1 फरवरी को वित्त मंत्री ने 2022-23 के वित्त विधेयक को संसद में पेश किया। बजट भाषण में कहा कि 2021-22 के रबी में गेहूं व खरीफ़ में धान की कुल मिलाकर न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी एमएसपी पर सरकारी खरीद 1208 लाख टन होगी। इस खरीद से 163 लाख किसान लाभान्वित होंगे और उनके खातों में 2.37 लाख करोड़ रुपए का सीधा भुगतान होगा।
किसान आंदोलन की एक प्रमुख मांग एमएसपी की वैधानिक गारंटी देने की है लेकिन इस विषय में बजट भाषण में कुछ भी नहीं कहा गया है। इसके विपरीत एमएसपी पर खरीद का लक्ष्य पिछले वर्ष के मुकाबले कम कर दिया गया है। बजट भाषण में रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती, जीरो-बजट खेती को प्रोत्साहन देने की बात भी कही गई। 2023 को ‘मोटा अनाज वर्ष’ के रूप में मनाने का ज़िक्र भी किया। तिलहन उत्पादन बढ़ाने व खाद्य तेलों की आयात निर्भरता कम करने के लिए सम्पूर्ण नीति बनाने की घोषणा भी की गई। कृषि अनुसंधान एवं विस्तार सेवाओं को भी डिजिटल, उच्च तकनीक, ड्रोन आदि के माध्यम से किसानों तक ले जाया जाएगा।
आगामी वित्त वर्ष 2022-23 का कुल बजट अनुमान लगभग 39.45 लाख करोड़ रुपये है जो पिछले वर्ष के 37.70 लाख करोड़ रुपये से लगभग 4.6 प्रतिशत ज्यादा है। पिछले वर्ष कृषि मंत्रालय का बजट 118,294 करोड़ रुपये था, जिसे मामूली सा बढ़ाकर 124,000 करोड़ रुपये किया है। इसी मंत्रालय के कृषि अनुसंधान एवं शिक्षा विभाग का बजट पिछले साल 8,513 करोड़ रुपये था जिसमें इस वर्ष कोई बढ़ोतरी नहीं की गई है। भविष्य में पर्यावरण बदलाव से होने वाले फसलों के नुकसान से बचने, कृषि उत्पादकता बढ़ाने, खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने और किसानों की आय बढ़ाने के लिए कृषि अनुसंधान के बजट में भारी वृद्धि करनी चाहिए थी।
कृषि मंत्रालय के उपरोक्त बजट में सबसे बड़ी योजना प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) में पिछले साल के 67,500 करोड़ रुपये को जरा-सा बढ़ाकर 68,000 करोड़ रुपये किया गया है। खेती की बढ़ती लागत को देखते हुए इस योजना के अंतर्गत दी जाने वाली राशि को 6,000 रुपये से बढ़ाकर 12,000 रुपये प्रति किसान प्रति वर्ष किया जाना चाहिए था। यह राशि दिसंबर 2018 में इस योजना की शुरुआत से ही इसी स्तर पर बनी हुई है, अतः इसे महंगाई दर को देखते हुए अवश्य बढ़ाया जाना चाहिए। इससे ग्रामीण क्षेत्रों में मांग बढ़ती, अर्थव्यवस्था तेज़ होती, रोजगार और सरकार का टैक्स भी बढ़ता।
ग्रामीण विकास मंत्रालय का बजट पिछले साल के 155,042 करोड़ रुपये से घटाकर 138,203 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसका मूल कारण ग्रामीण रोजगार उपलब्ध कराने की मनरेगा योजना का बजट 98,000 करोड़ रुपये से घटाकर 73,000 करोड़ रुपये किया गया है। यह एक अच्छी योजना है इसका बजट बढ़ाकर इसमें कृषि कार्यों को भी जोड़ना चाहिए ताकि मनरेगा मज़दूरों के माध्यम से किसानों की कृषि-श्रम लागत कम हो सके और इसमें गैर-उत्पादक कार्यों में होने वाले अपव्यय को भी रोका जा सके।
प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना का बजट 19,000 करोड़ रुपये, तो प्रधानमंत्री आवास योजना का बजट भी 48,000 करोड़ रुपये प्रस्तावित है। ग्रामीण भारत के लिए ये दोनों योजनाएं अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। इनसे ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार बढ़ता है, आधारभूत संरचना का विकास होता है और पक्के मकान बनने से ग्रामीणों का जीवनस्तर सुधरता है, अतः इनके बजट को और बढ़ाने की आवश्यकता है।
