एक ऐसी दुर्लभ बीमारी जो सिर्फ़ बच्चों को होती है, जिसका कोई इलाज नहीं, ऐसी बीमारी से हर दिन तड़पते हुए अपने बच्चे को देखना किसी सजा से कम नहीं।
ओडिशा के भुवनेश्वर की रहने वाली सस्मिता पात्र के बेटे को यही दुर्लभ बीमारी है, वो अपनी बच्चे की हालत के बारे में गाँव कनेक्शन से कहती हैं, “आठ साल तक ये भी बाकी बच्चों की तरह स्कूल जाता था, एग्जाम देता था, सब कुछ ठीक था। लेकिन धीरे-धीरे उसका एक पैर मुड़ने लगा, वह ठीक से चल नहीं पा रहा था। फिर उसकी कमर टेढ़ी होने लगी। तब हमें पता चला कि इसे ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) बीमारी है।”
इससे पहले उनका बड़ा बेटा भी इसी बीमारी से पीड़ित था और सिर्फ़ 18 साल की उम्र में हार्ट अटैक से उसकी मौत हो गई थी, अब उनके छोटे बेटे को ये बीमारी है।
ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) एक जेनेटिक बीमारी है, जिसमें मांसपेशियाँ धीरे-धीरे कमजोर हो जाती हैं। यह बीमारी ‘डिस्ट्रोफिन’ नामक एक प्रोटीन की कमी से होती है, जो मांसपेशियों को मजबूत रखने में मदद करता है।

DMD के लक्षण बचपन में ही, आमतौर पर 2 से 3 साल की उम्र में, दिखने लगते हैं। यह बीमारी ज्यादातर लड़कों को होती है, लेकिन कुछ मामलों में लड़कियों को भी हो सकती है।
ओडिशा में इस बीमारी से पीड़ित बच्चों के हक़ के लिए ओडिशा ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी एसोसिएशन (ODMDA) काम कर रहा है, इस संगठन से जुड़े लोगों ने 26 मार्च को भुवनेश्वर में प्रदर्शन किया था। उनकी मांगें थीं: जीन थेरेपी की सुविधा दी जाए। इलाज कम खर्च में हो सके, रिसर्च के लिए फंड दिया जाए, प्रभावित बच्चों को हर महीने 15,000 रुपये की मदद मिले बच्चों की सुरक्षा के लिए 50 लाख रुपये का जीवन बीमा मिले और AIIMS भुवनेश्वर में इलाज के लिए एक सेंटर खोला जाए।
ODMDA के अध्यक्ष विष्णु चरण पाणिग्रही गॉंव कनेक्शन बताते हैं, “हमने सरकार से बार-बार गुहार लगाई लेकिन अभी तक कोई जवाब नहीं आया है। हमने मुख्यमंत्री को चिट्ठी भी दी है। पहले 8 बच्चों को 10 लाख रुपए की मदद मिली थी, लेकिन हमने कहा कि जो बच्चे अब पहचाने जाएंगे, उन्हें भी ये सहायता मिले।”
विष्णु चरण पाणिग्रही का बेटा भी इस बीमारी से पीड़ित है, अपने बेटे के बारे में वो बताते हैं, “मेरा बेटा B.Sc फिजिक्स कर रहा है, ऑनलाइन पढ़ाई करता है और सिर्फ़ परीक्षा देने जा पाता है।”

किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लखनऊ के न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डॉ आर के गर्ग गाँव कनेक्शन से बीमारी के बारे में बताते हैं, “ड्यूशेन मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (DMD) एक दुर्लभ आनुवंशिक रोग है, जो मुख्यतः लड़कों में होता है। यह मांसपेशियों को धीरे-धीरे कमजोर और नष्ट कर देता है। इसका कारण डिस्ट्रोफिन नामक प्रोटीन की कमी है, जो मांसपेशियों को मजबूत बनाए रखता है।”
डॉ गर्ग आगे कहते हैं, “यह रोग मां से बेटे में अनुवांशिक रूप से आता है। Elevidys नामक थेरेपी भारत में अभी उपलब्ध नहीं है लेकिन भविष्य में उपलब्ध होने की उम्मीद है।”
रिसर्च के अनुसार मस्कुलर डिस्ट्रॉफी के 30 से ज्यादा प्रकार होते हैं। इनमें DMD सबसे आम है और मरीज़ों को चलने-फिरने, सीखने और संतुलन बनाए रखने में दिक्कत होती है। ओडिशा सरकार ने 2023 में DMD से पीड़ित हर बच्चे को एक बार के लिए 10 लाख रुपये की आर्थिक सहायता देने की घोषणा की। यह मदद उनके इलाज और फिजियोथेरेपी के लिए है।
भारत में लगभग 5 लाख बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं, और अब तक इसका कोई स्थायी इलाज नहीं है।
विष्णु पाणिग्रही आगे कहते हैं, “अभी तक ओडिशा के सिर्फ़ 190 बच्चों को सरकार से मदद मिली है। लेकिन ओडिशा में कोई सेंटर नहीं है। हमें हैदराबाद या कोलकाता जाना पड़ता है जो बहुत मुश्किल होता है। इसलिए हमने AIIMS के डायरेक्टर को पत्र लिखा है कि हमें टेस्ट की सुविधा ओडिशा में ही मिले। साल में दो बार टेस्ट होते हैं यह देखने के लिए कि कोई सुधार हो रहा है या नहीं।”
वे आगे कहते हैं, “जितने मेडिकल कॉलेज खुल रहे हैं, वहाँ इस बीमारी की जांच और इलाज की सुविधा होनी चाहिए। सरकार को इस पर और रिसर्च करवानी चाहिए ताकि भारत में इलाज का रास्ता निकले।”
राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021 के तहत 50 लाख रुपए की उपचार सीमा ग्रुप 3 बीमारियों (जैसे DMD, SMA) के लिए लचीलापन (flexible) रखी जाएगी। नेशनल पॉलिसी रेयर डिजीज २०२१ के रिपोर्ट के मुताबिक दुचंने मस्कुलर डिस्ट्रॉफी भी रेयर डिजीज में आता है।
दुर्लभ रोगों के लिए राष्ट्रीय नीति के तहत कुल 1,118 मरीज़ लाभान्वित हुए हैं |

20 साल की अवधि में, अगर DMD का इलाज प्रेडनिसोन से किया जाए, तो एक मरीज पर एक करोड़ रुपये ज़्यादा खर्च होते हैं। वहीं अगर डिफ्लैज़कोर्ट से इलाज किया जाए, तो खर्च 20 लाख डॉलर से भी अधिक हो सकता है।
भारत के कई सरकारी अस्पतालों को DMD जैसी दुर्लभ बीमारियों के इलाज के लिए सेंटर ऑफ एक्सीलेंस (CoE) घोषित किया गया है। देशभर में लगभग 5 लाख बच्चे इस बीमारी से प्रभावित हैं और उनकी कहानियाँ भी कुछ ऐसी ही होंगी।
सस्मिता बताती हैं, “मेरे बेटे की देखभाल में हर महीने करीब ₹25,000 खर्च होता है। वह एक सामान्य बच्चे की तरह चल-फिर नहीं सकता। ओडिशा सरकार से हमारी अपील है कि इस बीमारी के लिए अलग अस्पताल बनाए जाएं। हम मिडिल क्लास लोग हैं, इतना खर्च हमारे लिए बहुत मुश्किल है। मेरे पति को भी दो बार हार्ट अटैक आ चुका है।”
सस्मिता आगे कहती हैं, “हमें हर साल एक इंजेक्शन लगवाना पड़ता है जिसकी कीमत 5,000 रुपए है। ये इंजेक्शन कोलकाता में मुफ्त मिलता है लेकिन वहाँ तक जाने में ट्रैवेल का खर्च ही ज़्यादा हो जाता है। बच्चे को लेकर इतनी दूर जाना आसान नहीं है। साथ ही, इन बच्चों को हर दिन फिजियोथेरेपी की ज़रूरत होती है। मेरा बेटा अभी 5वीं कक्षा में पढ़ता है और एग्जाम के समय स्कूल जाता है।”
रिपोर्ट के अनुसार, यह बीमारी मांसपेशियों को कमजोर करती है और इसके लक्षण 2 से 3 साल में दिखने लगते हैं। लगभग 12 साल की उम्र में बच्चे व्हीलचेयर पर आ जाते हैं और 20 साल की उम्र में उनकी समय से पहले मौत हो सकती है। राष्ट्रीय दुर्लभ रोग नीति, 2021 के तहत 50 लाख रुपए की इलाज सीमा ग्रुप 3 बीमारियों (जैसे DMD, SMA, गौचर) के लिए लचीली होगी। यानी ज़रूरत पड़ने पर 50 लाख रुपए से ज़्यादा मदद भी दी जा सकती है।