गाँव कनेक्शन: सुनिए Gaon Connection की कहानी नीलेश मिसरा की जुबानी

आपका गाँव कनेक्शन 10वें साल में प्रवेश कर रहा है, इन 9 साल में कई उतार-चढ़ाव आए, आप दर्शक और पाठक के बदौलत हम कई मुश्किलों को पार कर आगे बढ़ते रहे। आपके सहयोग से ही हम ग्रामीण भारत की आवाज हैं। गाँव कनेक्शन के फाउंडर नीलेश मिसरा साझा कर रहे हैं कैसा रहा 9 साल का सफर ..
#Gaon Connection

ग्रामीण भारत की खबरों को आप तक पहुंचाने के लिए कुछ साल पहले चंद लोगों ने मिलकर एक सपना देखा था और गाँव कनेक्शन की शुरुआत की थी।

सरोकार की पत्रकारिता करने वाला आपका गांव कनेक्शन 9 साल का हो गया है। हमारे अथक प्रयासों और आपके प्यार की बदौलत गांव कनेक्शन आज ग्रामीण भारत का सबसे बड़ा मीडिया प्लेटफार्म है। आप दर्शक और पाठक हमेशा से हमारी ताकत रहे हैं। आपके सहयोग से ही हम ग्रामीण भारत की बुलंद आवाज बनने में सफल रहे हैं।

गाँव कनेक्शन के फाउंडर, गीतकार और किस्सागो नीलेश मिसरा बता रहे हैं कैसा आपके गाँव कनेक्शन 9 साल का सफर ..

“साल था 2010 और एक पागलपन भरा सपना, एक पागलपन भरा ख्याल आया कि क्यों न अपनी सारी पत्रकारिता की यात्रा को गाँव की ओर उन्मुख किया जाए, क्यों न गाँव की आवाज एक अखबार के रूप में उठायी जाए।

क्योंकि गाँव की बात मुख्यधारा मीडिया में कही नहीं जाती, दो साल मशक्कत की तैयारी की, अनाड़ी थे, अब भी अनाड़ी ही हैं, लेकिन 2 दिसबंर 2012 को हमने गाँव कनेक्शन अखबार की शुरूआत की।

गाँव कनेक्शन अखबार की प्रति के साथ गाँव कनेक्शन के फाउंडर नीलेश मिसरा और साथी।

एक ऐसा अखबार जो हमने उस वक्त ही कहा था कि भारत के आम लोगों ने बनाया था, न कोई अनुभवी लोग थे, बस एक जज्बा था, एक जुनून था, अच्छी पत्रकारिता, ईमानदारी की पत्रकारिता करने की एक प्रबल इच्छा थी कि अगर रिपोर्टरों का एक अपना अखबार हो, जिस पर कोई दबाव न हो तो वो कैसा होगा।

लेकिन ये पता नहीं था कि यात्रा मुश्किलों भरी है, आसान नहीं है, ये वो समय था, जब गाँवों में इंटरनेट उतनी आसानी से उपलब्ध नहीं था, जितनी आसानी से अब होता है। इसके अलावा हमने अगर हमने अखबार बनाया था तो उसको गाँव तक पहुंचाने की मशक्कत एक बहुत बड़ी समस्या, एक बहुत बड़ी चुनौती थी।

किसी तरह से गलतियां करते-करते, सीखते-समझते हम आगे बढ़े, अपने शुरूआती पहले साल में ही हमने भारत के सबसे बड़ा पत्रकारिता पुरस्कार गोयनका पुरस्कार जीता, उससे हिम्मत मिली, उससे नया जोश मिला और सुदामा की तरह हम जैसे कृष्ण के महल में चले गए थे। वापस उन्हीं गलियारों में उसी मंच पर जहां मेरी पत्रकारिता के दौर के पुराने साथी जो बड़े-बड़े अखबारों में, बड़े-बड़े टीवी चैनल में थे, उनसे कंधे से कंधा मिलाकर पत्रकारिता का सर्वोत्तम पुरस्कार पा रहा था।

गाँव कनेक्शन को तीन लड़कियां स्टोरी के लिए पहली बार रामनाथ गोयनका पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

आगे के साल चुनौतियों भरे थे, पैसे की कमी थी, बिजनेस चलाना आता नहीं था, क्योंकि कभी गाँव कनेक्शन को बिजनेस की तरह देखा नहीं था, लेकिन फिर भी जो ईमानदारी की लक्ष्मण रेखा है, उसे हम सब साथियों ने बचाकर रखा। हमारे पास न तो टैक्नोलॉजी की टीम थी, न ही सेल्स की बस था तो पत्रकारिता करने का जुनून और अच्छी पत्रकारिता की इच्छा थी।

