हाथरस, उत्तर प्रदेश
दो कमरों के घर की दीवारों पर अक्षरों और अंकों वाले चार्ट टंगे हैं। चार और ढाई साल के दो बच्चे घर से ही पढ़ाई कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें बाहर निकलने की इजाजत नहीं है।
उनकी सात साल की बड़ी बहन को उसके रिश्तेदारों के पास भेज दिया गया है, ताकि वह सुरक्षित रह सके और पढ़ाई कर सके।
इन बच्चों की बुआ की बलात्कार के कुछ दिनों बाद मौत हो गई थी। घटना के दो साल बाद उत्तर प्रदेश में इस ग्रामीण परिवार का जीवन पूरी तरह से बदल गया। उनकी कहानी ठीक वैसी ही है जैसी बलात्कार के बाद पीड़िता के हर परिवार की होती है और हर साल सैकड़ों-हजारों ग्रामीण भारतीय घर उससे दो-चार होते हैं। एक ऐसा अपराध जिसके बाद पीड़ित परिवार को लगभग हमेशा सामाजिक बहिष्कार, न्यायिक देरी, रोजगार का छिन जाना, ताने और गहरे मानसिक घाव मिलते हैं जो कभी ठीक नहीं होते।
हाथरस – अपने मैन्युफैक्चरिंग और हस्तशिल्प के लिए जाना जाने वाला शहर और जिला, दो साल पहले एक 19 वर्षीय दलित लड़की को 14 सितंबर, 2020 को कथित तौर पर चार ‘उच्च’ जाति के पुरुषों द्वारा बाजरे के खेत में घसीटे जाने के बाद एक न भूलने वाली तारीख बन गया। उस लड़की का बलात्कार किया गया, उसकी जीभ काट दी और मरने के लिए छोड़ दिया, वो भी उसके घर से सिर्फ 400 मीटर की दूरी पर।
वह घर अब भारत के सर्वोच्च न्यायालय के आदेश पर तैनात अर्धसैनिक बलों के जवानों से भरा हुआ है। गाँव कनेक्शन के रिपोर्टर ने उनके घर की तरफ जाने के लिए अपने कदम बढ़ाए। सुबह के 10 बजे हैं और हाथरस में भारी बारिश हो रही है। कुछ दूरी पर काले रंग की तिरपाल वाले तंबू लगे हैं। इनमें अर्धसैनिक केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल (सीआरपीएफ) के सशस्त्र जवान 24X7 परिवार की सुरक्षा में जुटे हैं। उनमें से कुछ एके-47 राइफल लेकर दो कमरे के इस घर के बाहर गश्त करने में लगे हैं।
कम से कम आठ सीसीटीवी कैमरों की लगातार निगरानी में परिवार के दिन-रात गुजरते हैं। मेहमानों की जांच के लिए घर के एंट्री गेट पर मेटल डिटेक्टर लगे हैं।
पीड़िता के बड़े भाई ने गाँव कनेक्शन को बताया, “आरोपी जेल में हैं और हमारी स्थिति बहुत अलग नहीं है। यह घर में नजरबंद होने जैसा है।”
उन्होंने कहा, “हम अकेले कहीं नहीं जा सकते। अब चाहे सब्जी खरीदने के लिए बाजार जाना हो, खेत में जाना हो या पशुओं के लिए चारा इकट्ठा करना हो, सीआरपीएफ हमारे साथ रहती है। परिवार का कोई भी सदस्य जिसे कोर्ट जाना है वह सीआरपीएफ एस्कॉर्ट के साथ ही जाता है।”
बाहर से आने वाले सभी लोगों को भी कुछ ही दूरी पर रोक दिया जाता है, गाड़ी का नंबर, मोबाइल नंबर, ईमेल आईडी नोट करने और विजिटर की पहचान सत्यापित होने के बाद ही उन्हें घर में प्रवेश करने की इजाजत मिलती है। और बातचीत भी सीआरपीएफ के एक जवान की मौजूदगी में की जानी है।
एक नई सीरीज ‘दूसरा बलात्कार’ में गाँव कनेक्शन भुला दिए गए बलात्कार पीड़ितों के घरों में फिर से जाकर उनके हालात जानने की कोशिश कर रहा है। ग्रामीण भारत में रह रहे उनके परिवार से जुड़ी समस्याएं, उनकी पीड़ा, उनका दुख सब अनकहा है, क्योंकि मीडिया के पास अब उनके लिए समय नहीं है, उन्होंने सुर्खियों के लिए अन्य ‘कहानियों’ की ओर रुख कर लिया है।
