मैं नहाने गई और मैंने बाल धोने के लिए शैंपू की बजाय फेसवॉश सिर पर लगा लिया।
मैं स्कूटी की चाबी हाथ में लेकर घर से निकली और ये सोचकर वापस घर लौट आई कि मैंने चाबी तो ली ही नहीं।
मैं कुछ सामान लेने कमरे में गई और कमरे तक पहुंचते हुए ये भूल गई कि मैं कमरे में क्या लेने जा रही थी।
मैंने कल जो बात कही थी बहुत पुख्ता तरीके से, आज मुझे वो बात याद नहीं आ रही है।
इन दिनों ये मैं हूं। एक आठ महीने की नन्ही सी परी की मां’
‘मैं मां हूं’ कहना आजकल मेरा फेवरेट डायलॉग बन चुका है, लेकिन मां (mother) बनने और होने के बाद से मेरी जिंदगी भी बिलकुल बदल चुकी है। मैं जानती हूं कि ये मेरी ही नहीं, हर उस लड़की की जिंदगी में आने वाला बदलाव है, जो मां बनती है। हालांकि इसे समझने में मुझे भी कुछ वक्त लगा है। मां बनने के बाद, खासतौर पर पहली बार मां बनने के बाद आप इतना कुछ नया एक साथ महसूस करते हैं कि उस बदलाव के साथ सहज होने में काफी वक्त लग जाता है। और यही वो वक्त है, जब आपके दिमाग में हार्मोन्स की एक अलग ही उथल-पुथल चल रही होती है। मुझे भी इस उथल-पुथल के बारे में इंटरनेट पर काफी कुछ पढ़ने के बाद पता चला। ‘डियर मां’ की आठवीं किस्त में मां के दिमाग में मचने वाली उथल-पुथल की वो कहानी, जिसे लोग नजरअंदाज करते हैं या फिर समझना ही नहीं चाहते।
यूनिवर्सिटी ऑफ ब्रिटिश कोलंबिया की एक रिसर्च बताती हैं कि मां बनने के बाद एक महिला के मस्तिष्क में काफी परिवर्तन होते हैं। खासतौर पर संज्ञानात्मक क्रियाओं यानी सोचने-समझने और महसूस करने की शक्ति व क्षमता पर मां बनने के बाद काफी फर्क पड़ता है। वहीं नेचर न्यूरोसाइंस में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि गर्भावस्था और मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में कई जगह ग्रे मैटर की मात्रा कम हो जाती है। यह बदलाव कम से कम दो साल तक रहता है। इनके अलावा भी मां बनने के बाद महिलाओं के मस्तिष्क में होने वाले परिवर्तनों को लेकर कई शोध और अध्ययन किए गए हैं। इन्हीं अध्ययनों का नतीजा है ‘मॉमी ब्रेन’ नामक शब्द, जो मां के मस्तिष्क में होने वाले बदलावों को संक्षेप में जाहिर करता है। दरअसल गर्भावस्था और मां बनने के बाद में याददाश्त में कमी बहुत ही आम बात है। मेडिकल साइंस की भाषा में जहां यादाश्त की कमी को एमनेसिया कहा जाता है, वहीं जब एक नई मां की यादाश्त कमजोर होने लगती है, तब इसे मॉमनेसिया कहा जाता है।
यानी इन दिनों मैं मॉमनेसिया का शिकार हूं, अच्छी बात ये है कि मैं ये स्टोरी लिखना और इसे आप तक पहुंचाना नहीं भूली हूं 🙂
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क्या होता है ग्रे मैटर
मैंने ये तो बता दिया कि ग्रे मैटर की मात्रा कम होने लगती है। अब आप ये जानिए कि आखिर ये ग्रे मैटर होता क्या है। ग्रे-मैटर हमारे दिमाग के सेंट्रल नर्वस सिस्टम का अहम हिस्सा होता है और मसल्स कंट्रोल, महसूस करना जैसे देखना, सुनना, यादाश्त जैसी क्रिया और प्रक्रिया इसी की वजह से होती हैं। जब ग्रे मैटर कम होता है, तब हम चीजें और बातें भूलने लगते हैं। हमें किसी भी एक जगह ध्यान केंद्रित करने में परेशानी होती है। हमारा मूड भी बहुत तेजी से बदलता है। ये सब लक्षण आपने गर्भवती महिलाओं और नई मांओं में देखे ही होंगे। हालांकि रिसर्च ये भी बताती है कि ग्रे मैटर में होने वाले ये बदलाव मां और बच्चे के बीच गहरी और भावनात्मक बॉन्डिंग के लिए काफी अच्छे होते हैं।
‘मॉमी ब्रेन’ की कहानी