और की आवाज हमने इस तरह से उठायी थी, जिस तरह से पहले किसी ने नहीं उठायी थी। हमारी रिपोर्ट की हुई स्टोरीज को बाकी जगह पर कोट किया जाता था, जब हमारा काम सत्ता की गलियारों में पहुंचता था। जब चीजें बदलती थी, लोगों की मदद होती थी, जो अस्पताल जो बंद थे, वो अधूरी सड़कें, वो बंद आंगनवाड़ी केंद्र हमारी खबरों के बाद काम करने लगते थे। क्योंकि यही तो काम है पत्रकारिता का। फुटवर्क करके जो चीजें नहीं हो रही हैं वो हों, ये संभव करना।

हमने ग्रामीण भारत को आंखों में आंखे मिलाकर देखा, बराबरी से देखा, टॉप डाउन नहीं देखा कि हम बड़े हैं, हम शहरों में हैं और हम ग्रामीण से बात कर रहे हैं जैसे कि हम ज्यादा जान रहे हैं। हमने विनम्रता सीखी और अपनी सारी विनम्रता ग्रामीण भारत तक ले गए। कितना कुछ था सीखने को, गाँव की परंपराएं, गाँव का भोजन, गाँव की खेती, मोटे अनाज-मिलेट्स जिसके पीछे अब दुनिया पागल है, जिसे गाँव में लोग सदियों से खा रहे हैं, गाँव की कला और कारीगरी जो भारत भर में मिलती है जो अब धीरे-धीरे विलुप्त हो रही थी, क्योंकि उनके पास बाजार नहीं था, उनके पास चेहरा नहीं था, उनके पास प्रसिद्धि नहीं थी। उनको कहीं न कहीं ज्यादा लोगों तक पहुंचाने की हमने कोशिश की।

हमने गाँव में रोल मॉडल ढूंढ़े, ऐसे लोग, लड़के-लड़कियां, महिलाएं जो इतनी विषम परिस्थितियों में बड़ी-बड़ी उपलब्धियां हासिल कर रही थीं, या हासिल कर रहे होते थे, जिनकी कहानियां नहीं कही जाती थी, उनमें से कई लोगों को सरकार ने बहादुरी के पुरस्कार दिए, उनको नए सम्मानों से नवाजा।

हम जो गाँव की चुनौतियां थी, उनसे मुंह नहीं छुपाते रहे, उन्हें भी दुनियां के सामने रखा, लेकिन जो उपलब्धियां रहीं, जो गाँव की जीत रही, चाहे वो व्यक्तिगत स्तर पर हो, चाहे किसी गाँव ने किसी कुप्रथा को पीछे छोड़ा हो। शराब को पीछे छोड़ा हो, ड्रग्स को पीछे छोड़ा हो, ऑर्गेनिक खेती को अपनाया हो, वो सारी खबरें भी बढ़चढ़कर हमने रिपोर्ट की।

लेकिन जितना आसान मैं आपको बता रहा हूं, इतना आसान ये था नहीं क्योंकि भारत में जब भी कोई मीडिया संस्थान शुरू करता है तो यह सोचा जाता है कि इसमें पैसा किसका लगा है, उसको चलाता कौन है, इनकी असली मंशा क्या है, क्या इनका कोई राजनीतिक झुकाव है, आसान नहीं था गाँव कनेक्शन के लिए अपने निष्पक्ष रास्ते पर चलना।

हमने लोगों को आमंत्रित किया कि वो हमारी बैलेंस शीट देखें कि गाँव कनेक्शन किसके पैसे से चलता है। क्योंकि गाँव कनेक्शन को बहुत तपस्या से, बहुत त्याग से इतने सालों में हमने जिंदा रखा है।

फिर अखबार का रुख धीरे-धीरे बदला और गाँव में डिजिटल युग या डिजिटल प्लेटफार्म और स्मार्ट फोन पहुंचने लगे तो हमने भी कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने का फैसला किया और हम वीडियो प्रथम संस्था हो गए। हमने वीडियो को अपनाया और नए सिरे से सीखा, क्योंकि मैं अखबार के युग का हूं और हमारे साथी अखबारों से आए हैं और डिजिटल युग में भी गाँव की आवाज लाखों तक कैसे पहुंचा पाए, इसकी लगातार कोशिश हमने की है और फक्र से आप लोगों से मैं कहना चाहता हूं, कि हमने कभी भी वो टोटके नहीं किए, हमने कभी भी वो शॉर्ट कट नहीं अपनाए जो डिजिटल मीडिया में होते हैं।

अखबार का रुख धीरे-धीरे बदला और गाँव में डिजिटल युग या डिजिटल प्लेटफार्म और स्मार्ट फोन पहुंचने लगे तो कदम से कदम मिलाकर आगे बढ़ने का फैसला किया और गाँव कनेक्शन वीडियो प्रथम संस्था हो गई।

