लखनऊ (उत्तर प्रदेश)। उत्तर प्रदेश सरकार ने साल 2021-22 में 15 जून तक 53.80 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है जो एक रिकॉर्ड है। एमएसपी पर हुई ये खरीद पिछले साल से 33 फीसदी और 2016-17 में हुई खरीद से 7 गुना ज्यादा ( 700 फीसदी) ज्यादा है। हालांकि प्रदेश के कुल गेहूं उत्पादन के मुकाबले ये खरीद महज 14 फीसदी है। जबकि पंजाब-हरियाणा जैसे राज्य अपने कुल उत्पादन का 70-80 फीसदी खरीद करते हैं।
उत्तर प्रदेश, देश में सबसे ज्यादा गेहूं पैदा करने वाला राज्य है, देश के कुल उत्पादन का लगभग एक तिहाई गेहूं यूपी में पैदा होता है लेकिन जब न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद और किसानों को मिलने वाले लाभ की बात आती है तो आंकड़े बदल जाते हैं और यूपी कई पायदान नीचे चला जाता है।
केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय के 15 जून तक के आंकड़ों के अनुसार पूरे देश से 428.77 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद हुई है। इसमें 132.1 लाख मीट्रिक टन के साथ पंजाब पहले नंबर पर है जबकि 54.03 एलएमटी के साथ यूपी चौथे नंबर है। कम गेहूं उत्पादन करने वाले मध्य प्रदेश और हरियाणा भी उत्तर प्रदेश से आगे हैं। वर्ष 2019-20 में पंजाब में 182.07 लाख मीट्रिक टन गेहूं का उत्पादन हुआ, जिसके मुकाबले रबी खरीद सीजन 2020-21 में 127.14 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई। जबकि यूपी में समान अविधि में 320.89 लाख मीट्रिक टन के मुकाबले महज 35.77 लाख मीट्रिक टन की खरीद हुई थी। यानि पंजाब में कुल उत्पादन के मुकाबले करीब 70 फीसदी और यूपी में 11 फीसदी गेहूं की खरीद हुई थी। पंजाब में इस वर्ष 170 लाख मीट्रिक टन गेहूं उत्पादन अनुमानित था।
इसके साथ ही अगर खरीद में कितने किसानों को लाभ मिला इसका आंकड़ा देखें तो भी यूपी पीछे नजर आता है। एफसीआई (भारतीय खाद्य निगम) के मुताबिक 14 जून,2021 तक पूरे देश के कुल 47.68 लाख किसानों को एमएसपी का फायदा मिला थी, जिसमें सबसे ज्यादा फायदा मध्य प्रदेश के 17 लाख किसानों (1724218 किसान) को मिला, दूसरे नंबर पर यूपी 10 लाख (1061158), तीसरे नंबर पर पंजाब 8 लाख किसान (883078) और चौथे नंबर हरियाणा 7 लाख किसान (760639) है। लेकिन किसानों की संख्या और जोत (खेत) के मामले में ये तीनों ही राज्य यूपी से पीछे हैं।
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भारत समेत कई देशों में खाद्य एवं कृषि से जुड़ी नीतियों पर नजर रखने वाले खाद्य एवं निर्यात नीति विशेषज्ञ देविंदर शर्मा मोहाली से फोन पर बताते हैं, “पंजाब में गेहूं और धान के कुल उत्पादन का औसत 80-85 फीसदी तक सरकारी खरीद होती है, क्योंकि यहां मंडियां और खरीद सिस्टम बेहतर है। यहां तक कि यूपी-बिहार से गेहूं धान बिकने के लिए पंजाब-हरियाणा आता है। अगर वहां सिस्टम सही होता तो वो यहां क्यों आते? इसीलिए मैं बार-बार कहता हूं कि देश में 42000 मंडियां होनी चाहिए।”
रबी विपणन सीजन 2021-22 में उत्तर प्रदेश सरकार ने 15 जून तक 12 लाख किसानों से 53.80 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की है। उत्तर प्रदेश के कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही ने कहा, “उत्तर प्रदेश में आजादी के बाद अब तक की सर्वाधिक गेहूं खरीद है। जो एक स्वयं में एक रिकॉर्ड है। इससे पहले प्रदेश सरकार ने वर्ष 2018-19 में 11,27,195 किसानों से 9231.99 करोड़ रुपये के 52.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की थी।” 11 जून को शाही ने गोरखपुर में ये भी कहा था कि 2016-17 (अखिलेश यादव सरकार 7.97 एलएमटी) के मुकाबले मौजूदा खरीद 7 गुना से कहीं ज्यादा है।
“पहले की तुलना में जो खरीद बढ़ी है, वो ठीक है लेकिन कुल उत्पादन, किसानों की संख्या और खाद्य सुरक्षा के नजरिए से तुलना करेंगे तो ये आंकड़ा काफी कम नजर आएगा। अगर सरकार ठीक से तैयारी और प्रबंध करे तो कम से कम 80-90 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद कर सकती है।” देश वरिष्ठ पत्रकार और ग्रामीण मामलों के जानकार अरविंद कुमार सिंह गांव कनेक्शन को बताते हैं।
