मॉरीशस के गाँवों में अचानक जश्न के माहौल की ये है बड़ी वजह

मॉरीशस में आम चुनाव की घोषणा से चंद रोज पहले चागोस द्वीप को ब्रिटेन द्वारा मॉरीशस को वापस देने की ख़बर से पूरे देश में जश्न का माहौल है, लेकिन सबसे अधिक ख़ुशी गाँव के लोगों में है। वजह है चागोस से बेघर हुए लोगों में जगी वापसी की उम्मीद।

पोर्ट लुई से करीब 15 किलोमीटर दूर क्रेवे केउ गाँव में 60 साल की जैनी को यकीन नहीं हो रहा है उनकी ज़मीन वापस मिल रही है; चागोस द्वीप की वो ज़मीन जहाँ कभी उनका घर था, परिवार था।

रविवार की दोपहर 70 साल की जैनी को जब उनके पड़ोसी ने इस बात की ख़बर दी तो उनका जवाब था ” कौन सा घर? अब तो यही घर है ये गाँव; ये भी तो अपने देश का ही हिस्सा है, लेकिन खुश हूँ। “

जैनी की तरह पोर्ट लुई के करीब रह रहे ओलिवियर बनसौल्ट भी कभी चागोस द्वीप पर अपने परिवार के साथ रहते थे, लेकिन 1968 में मॉरीशस की आज़ादी के बाद ब्रिटेन ने मॉरीशस  के इस द्वीप समूह को वापस नहीं किया। चागोस के लोगों का आरोप है कि उन्हें धीरे धीरे वहाँ से बेदखल कर दिया गया या कुछ को ब्रिटिश पासपोर्ट पकड़ा दिया गया। लेकिन ओलिवियर बनसौल्ट ने हार नहीं मानी और ना ही ब्रिटिश नागरिकता स्वीकार की। उनकी अगुवाई में अफ्रीका के इस देश में चागोस की वापसी के लिए कई बार धरना प्रदर्शन भी हुए।  

चागोस द्वीपों के आज के बाशिंदे कभी उन वीरान द्वीपों पर काम करने के लिए दूसरे देशों से बंधुआ मज़दूरों के रूप में लाए गए थे; आज उन्ही के वंशज वहाँ हैं। लेकिन जैनी और ओलिवियर जैसे सैकड़ों लोग ऐसे भी हैं, जिन्हे मजबूरन अपना घर छोड़ वहाँ से हटना पड़ा। जब 1814 में पेरिस संधि (जिससे नेपोलियन के युद्धों का अंत हुआ) पर दस्तख़त किए गए, तो मॉरीशस के साथ साथ टोबैगो और सेंट लूसिया जैसे कुछ फ्रांसीसी उपनिवेश, ब्रिटेन के हवाले कर दिए गए। आज़ादी के 50 साल से भी ज़्यादा गुजरने के बाद मॉरीशस को अपने चागोस द्वीप को पाने के लिए लंबी लड़ाई लड़नी पड़ी; वो भी ब्रिटेन से। अब वो आखिरकार वापस मिल रहा है। लेकिन इस वापसी का मायने क्या है और किन शर्तों पर मॉरीशस को ब्रिटेन लौटा रहा है उसे समझना महत्वपूर्ण है।

 ब्रिटेन ने जब मॉरीशस को आज़ाद किया तब चागोस द्वीप समूह को वापस नहीं किया था। वजह है डिएगो गार्सिया का सैन्य अड्डा। पाँच दशकों से अधिक पुराना ये विवाद अब मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच सुलझ गया है। ब्रिटेन इसे लौटाने का तैयार हो गया है। ये विवाद छोटा मोटा नहीं था। मामला संयुक्त राष्ट्र तक गया और कही ना कही भारत की मध्यस्थता भी काफी महत्वपूर्ण रही है। यह समझौता ब्रिटेन की नई लेबर सरकार के लिए पहली बड़ी कूटनीतिक उपलब्धि है साथ ही संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रमुख सैन्य अड्डे की स्थिति तय करता है।

चागोस आर्किपेलागो करीब 60,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है और इसमें 55 से अधिक छोटे द्वीप और रीफ शामिल हैं। मुख्य द्वीपों में डिएगो गार्सिया, अबिंगडन, और सेल्सबरी शामिल हैं। आर्किपेलागो भारतीय महासागर में है और इसकी ज़्यादातर भूमि पर प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध समुद्री जीवन है। चागोस आर्किपेलागो, विशेष रूप से डिएगो गार्सिया, मॉरीशस के उत्तर-पूर्व में लगभग 1,000 किलोमीटर (620 मील) दूर है।  हिंद महासागर में भारत की समुद्री सीमा से सिर्फ 1700 किलोमीटर दूर चागोस आर्किपेलेगो द्वीप समूह है। जो अब मारीशस के संप्रभु भौगोलिक खंड का हिस्सा होगा। वैश्विक मंच पर हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बढ़ते महत्व के लिहाज से चागोस को रणनीतिक तौर पर काफी महत्वपूर्ण मान जाता है। 3 अक्टूबर 2024 को मार्शल को इसे सौंपने को लेकर ब्रिटेन और मॉरीशस में जो समझौता हुआ है उसे समझ लेते हैं।  