हाथरस बलात्कार पीड़िता की कहानी, जिसका कथित तौर पर उसके परिवार के सदस्यों की अनुपस्थिति में रात में अंतिम संस्कार किया गया था, ‘दूसरा बलात्कार’ सीरीज में पहली है। यह बलात्कार के पीड़ितों के परिवारों के संघर्ष की याद दिलाती है, जिनमें से कई अनुसूचित जाति या दलित समुदाय से हैं।
इस सामूहिक बलात्कार पीड़िता के मामले पर दो साल से अधिक समय से हाथरस जिले की एक विशेष फास्ट ट्रैक अदालत में मुकदमा चल रहा है। सभी चार आरोपियों – संदीप, रामू, लवकुश और रवि को 23 सितंबर, 2020 को गिरफ्तार किया गया था।
लेकिन उन्हें अब तक कोई सजा नहीं हुई है।
हाथरस बलात्कार पीड़िता के मामले की पैरवी कर रही सुप्रीम कोर्ट की वकील सीमा कुशवाहा ने गाँव कनेक्शन को बताया, “पहले हमें साप्ताहिक तारीखें मिलती थीं। अब, हमें दो हफ्ते में सिर्फ एक बार सुनवाई की तारीख मिलती है। इस मामले में एक सौ आठ गवाह हैं। और बयान दर्ज करने में कम से कम तीन से चार तारीखें लगती हैं।”
पीड़िता के बड़े भाई ने भी “अदालत की कार्यवाही में देरी” की शिकायत की। उन्होंने कहा, “यूपी विधानसभा चुनाव से पहले हमें हाथरस में अदालत की सुनवाई के लिए महीने में चार तारीखें मिला करती थीं। लेकिन अब हमें सिर्फ दो ही मिलती हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “हम अपनी बहन के लिए न्याय के लिए लड़ना जारी रखेंगे। दो साल हो गए लेकिन हमने उसकी राख को नदी में विसर्जित नहीं किया है। जब तक उसे न्याय नहीं मिल जाता हम ऐसा नहीं करेंगे।’
कानूनी लड़ाई के साथ-साथ परिवार के सदस्य समाज से भी लड़ रहे हैं। उन्हें अपने ही गाँव में कई लोगों के बहिष्कार का सामना करने पड़ रहा है, जो उनके साथ कोई रिश्ता नहीं रखना चाहते। पीड़िता के बड़े भाई ने कहा कि उसकी पत्नी ने भी अपने मायके जाना बंद कर दिया है।
गाँव की आबादी तकरीबन 500 है और वहां पीड़ित परिवार ही दलित है। अन्य सभी परिवार ठाकुर या फिर ब्राह्मण समुदायों के हैं। दोनों को ‘उच्च’ जाति माना जाता है।
गाँव में कुछ लोग ऐसे भी मिले जिन्होंने इस घटना के लिए पीड़िता और उसके परिवार को ही दोषी ठहराया।
गाँव में रहने वाली 25 साल की मालती ने गाँव कनेक्शन को बताया, “सुरक्षा तो अपने हाथ में होती है।”
वहीं पड़ोस की एक अन्य बुजुर्ग महिला ने कहा, “हम बंद दरवाजों के पीछे रहते हैं और सुरक्षित महसूस करते हैं। हमारी बेटियों ने आठवीं तक पढ़ाई की है और हम जल्द ही उनकी शादी कर देंगे। लेकिन दूसरे गाँवों की लड़कियां की शादी तो बीए, एमए करने के बाद ही होती हैं।
एक आरोपी लवकुश की मां ने अपने बेटे को जेल में डालने के लिए बाहर वाली मीडिया (जिले के बाहर के पत्रकार) को जिम्मेदार ठहराया। उसने जोर देकर कहा कि उसका बेटा निर्दोष है और “अदालत न्याय करेगी”।
बलात्कार पीड़िता के परिवार को राज्य सरकार की ओर से 25 लाख रुपये का मुआवजा मिला है। उन्हें अपना घर, परिवार के एक सदस्य के लिए सरकारी नौकरी और उनकी बहन को न्याय दिलाने का भी वादा किया गया था।