दिल्ली से फोन पर वो आगे कहते हैं, “पिछले साल मध्य प्रदेश ने 130 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदा था, जबकि मध्य प्रदेश, यूपी से उत्पादन के मामले में काफी पीछे हैं। उससे साबित हो गया कि अगर सरकार का नेटवर्क (मंडी-खरीदकेंद्र) ठीक हो तो छोटे किसान भी सरकार को गेहूं बेच सकते हैं। इसके अलावा धान के सीजन में छत्तीसगढ़ जैसे छोटे राज्य ने 92 लाख मीट्रिक टन धान (यूपी ने 66 LMT) केंद्र को बेचा था। तो यूपी सबसे बड़ा, सबसे ज्यादा आबादी और सबसे ज्यादा छोटे किसानों की संख्या वाला राज्य है, ऐसे में जब ज्यादा से ज्यादा किसानों को एमएसपी लाभ मिले फिर माना जाएगा कि खरीद बहुत अच्छी है।”
उत्तर प्रदेश में कृषि विभाग के मुताबिक रबी सीजन 2020 के दौरान करीब 98.42 लाख हेक्टेयर में गेहूं की बुवाई की गई थी। कृषि विभाग में निदेशक (सांख्यिकी) राजेश कुमार गुप्ता गांव कनेक्शन को बताते हैं, “साल 2020 में उत्तर प्रदेश में करीब 378.92 लाख मीट्रिक टन पैदावार होने का अनुमान है। जबकि प्रति हेक्टेयर उत्पादकता 38.50 कुंटल है।”
अगर यूपी में सरकारी खरीद की बात करें तो पिछले 5-6 वर्षों में न्यूनतम समर्थन मूल्य पर खरीद के मामले में अमूलचूल बदलाव हुए हैं। साल 2016-17 में अखिलेश यादव की अगुवाई वाली समाजवादी पार्टी की सरकार में महज 7.79 एलएमटी की खरीद हुई थी। आंकड़ों की बात करें तो योगी आदित्यनाथ की सरकार के सत्ता में आने पर अगले साल (2017-18) में 36.99 लाख मीट्रिक टन और इसके अगले साल ग्राफ तेजी से बढ़कर 52.92 लाख मीट्रिक टन पर पहुंच गया था। ये अपने आप में एक रिकॉर्ड था। लेकिन इसके अगले दो साल फिर सरकार फिर काफी पिछड़ गई। साल 2020-21 में महज 35.76 एलएमटी की खरीद हुई थी। नीचे ग्राफ देखिए
“अगर पंजाब-हरियाणा अपनी कुल उपज का 70-80 फीसदी गेहूं एमएसपी पर बेचते हैं तो यूपी में क्यों 15 फीसदी है? उत्तर प्रदेश में क्यों खुले बाजार में किसान 1500-1600-1700 रुपए प्रति कुंटल गेहूं बेचने को मजबूर हैं। सरकारी खरीद तुरंत 70-80 फीसदी तक ले जाना चाहिए तभी किसानों का भला होगा।” चौधरी पुष्पेंद्र सिंह, अध्यक्ष किसान शक्ति संघ सवाल करते हैं। किसानों के मुद्दे पर मुखरता से बात करने वाले पुष्पेंद्र चौधरी कौशांबी में रहते हैं।
मध्य प्रदेश इस बार गेहूं खरीद में नंबर दो पर है, जबकि पिछले साल वो पंजाब से ज्यादा खरीद पहले नंबर पर था। किसान नेता और मध्य़ प्रदेश में किसान कांग्रेस के कार्यवाहक अध्यक्ष केदार सिरोही, इंदौर से फोन पर बताते हैं, “मध्य प्रदेश में इस साल चने का रकबा बढ़ा था इसलिए गेहूं थोड़ा कम हुआ था लेकिन फिर भी प्रदेश 128.08 एलएमटी की खरीद कर चुका है। बेहतर खरीद की वजह ये है कि प्रदेश का सरकारी खरीद में पंजाब-हरियाण की तरह लंबा अनुभव हो चुका है। यहां की मंडियां और खरीद समितियों (कॉपरेटिव) को पता है कि कैसे खरीदना है। यूपी के पास इसका अभाव है, जैसे उनका अनुभव होगा, यूपी में खरीद बढ़ सकती है। मध्य प्रदेश में मंडी और कॉपरेटिव दोनों मजबूत हैं।”
उत्तर प्रदेश में खाद्य एवं रसद विभाग में उपायुक्त उदय प्रताप सिसोदिया गांव कनेक्शन को बताते हैं, “प्रदेश में गेहूं की रिकॉर्ड खरीद हो चुकी है और अभी 22 जून तक खरीद जारी रहेगी। अनुमान है कि 55 लाख मीट्रिक टन का आंकड़ा पार कर जाएंगे।” उत्पादन के अनुपात में खरीद की बात करने पर वो कहते हैं, “इतना बड़ा प्रदेश है यहां गेहूं की खपत भी तो बहुत ज्यादा होती है, हमारी कोशिश जब किसानों का ज्यादा से ज्यादा गेहूं खरीदा जाए।”
उत्तर प्रदेश सरकार में कृषि विभाग के आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में 2 करोड़ 38 लाख से ज्यादा किसान, जिन्हें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि योजना का लाभ मिलता है। जबकि पीएम किसान योजना की 8वीं किस्त के मुताबिक पंजाब के 17 लाख किसान इस योजना से लाभान्वित हैं। हालांकि सभी किसान गेहूं नहीं बोते लेकिन पंजाह हो या यूपी बड़ी आबादी गेहूं धान की ही खेती करती है। जिनमें ज्यादातर किसानों को एमएसपी का लाभ नहीं मिल पाता है।
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कितने फीसदी किसानों को मिलती है एमएसपी?