रसायन और उर्वरक मंत्रालय द्वारा कृषि में इस्तेमाल होने वाले रासायनिक उर्वरकों के लिए दी जाने वाली सब्सिडी को पिछले वर्ष के 140,122 करोड़ रुपये से घटाकर 105,222 करोड़ रुपये कर दिया गया है। इसके पीछे सरकारी व्यय कम करने के साथ-साथ ज़ीरो बजट खेती, जैविक खेती और परंपरागत कृषि को प्रोत्साहन देने की सोच है। हमें उर्वरक सब्सिडी को तर्कसंगत बनाना होगा। नाइट्रोजन युक्त यूरिया खाद का ज़रूरत से ज्यादा उपयोग हो रहा है क्योंकि अन्य उर्वरक यूरिया से तीन-चार गुना महंगे पड़ते हैं। इससे ज़मीन में एनपीके तत्वों का अनुपात बहुत असंतुलित हो रहा है। अत्यधिक यूरिया उपयोग से ज़मीन व पर्यावरण दोनों का क्षरण हो रहा है।
इस वर्ष यूरिया सब्सिडी 63,222 करोड़ रुपये प्रस्तावित है जबकि पोषक तत्व आधारित सब्सिडी पिछले साल के 64,192 करोड़ रुपये से घटाकर 42,000 करोड़ रुपये कर दी गई है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कीमतें बढ़ने के कारण सभी रासायनिक उर्वरक बहुत महंगे हो गए हैं। पोषक तत्व आधारित सब्सिडी और बढ़ानी चाहिए जिससे फॉस्फोरस, पोटाश युक्त व अन्य खाद भी यूरिया की तरह सस्ते हो सकें जिससे इनका उपयोग बढ़े, और यूरिया का उपयोग कम हो। उर्वरक सब्सिडी को भी सीधे किसानों के खातों में नकद प्रति एकड़ के हिसाब से भेजा जाए तो इस सब्सिडी में भारी बचत भी होगी और खाद का अत्यधिक व असंतुलित मात्रा में दुरुपयोग भी नहीं होगा।
मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का बजट 4,120 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 6,036 करोड़ रुपये कर दिया गया है। पशुपालन और दुग्ध उत्पादन की कृषि जीडीपी में लगभग 30 प्रतिशत हिस्सेदारी है। मत्स्य उत्पादन, दुग्ध प्रसंस्करण और इन क्षेत्रों में मूल्य-संवर्द्धित उत्पादों की मांग व निर्यात की संभावनाओं को देखते हुए यह बहुत कम आवंटन है। इसे बढ़ाकर कम से कम 20,000 करोड़ रुपये करना चाहिए।
ग्रामीण क्षेत्र में अमूल, इफको जैसी किसानों की अपनी सहकारी संस्थाएं काम कर रही हैं। इस बजट में सरकार ने सहकारी संस्थाओं पर अब तक लगने वाले वैकल्पिक न्यूनतम कर की दर को 18.5 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया है जैसा कि घरेलू कंपनियों पर लगता रहा है। इस विसंगति को इस बजट में दूर कर दिया गया है जो स्वागत योग्य है।
वित्त मंत्री के बजट भाषण में पेश संशोधित अनुमान के अनुसार किसानों और ग्रामीण भारत से सरोकार रखने वाले मंत्रालयों- कृषि मंत्रालय, ग्रामीण विकास मंत्रालय, रसायन और उर्वरक मंत्रालय के उर्वरक विभाग तथा मत्स्यपालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय का वित्त वर्ष 2021-22 का संयुक्त बजट 426,672 करोड़ रुपये था जो उक्त वर्ष के सम्पूर्ण बजट का लगभग 11.3 प्रतिशत था। आगामी वर्ष में उपरोक्त मंत्रालयों का कुल बजट 382,014 करोड़ रुपये है जो 2022-23 के सम्पूर्ण बजट का 9.7% प्रतिशत है। मौद्रिक रूप में उपरोक्त मंत्रालयों का इस वर्ष का बजट पिछले साल के मुकाबले भी 10.5 प्रतिशत कम है।
ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में दी जाने वाली खाद्य सब्सिडी को भी पिछले साल के 286,469 करोड़ रुपये से घटाकर 206,831 करोड़ रुपये करने का प्रस्ताव है। आर्थिक सर्वेक्षण में कोरोना के बावजूद कृषि क्षेत्र की विकास दर 2020-21 में 3.6% और 2021-22 में 3.9% होने की प्रशंसा की गई थी। कृषि विकास दर बढ़ाने के बावजूद कृषि क्षेत्र का बजट घटाना तो किसानों के साथ अन्याय है। क्या यह किसान आंदोलन की सज़ा है?
(लेखक किसान शक्ति संघ के अध्यक्ष हैं, ये उनके निजी विचार हैं।)