अब ये बात मानने से इनकार नहीं किया जा सकता कि गर्भवती महिलाओं या नई मांओं के शरीर में बदलाव के साथ ही उनके दिमाग में भी बदलाव होते हैं। ये बदलाव मां बनने के बाद भी कुछ समय तक जारी रहते हैं। एक नई रिसर्च के मुताबिक जो महिलाएं गर्भवती होती हैं उनके दिमाग की संरचना बदलती है। रिसर्च के मुताबिक इस बदलाव की वजह से ही महिलाएं अपने नवजात बच्चे की केयर करती हैं और उनके बीच एक खास तरह का रिश्ता बनता है।
वैसे भी मां बनने के बाद आपकी कई रातें बिना सोए बीतती हैं। आपको बिना कहे, बच्चे की हर जरूरत पूरी करने के बारे में सोचना होता है। बहुत कुछ ऐसा सीखना औऱ समझना होता है जिसके बारे में पहले कभी आपने सोचा तक नहीं था। ऐसे में दिमाग प्राकृतिक रूप से भी एक अलग तरह की थकावट से भर जाता है। हालांकि दिमाग में होने वाले परिवर्तन इस थकावट से कहीं ज्यादा अलग और बड़े हैं, जहां से जन्म होता है मॉमी ब्रेन (mommy brain) का।
ये एक प्रकार न्यूरो बायोलॉजिकल बदलाव (neuro biological) है, जो महिलाओं के दिमाग में मां बनने के दौरान होता है। इससे एक तरफ जहां यादाश्त प्रभावित होती है, वहीं दूसरी तरफ ये बदलाव आपको अपने बच्चे से बेहतर तरीके से कनेक्ट करने में मदद करता है। मसलन आपने अक्सर नई मांओं को ज्यादा इमोशनल होते, हर छोटी बात पर रोते और अपने बच्चे के बारे में कुछ ज्यादा हो सोचते और परेशान होते देखा होगा। ये सब मॉमी ब्रेन की वजह से होता है, जो कि एकदम नॉर्मल है और इसमें चिंता करने की कोई बात नहीं है। ये सब इसलिए है कि ताकि आप अपने नन्हे से बच्चे की खूब सारी केयर कर सकें।
‘मॉमी ब्रेन’ से अलग है पोस्टपार्टम डिप्रेशन
अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ की मानें तो हर 4 में से 1 महिला डिलीवरी के बाद तनाव का शिकार हो जाती हैं और इसे ही पोस्टपार्टम डिप्रेशन (postpartum depression) कहा जाता है। मैंने इस बारे में पहली बार अपनी एक सहेली से सुना था। वो इन दिनों अमेरिका में रहती है और उसने वहीं एक बच्चे को भी जन्म दिया था। बच्चे के जन्म के बाद जब मेरी उससे बात हुई, तब उसने बताया कि वो और बच्चा दोनों ठीक हैं। डिलिवरी भी नॉर्मल हुई है, लेकिन चेकअप के दौरान हुए एक सवाल-जवाब वाले टेस्ट में सामने आया है कि वो डिप्रेशन की शिकार है।
मां बनने के बाद होने वाले ऐसे किसी चेकअप के बारे में मैंने पहले कभी नहीं सुना था। शायद हमारे यहां ऐसा बहुतायत नहीं किया जाता है, लेकिन अब मैं ये पूरे विश्वास के साथ कह सकती हूं कि ऐसा किया जाना चाहिए। हमारे यहां मां बनने के बाद औरत के शारीरिक परिवर्तनों पर तो ध्यान दिया जाता है, लेकिन वह मानसिक रूप से कैसा महसूस कर रही है, इस बारे में बात किया जाना भी जरूरी नहीं समझा जाता। डिलिवरी के बाद होने वाले हार्मोनल परिवर्तन मां के व्यवहार से लेकर उसके सोचने के तरीके तक को बदल देते हैं, ऐसे में अगर वो डिप्रेशन की शिकार होती है, तो इसे पोस्टपार्टम डिप्रेशन कहा जाता है और परिवार द्वारा इस स्थिति को समझा जाना व महिला का सहयोग किया जाना बहुत जरूरी है।
भारत की 22 प्रतिशत मांएं होती हैं डिप्रेशन की शिकार
साल 2018 में सामने आई विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 22 प्रतिशत से ज्यादा माएं पोस्टपार्टम डिप्रेशन (Depression) की शिकार होती हैं।
ऐसे में हमारे देश को मातृ स्वास्थ्य देखभाल को लेकर और भी ज्यादा सतर्क होने की जरूरत सामने आती है। जब इस तरह की समस्याओं पर ध्यान नहीं दिया जाता है, तब मां और बच्चे दोनों की सेहत पर नकारात्मक असर पड़ता है। इस शोध के नतीजे 20,043 महिलाओं पर किए गए 38 अध्ययनों पर आधारित हैं।
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सिर्फ इतना पूछ लीजिए- कैसा महसूस कर रही हो?