क्लिक बेट बहुत बड़ी बीमारी है पत्रकारिता की, हेडलाइन में कुछ लिखना और खबर में कुछ लिखना। लोगों को आकर्षित करने के लिए कुछ भी लिखना, सतही खबरें लिखना, ये हमने कभी नहीं किया, उसके बावजूद आज लाखों लोग हर महीने गाँव कनेक्शन को पढ़ते हैं। उसकी प्रतिबद्धिता, उसकी ईमानदारी को पहचानते हैं, उसकी तारीफ करते हैं।

हमने पत्रकारिता के और भी इनाम जीते, हमारे साथियों ने गाँव कनेक्शन को यश दिलाया, गाँव कनेक्शन का सीना ऊंचा रखा, ईमानदारी के साथ। हमने बहुत से साथियों के साथ गाँव कनेक्शन की शुरूआत की थी, कई साथी अपनी यात्रा में आगे बढ़ गए, उनका भी धन्यवाद करना चाहूंगा, वो बहुत जरूरी हिस्सा हैं हमारी यात्रा का, उन्होंने हमारा साथ दिया और जहां भी आगे गए हमें उम्मीद है कि थोड़ा सा गाँव अपने साथ ले गए होंगे। थोड़ी सी ईमानदारी की पत्रकारिता, जो खुद उन्होंने यहां की थी, वो अपने साथ ले गए होंगे और जहां भी गए होंगे उस जगह को बेहतर बनाया होगा।

अब जब पलटकर देखते हैं तो एक कठिन यात्रा लेकिन जो करना जरूरी था, एक ऐसी यात्रा जो करते हुए हमें बहुत आनंद आया। उम्मीद है कि 9 साल के बाद गाँव कनेक्शन आगे अगले 9 सालों को देखेगा, अगले दशक को देखेगा, तो इसी प्रतिबद्धता के साथ, इसी ईमानदारी के साथ आगे बढ़ता रहेगा।

हम शुरू तो हुए थे, एक गाँव के छोटे से कमरे में, मुझे याद है वो दोपहर जब मैंने सारे साथियों को जो इंटर्न थे और कहा था कि हम आज एक बड़ी यात्रा की शुरुआत कर रहे हैं। सच कहा था मैंने, मैं खुद नहीं जानता था कि जो मैं कह रहा हूं वो होगा, मुश्किलों के बावजूद होगा और अब उस छोटे कमरे से लखनऊ के एक छोर पर गाँव से लगे एक इमारत में गए, वहां एक साल बिताया, आगे और भी दफ्तर बदले।

और अब भारत के 425 जिलों में गाँव कनेक्शन के साथी फैले हुए, हमने Gaon Connection Insight नाम से एक नई कंपनी की शुरूआत की जो देश के अलग-अलग हिस्सों में सर्वे करती है। हमारे सर्वे को हाल ही में भारत की संसद में पेश किया गया।

क्योंकि हम जो पेश करते हैं, हम जो जानकारी बताते हैं वो उतने सशक्त तरीके से और साथी नहीं बता पाते हैं। हम फुटवर्क में विश्वास रखते हैं, पुराने जमाने की पत्रकारिता में विश्वास रखते हैं। हमें उम्मीद है कि डिजिटल की दुनिया में, मेटावर्स की दुनिया में गाँव कनेक्शन अपनी नई मेहनत, नए तरीके से गाँव की आवाज और गाँव से जुड़े लाखों करोड़ों शहरी लोगों की आवाज आप तक पहुंचाता रहेगा। और शहर की जानकारी चाहे वो विज्ञान से जुड़ी हो, चाहे सेहत से, चाहे शिक्षा से गाँव तक पहुंचाता रहेगा।

क्योंकि वो उन लोगों के लिए है, जिन तक वो जानकारी नहीं पहुंच पाती है और ये गाँव से शहर गाँव की आवाज पहुंचना और शहर की जानकारी गाँव में पहुंचना, यही तो है वो कनेक्शन, यही है गाँव कनेक्शन

जुड़े रहिए हमारे साथ और आपके साथी जो गाँव में शायद रुचि रखते हों,वो शायद हमारे बारे में नहीं जानते हों तो उनको बताइए हमारे बारे में हम ईमानदारी से अपनी कोशिश करते रहेंगे।

पिछले एक दशक में 9 सालों में हमने अंग्रेजी में पत्रकारिता शुरू की, हम अखबार से डिजिटल के युग में आए, बहुत जल्द हमारा ऐप आएगा, हमने पत्रकारिता के पुरस्कार जीते, हमने वीडियो में कोशिशें की, वीडियो के माध्यम से गाँव दिखा पाए, हम पॉडकास्ट शुरू करने जा हैं और ये सब संभव हो पाया हे हमारे दर्शकों हमारे पाठकों की वजह से, ये रिश्ता बनाए रखिएगा और आप हमारी आवाज बनिएगा, क्योंकि आपको और हमको हम सबको बनाए रखना होगा ‘अपना गाँव कनेक्शन’

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