बड़े भाई ने कहा, “सरकार ने मुआवजे के पैसे को छोड़कर अपना कोई वादा पूरा नहीं किया है। वे हमें हाथरस में एक घर दे रहे थे, लेकिन हम यहां से बाहर रहना चाहते हैं। हमें गाँव के उन लोगों से खतरा महसूस होता है जो आरोपी का साथ दे रहें हैं।”
इस साल जुलाई में सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश सरकार को अगले तीन महीनों के भीतर परिवार के एक सदस्य के रोजगार पर विचार करने का निर्देश दिया है। फिलहाल उन्हें ये नौकरी अभी मिलनी बाकी है।
पीड़ित परिवार से सरकार के किए वादों की जानकारी लेने के लिए गाँव कनेक्शन ने कलेक्टर रमेश रंजन से संपर्क करने के लिए हाथरस जिला प्रशासन कार्यालय का दौरा किया, लेकिन वह टिप्पणी करने के लिए उपलब्ध नहीं थे।
सामूहिक दुष्कर्म पीड़िता के परिवार का कोई भी सदस्य काम पर नहीं जाता। परिवार में पीड़िता के माता-पिता, दो भाई (बड़े भाई की शादी हो चुकी है), एक शादीशुदा बहन, दादी और तीन भतीजी शामिल हैं।
इस घटना से पहले दोनों भाई गाजियाबाद और नोएडा में काम करते थे। जबकि उनके पिता हाथरस में पैथोलॉजी लैब के साथ जुड़े हुए थे। वे तीनों मिलकर महीने में लगभग 20,000 रुपये कमा लेते थे।
भाई ने कहा, “अब मैं घर पर बैठा हूं और परिवार का पेट पालने के लिए थोड़ी-बहुत खेती कर रहा हूं।”
उनके बीच सिस्टम को लेकर अविश्वास भी है। भाई ने बताया, “हमें तो यह भी नहीं पता कि दो साल पहले जो राख सौंपी गई थी वह हमारी बहन की है भी या नहीं। क्योंकि हमें उसका चेहरा कभी देखने को नहीं मिला। आखिरी बार मैंने उसे तब देखा था जब उसके शरीर को पोस्टमार्टम के लिए भेजा जा रहा था।”
वह आगे कहते हैं, “प्रशासन ने पोस्टमार्टम के बाद उसका शव हमें नहीं सौंपा। रात में जब शव का अंतिम संस्कार किया जा रहा था, हम घर पर थे। हमने मौके पर पहुंचने की कोशिश की लेकिन पुलिस ने लाठीचार्ज कर दिया और हम वहां नहीं पहुंच सके।
2012 के निर्भया के मामले की भी पैरवी करने वाली वकील कुशवाहा ने कहा, “हाथरस मामले में सीबीआई ने दिसंबर 2020 में अपनी चार्जशीट दायर की। मामले की सुनवाई मार्च में शुरू हो गई थी। लेकिन COVID के कारण सुनवाई रोक दी गई..” उन्होंने आगे कहा “अदालत ने सीबीआई से पूछा है कि हाथरस मामले में सजा क्यों नहीं हुई।”
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो 2021 के आंकड़ों से पता चलता है कि अनुसूचित जाति के खिलाफ बलात्कार के अपराध के मामलों में सजा की दर 28.8 प्रतिशत है, तो वहीं अनुसूचित जनजाति में ये दर 30.8 प्रतिशत है।
कुशवाहा ने कहा, ‘देश में सजा की दर देखिए…. निर्भया कांड में न्याय मिलने में सात साल लग गए। शुरुआत में लोगों में काफी गुस्सा था और कैंडल मार्च भी हुआ। लेकिन एक निश्चित समय के बाद सब कुछ बंद हो गया।”
नई दिल्ली में रहने वाली वकील ने बताया, “अगली सुनवाई 2 नवंबर को लखनऊ में है। मुकदमे पर फैसला करने में कम से कम तीन या चार महीने लगेंगे। फिर आरोपी को दंडित किया जाएगा “
राष्ट्रीय राजधानी से 200 किलोमीटर दूर हाथरस में बलात्कार पीड़िता के बड़े भाई ने आंगन में एक तुलसी के पौधे की ओर इशारा किया और कहा, “वह तुलसी मेरी बहन ने लगाई गई थी। बस यही कुछ चीजें हैं जो उसे हमारी यादों में जिंदा बनाए हुए हैं।”
गाँव कनेक्शन की ‘दूसरा बलात्कार’ सीरीज की यह पहली स्टोरी है।