गर्भावस्था से लेकर डिलिवरी के बाद तक महिलाओं की डाइट यानी उनके खानपान पर तो बात की जाती है। ज्यादातर परिवारों में इस पर ध्यान भी दिया जाता है, लेकिन कम ही ऐसे परिवार होंगे हमारे देश में जहां नई मां से ये पूछा जाए कि वो इन बदलावों को लेकर कैसा महसूस कर रही है, कितनी सहज है, उसे कोई दिकक्त तो नहीं आ रही, उसे खुश करने के लिए या उसका मूड अच्छा करने के लिए क्या किया जा सकता है? इस सबके बारे में सोचना भी कुछ लोगों को अजीब लगता है। उन्हें लगता है कि इसकी क्या जरूरत है? लेकिन अगर आप ये आर्टिकल पढ़ रहे हैं, तो ये समझ लीजिए कि इसका लिखा जाना ही इस बात की जरूरत की तरफ इशारा करता है। मां और बच्चे की देखभाल सिर्फ शारीरिक रूप से नहीं, मानसिक देखभाल के तौर पर भी जरूरी है।
डिलिवरी के बाद जब मैं डिस्चार्ज के लिए तैयार हो रही थी, तब मेरी डॉक्टर ना सिर्फ मुझे बल्कि मेरी सास से भी ये बात कही थी- ‘नई मां के लिए जितना जरूरी है बच्चे का ध्यान रखना, उतना ही जरूरी है अपनी अच्छी देखभाल की तरफ ध्यान देना। जब मां स्वस्थ और खुश रहेगी, तभी वो एक स्वस्थ और खुशहाल बचपन की तरफ अपने बच्चे को ले जा पाएगी।’
उस वक्त डॉक्टर शंपा झा की कही ये बात मैं इतनी गहराई से नहीं समझी थी, मगर अब समझती हूं और आपसे भी इस आर्टिकल के जरिए यही बात दोहराना चाहती हूं।
ऐसे करें खुद अपनी मदद
– बच्चे की देखभाल पूरा दिन इतना व्यस्त बना देती है कि खाने-पीने-नहाने-सोने किसी भी चीज के लिए समय निकालना एक चुनौती बन जाता है, मगर कुछ भी करके ये समय निकालिए। अपने लिए कम से कम 15 मिनट जरूर निकालिए।
– अगर भूलने की समस्या काफी ज्यादा है, तो जरूरी बातों और चीजों को लिखना शुरू कर दीजिए।
– दिनचर्या को नियमित करने की कोशिश कीजिए।
– रात में नींद पूरी नहीं हो पाती है, तो दिन में सोने का समय जरूर निकालिए। नींद ना पूरी होने से भी चिड़चिड़ापन आता है।
– खुली हवा में सैर या योगा करने से भी तनाव कम होता है।
– सारा काम खुद ही करने का बीड़ा ना उठाएं, अपनी समस्या बताकर परिवार के सदस्यों से मदद करने को कहें।
– मन में कुछ उधेड़बुन या तनाव हो, तो अपने करीबियों से बात जरूर करें।
आपका मां होना आपकी सबसे बड़ी ताकत है और सबसे बड़ी खुशी भी, इसे हर पल सेलिब्रेट करें।
परिचय- लेखिका, दिल्ली में रहने वाली पत्रकार हैं। उपरोक्त उनके निजी विचार और अनुभव हैं
डियर मां के बाकी लेख यहां पढ़े-
पार्ट 1- ‘बच्चा नहीं हो रहा, जरूर कुछ कमी होगी’ इस ताने के पीछे और आगे है एक लंबी कहानी’
पार्ट 2- तब गेहूं और जौ पर होता था प्रेगनेंसी टेस्ट, लंबा है मां बनने के फैसले से जुड़ी आजादी का इतिहास
पार्ट3- गर्भावस्था के 9 महीने: महिलाओं को अगर इन 7 हार्मोन के बारे में पता हो प्रेगनेंसी आसान हो जाती है
पार्ट 4-रिसर्च कहती हैं प्रेगनेंसी में पति का साथ बदल देता है हेल्थ रिपोर्ट, क्या आप ‘वो’ पति बनना चाहेंगे?
पार्ट 5- मां बनने की खुशियों पर ग्रहण हैं प्रेग्नेंसी कॉम्प्लीकेशंस, हिम्मत और हौसले से तय करें ये सफर
पार्ट 6- बच्चा सिजेरियन डिलीवरी से हो या नॉर्मल? जवाब के लिए 521 साल पहले की इस घटना को पढ़िए और समझिए भी
पार्ट 7-मां के स्तनों में तैयार होती है वो दवाई जो किसी मेडिकल स्टोर पर नहीं मिलती, विस्तार से समझिए