दिल्ली, स्थित सरकार के थिंक टैंक नीति आयोग कि नीति आयोग की जनवरी 2016 की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में महज़ छह फीसदी किसानों को ही एमएसपी का लाभ मिलता है। इन 6 फीसदी किसानों में संख्या के अनुपात में यूपी के किसानों की भागेदारी काफी कम है।
18 सितंबर 2020 को केंद्रीय उपभोक्ता कार्य, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री राव साहेब दानवे पाटिल ने राज्यसभा में एक सवाल के जवाब में कहा था कि सितंबर 9 तक रबी सीजन 2020-21 में 43.33 लाख किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का फायदा मिला है। इसमें 10.49 लाख किसान (1049982) पंजाब और 7.80 लाख किसान (780962) किसानों को मिला दें तो ये कुल 4335382 किसानों का करीब 42 फीसदी होता है। जबकि बाकी में अन्य राज्य हैं।
एमएसपी पर खरीददारी में किसानों की भागीदारी की बात करें तो साल 2021-22 में 15 जून तक 1216821 किसानों को एमएसपी का लाभ मिला है। लेकिन साल 2020-21 में महज 663810 किसानों को एमएसपी का फायदा मिला था, जबकि साल 2016-17 की बात तो उस दौरान सिर्फ एक लाख 66 हजार किसानों को ही न्यूनतम समर्थन योजना का फायदा मिला था।
यूपी में खरीद प्रक्रिया में किए थे कई बदलाव, ई-पॉप का इस्तेमाल करने वाला पहला राज्य
उत्तर प्रदेश में एक अप्रैल से गेहूं की खरीद शुरु की गई और 5678 खरीद केंद्रों के जरिए खरीददारी हुई। इस बार यूपी में सरकारी खरीद में कई बदलाव भी किए गए थे। यूपी में खरीद के लिए जिम्मेदार नोडस एजेंसी खाद्य एवं रसद विभाग के उपायुक्त सिसौदिया बताते हैं, “यूपी ने वास्तविक किसानों को एमएसपी का लाभ दिलाने के लिए कई नए प्रयोग किए थे। रजिस्ट्रेशन को आधार से जोड़ा गया था, मोबाइल पर ओटीपी आती थी, इसके अलावा तहसील स्तर पर रकबा का प्रमाणित किया जाता था, इसके साथ ही ज्यादतर जगहों पर इलेक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ परचेज (e-pop) मशीनों का प्रयोग किया गया।”
उत्तर प्रदेश में गेहूं सरकार को बेचने के लेकर शाहजहांपुर, सीतापुर, उन्नाव, लखीमपुर खीरी, समेत कई जिलों में उपभोक्ता लंबी लाइन में नजर आए। यूपी सरकार ने एक बार में किसानों से 50 कुंतल की तौल निर्धारित की थी। जिसके बाद की फसल को बेचने के किसान को दोबारा टोकन लेकर,कतार में लगना होता था। यूपी सरकार के मुताबिक ये व्यवस्था छोटे किसानों को ज्यादा से ज्यादा फायदा देने के लिए है।
यूपी के कृषि मंत्री शाही कहते हैं, “अधिक से अधिक किसानों को न्यूनतम समर्थन मूल्य का लाभ मुहैया कराने की दृष्टि से गेहूँ खरीद अभी 22 जून तक जारी रहेगी।”