैं, “धान,चावल गेहूं सब बह गया। लड़के बच्चों को गांन से बाहर भेज दिया है। आगे त्योहार (दिवाली) है, लेकिन गांव में कुछ बचा नहीं है। सबका यही हाल है।”
तीन दिन की बारिश और उत्तराखंड से छोडे गए 5 लाख क्यूसेक से ज्यादा पानी के चलते उत्तर प्रदेश में लखीमपुर जिले की 7 में से 5 तहसीलें पानी की चपेट में आ गईं। शारदा का पानी मंगलवार की रात से ही गांवों में घुसने लगा था। जिला प्रशासन ने मंगलवार को ही अलर्ट जारी किया था। पुलिस प्रशासन की टीमें लगी थी लेकिन इसके बावजूद सैकड़ों लोग बाढ़ में फंस गए। जिन्हें निकालने के लिए आर्मी बुलानी पड़ी। लखीमपुर के बिजुआ ब्लॉक के रेवतीपुवरा से करीब 120 किलोमीटर दूर ईशा नगर में नाव पलट गई। नाव में 14 लोग सवार थे, जिनमे से 10 लोगों को कई घंटों की मशक्कत के बाच लाया गया था। बाकी के लिए सर्च ऑपरेशन जारी है। लखीमपुर के डीएम डॉ. अरविंद कुमार चौरसिया और पुलिस अधीक्षक विजय ढुल प्रभावित इलाकों की गस्त पर हैं।
लखीमपुर के साथ पीलीभीत में भी शारदा नदी का पानी दर्जनों गांवों में घुसा, जिसमें सैकड़ों लोग प्रभावित हुए। जिला प्रशासन ने यहां भी वायु सेना के हेलीकॉप्टर के जरिए जलभराव वाले क्षेत्रों से लोगों को निकालकर सुरिक्षत स्थान पर पहुंचाया। जिलाधिकारी पीलीभीत पुलकित खरे के मुताबिक गुनहान गांव के 26 लोगों को बचाने के लिए सुबह 6 बजे हेलिकॉप्टर ने उड़ानभरी और दो चरणों मे 26 को निकालकर सुरक्षित स्थानों और उनके घरों तक पहुंचाया। जिलाधिकारी के मुताबिक राहत और बचाव कार्यों के साथ ही प्रभावित लोगों को तत्काल खाद्य सामग्री दी जा रही है।
उत्तराखंड में भारी बारिश और बनवसा बैराज से पानी छोड़े के बाद पीलीभीत, लखीमपुर बिजनौर समेत कई जिलों के लिए अलर्ट जारी किया गया था, जिसके बाद एनडीआरएफ और सेना को भी स्टैंडबाई रखा गया था। लखीमपुर के जिलाधिकारी डॉ. अरविंद कुमार चौरसिया ने मंगलवार को कहा था, 5 लाख 44 हजार क्यूसेक पानी इससे पहले 2013 में छोड़ा गया था उस वक्त 181 गांव प्रभावित हुए थे।” उत्तराखंड में 2013 में हुई भीषण जल तबाही में हजारों लोगों की जान गई थी।
भारत मौसम विज्ञान विभाग के मुताबिक 1 अक्टूबर से 20 अक्टूबर तक यूपी में 29.6 मिलीमीटर की औसत बारिश के मुकाबले 88 मिलीमीटर बारिश हुई है जो सामान्य से 197 फीसदी है। वहीं पड़ोसी राज्य उत्तराखंड जहां बारिश ने भीषण तबाही मचाई है, वहां 31.2 मिली की औसत बारिश के मुकाबले 192.7 मिली बारिश हुई, जो सामान्य से करीब 517 फीसदी ज्यादा है। यूपी हो या उत्तराखंड दोनों ही राज्यों ज्यादातर बारिश 18 तारीख में हुई, जिसके चलते घर,मकान, रास्ते,पुल और फसलों को भारी नुकसान हुआ है। उत्तराखंड के बैराजों के उफनाने के बाद पानी यूपी की नदियों में छोड़ा गया, जिससे यहां के सीमावर्ती जिलों के सैकड़ों गांवों में पानी भर गया।
लखीमपुर के रेवतीपुरा में लोगों को सुरक्षित निकालने की ड्यूटी में लगाए गए लेखपाल मोहित कुमार मौर्य ने बताया कि गांव में कई कच्चे घर गिर गए हैं। पूरे गांव में पानी है लेकिन कोई जनहानि नहीं हुई है। उन्होंने कहा, “11 नावों और ट्रैक्टर ट्राली के जरिए लोगों को पास के दीक्षा महाविद्यालय में बनाए गए कैंप में ले जा रहा है। वहीं उनके खाने पीने का इंतजाम किया गया है। जलस्तर अभी घटा नहीं है।”
अपनी पक्की छत पर उदास बैठी मीना देवी कहती हैं, “पानी द्वारे के बाद अंगना में भरा जा रहा है। खाना बना नहीं पाए हैं। बच्चे को लेकर छत पर बैठी हूं। कभी ऐसा बाढ़ नहीं देखी, अगर देखी होती तो कोई रास्ता बनाती।”
गांव के लोगों के मुताबिक उन्हें इतना पानी आने का अंदेशा नहीं था इसलिए उन्होंने उस तरह से तैयारी नहीं थी। इसके अलावा लगातार बारिश हो रही थी तो ग्रामीणों के मुताबिक उन्हें न बचाव का मौका नहीं मिला और फिर वो सामान लेकर ऐसे में जाते भी तो कहां।
पानी ले लबालब घर में एक चारपाई पर बैठी 32 साल की सुनीता देवी कहती हैं, “कुछ सामान बचा ही नहीं पाए, यहां जू (जान) बचाना मुश्किल है। डेहरी में गेहूं था वो भी बह गए, एक खटिया थी वो भी टूट गई।”