समझौते में इस बात पर जोर दिया गया कि यह कदम दोनों देशों के बीच ऐतिहासिक संबंधों को मजबूत करेगा और भारतीय महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और सहयोग को बढ़ावा देगा। इसके साथ ही, चागोसियों की वापसी और उनके अधिकारों की सुरक्षा पर भी ध्यान दिया जायेगा।  इससे ही जुड़े डिएगो गार्सिया द्वीप को लेकर एक और समझौता ब्रिटेन, अमेरिका और मॉरीशस के बीच हुआ है। इसके मुताबिक यहां स्थित ब्रिटेन-अमेरिकी सैन्य अड्डा अगले 99 वर्षों तक बना रहेगा। भारत ने चागोस आर्किपेलागो और डिएगो गार्सिया पर मॉरीशस की संप्रभुता का हमेशा समर्थन किया है। यही नहीं, उपनिवेशवाद के मुद्दे पर मॉरीशस को सैद्धांतिक समर्थन दिया है।

मॉरीशस और भारत के बीच इस बारे में लगातार विमर्श भी होता रहा है। चागोस आर्किपेलागो की संप्रभुता का मुद्दा मॉरीशस के लिए एक ऐतिहासिक और राजनीतिक संघर्ष रहा है। इसे वापस पाना मॉरीशस की राष्ट्रीय पहचान और संप्रभुता को सुदृढ़ करता है। इससे चागोसियों की वापसी का रास्ता भी खुलता है, जिनका पलायन 1960 के दशक में हुआ था। उनके अधिकारों और कल्याण के लिए यह एक महत्वपूर्ण कदम होगा। सबसे बड़ी बात जो दिख रही है वो आर्थिक संभावनाओं से जुड़ी है।  चागोस द्वीपों का विकास और संसाधनों का दोहन मॉरीशस के लिए आर्थिक अवसर पैदा कर सकता है, विशेष रूप से पर्यटन और मछली पालन के क्षेत्र में। ये समझौता मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच संबंधों को मजबूत करने में मदद करेगा, जिससे क्षेत्रीय स्थिरता और सहयोग को बढ़ावा मिलेगा। जहाँ तक क्षेत्रीय सुरक्षा की बात है, भारतीय महासागर क्षेत्र में सुरक्षा और सामरिक स्थिति को लेकर यह समझौता महत्वपूर्ण है, जिससे मॉरीशस की रणनीतिक भूमिका को बढ़ावा मिलेगा। चागोस को वापस पाना मॉरीशस के लिए एक व्यापक राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक महत्व रखता है।

मॉरीशस ने इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस में दावा किया था कि इस द्वीप समूह पर 18वीं शताब्दी से ही उसका अधिकार था, लेकिन 1965 में अंतरराष्ट्रीय मानकों का उल्लंघन कर इसे ब्रिटेन ने ले लिया। साल 2019 में संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष अदालत ने कहा है कि ब्रिटेन को हिंद महासागर में स्थित चागोस द्वीप पर अपना नियंत्रण जल्द से जल्द ख़त्म कर देना चाहिए।  लेकिन बात बनी नहीं, कई बैठकें हुई; उसे लौटने पर सहमति अब हुई। कोर्ट ने कहा था कि चागोस द्वीप को मॉरीशस से वैध तरीके से अलग नहीं किया गया। मॉरीशस में अगले महीने आम चुनाव होने हैं। ऐसे में चागोस का वापस मिलना मॉरीशस की मौजूदा सरकार के लिए बड़ी उपलब्धि मानी जा सकती है। प्रवासी भारतीयों के संगठन ‘गोपियों’ के अंतरराष्ट्रीय उपाध्यक्ष विनय चंद्र दसोय का मानना है कि चागोस को वापस पाना मॉरीशस के लिए और भी कई कारणों से महत्वपूर्ण है। यह कदम मॉरीशस की राजनीतिक स्थिरता को बढ़ा सकता है, क्योंकि यह एक राष्ट्रीय मुद्दे के समाधान की दिशा में एक सकारात्मक संकेत देगा। साथ ही चागोसियों की सांस्कृतिक पहचान और विरासत को पुनर्स्थापित करने का यह एक अवसर है, जिससे उनकी संस्कृति को संरक्षित किया जा सकेगा। चागोस के मामले में अंतरराष्ट्रीय समुदाय से समर्थन प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जो अन्य देशों के साथ संबंधों को मजबूत करेगा।

चागोस द्वीपों का विकास करने से मॉरीशस को पर्यावरणीय संरक्षण और टिकाऊ विकास के दिशा में महत्वपूर्ण लाभ मिल सकते हैं। चागोस द्वीपों का समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र काफी समृद्ध है। इसे संरक्षित करने से न केवल प्राकृतिक संतुलन बनाए रखा जा सकेगा, बल्कि वैज्ञानिक अनुसंधान और संरक्षण के लिए भी यह एक महत्वपूर्ण क्षेत्र होगा। इन सभी कारणों से, चागोस का दोबारा अधिग्रहण मॉरीशस के लिए एक ऐतिहासिक और सामरिक कदम होगा, जो उसके भविष्य की दिशा को प्रभावित करेगा।

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