क्या आप जानते हैं कि पशुओं में उपयोग होने वाली एंटीबायोटिक दवाएं भविष्य में और भी अधिक बढ़ सकती हैं?
खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) ने एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि अगर जल्द कदम नहीं उठाए गए तो 2040 तक पशुओं में एंटीबायोटिक का उपयोग 30 फीसदी तक बढ़ सकता है।
यह अनुमान वर्ष 2019 के आंकड़ों के आधार पर लगाया गया है, जब वैश्विक स्तर पर पशुओं में करीब 110,777 टन एंटीबायोटिक का इस्तेमाल हुआ था। रिपोर्ट के अनुसार, यह मात्रा 2040 तक बढ़कर 143,481 टन तक पहुँच सकती है।
क्यों हो रहा है एंटीबायोटिक का अधिक उपयोग?
पशुपालन में एंटीबायोटिक का उपयोग बीमारी से बचाव और तेज़ वृद्धि के लिए किया जाता है। लेकिन इस अत्यधिक इस्तेमाल के चलते कई खतरनाक बैक्टीरिया एंटीबायोटिक के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता (रज़िस्टेंस) विकसित कर लेते हैं। इससे न केवल जानवरों की सेहत पर असर पड़ता है, बल्कि इन दवाओं के ज़रिए इंसानों तक भी यह जोखिम पहुँच सकता है।
हल भी है, अगर ठोस कदम उठाए जाएं
हालांकि जर्नल नेचर कम्युनिकेशंस में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार अभी भी हालात सुधारे जा सकते हैं। अध्ययन में बताया गया है कि अगर पशुधन प्रबंधन और उत्पादकता में सुधार लाया जाए, तो 2040 तक एंटीबायोटिक के उपयोग को 57% तक कम किया जा सकता है। इसका मतलब है कि कुल एंटीबायोटिक उपयोग घटकर 62,000 टन तक रह सकता है — जो आज के स्तर से भी काफी कम है।
यह कमी संभव है अगर:
- पशुपालन में आधुनिक तकनीक और बेहतर देखभाल को बढ़ावा दिया जाए,
- स्वच्छता और टीकाकरण के जरिए जानवरों को बीमार होने से रोका जाए,
- जरूरत से ज्यादा एंटीबायोटिक देने से परहेज़ किया जाए।

अकेले पशुओं की संख्या कम करने से नहीं मिलेगा फायदा
रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि सिर्फ पशुओं की संख्या घटाने से एंटीबायोटिक उपयोग में कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा। असली समाधान है — दक्षता में सुधार।
यानी कम पशुओं से अधिक उत्पादन लेना, और कम दवाइयों का इस्तेमाल कर उनका स्वास्थ्य बनाए रखना।
एशिया सबसे बड़ा उपयोगकर्ता
अध्ययन के अनुसार:
- एशिया-प्रशांत क्षेत्र सबसे अधिक (64.6%) एंटीबायोटिक का उपयोग करता है।
- दक्षिण अमेरिका 19% के साथ दूसरे स्थान पर है।
- इसके मुकाबले अफ्रीका (5.7%), उत्तरी अमेरिका (5.5%) और यूरोप (5.2%) का उपयोग काफी कम है।
इन आंकड़ों से साफ है कि एशिया जैसे क्षेत्रों में जागरूकता और नीति-निर्माण की अधिक जरूरत है।
एफएओ के पशुधन अर्थशास्त्री और अध्ययन के प्रमुख शोधकर्ता एलेजांद्रो अकोस्टा के अनुसार, “अगर हम समान या कम संख्या के पशुओं से अधिक उत्पादन कर पाएं, तो न केवल एंटीबायोटिक का उपयोग घटेगा, बल्कि वैश्विक खाद्य सुरक्षा में भी सुधार होगा।”
यह अध्ययन ज्यूरिख विश्वविद्यालय के प्रोफेसर थॉमस वान बॉकल और एफएओ के कई विशेषज्ञों द्वारा मिलकर किया गया है। इसमें एक नई गणना पद्धति Livestock Biomass Conversion (LBC) का उपयोग किया गया है, जो पहले की तुलना में पशुधन के भार और संरचना का अधिक सटीक अनुमान लगाता है।
क्या कहती है दुनिया?
संयुक्त राष्ट्र के 79वें महासभा में दुनिया भर की सरकारों ने एंटीबायोटिक उपयोग को 2030 तक 30-50% तक घटाने का संकल्प लिया है। मस्कट घोषणापत्र के तहत 47 देशों ने कृषि-पोषण प्रणाली में एंटीबायोटिक की खपत कम करने की प्रतिबद्धता जताई है। लेकिन यह लक्ष्य तभी हासिल किया जा सकता है, जब नीति, तकनीक और प्रशिक्षण तीनों पर समान रूप से काम हो।
भारत में क्या है स्थिति?
भारत, जहां पशुपालन ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ है, वहां इस मुद्दे की गंभीरता और भी ज्यादा है। इंडियन काउंसिल ऑफ एग्रीकल्चरल रिसर्च (ICAR) और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एंथ्रेक्स एंड एनिमल हेल्थ (NIAH) के 2022 के एक अध्ययन में पाया गया कि:
- देश के दुग्ध उत्पादन क्षेत्रों में गायों और भैंसों को दी जाने वाली दवाओं में से 70% से ज्यादा एंटीबायोटिक हैं।
- कई बार बिना किसी रोग निदान के एंटीबायोटिक दी जाती हैं, जिससे रेजिस्टेंस (प्रतिरोधकता) बढ़ती है।
- मुर्गी पालन उद्योग में, खासकर ब्रॉयलर फार्मों में, एंटीबायोटिक का उपयोग वजन बढ़ाने और संक्रमण से बचाव के लिए आम बात है।
क्या है खतरा?
एंटीबायोटिक के अत्यधिक उपयोग से पशुओं में बैक्टीरिया धीरे-धीरे प्रतिरोधक बन जाते हैं।
यह प्रतिरोधकता जब इंसानों तक पहुंचती है तो सामान्य बीमारियों के इलाज के लिए दी जाने वाली दवाएं भी असरहीन हो जाती हैं।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) इसे “Silent Pandemic” कह चुका है।
भारत में प्रति वर्ष 58,000 से अधिक नवजात शिशुओं की मौत एंटीबायोटिक रेजिस्टेंस से जुड़ी संक्रमणों के कारण होती है (The Lancet, 2016)। यह आंकड़ा दर्शाता है कि यह सिर्फ पशुओं का नहीं, इंसानों का भी संकट है।
समाधान क्या हो सकता है?
- पशुपालकों को शिक्षित करना: किस बीमारी में कौन सी दवा कितनी मात्रा में देनी है, यह जानकारी ज़मीनी स्तर तक पहुंचाना जरूरी है।
- एंटीबायोटिक पर निगरानी: पशु चिकित्सा क्षेत्र में भी ड्रग ट्रैकिंग और रेसिड्यू निगरानी प्रणाली विकसित करनी चाहिए।
- देशी और वैकल्पिक उपचारों को बढ़ावा: आयुर्वेदिक पशु चिकित्सा या फाइटोथैरेपी जैसे तरीकों का उपयोग बढ़ाया जा सकता है।
- ‘वन हेल्थ’ नीति का पालन: भारत सरकार ने 2021 में ‘वन हेल्थ मिशन’ की शुरुआत की, जो इंसान, पशु और पर्यावरण की सेहत को एक साथ जोड़कर देखता है।